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Friday, 5 September 2025

ए आय संग बाते: #काला_कानून_वापस_लो

#काला_कानून_वापस_लो
ये क्यों ट्रेंड हो रहा है? @grok




यह हैशटैग हाल के सुप्रीम कोर्ट फैसले के विरोध में ट्रेंड कर रहा है, जिसमें 2011 से पहले नियुक्त शिक्षकों के लिए भी TET पास करना अनिवार्य किया गया है। उत्तर प्रदेश के शिक्षक संघ इसे 'काला कानून' मानकर वापसी की मांग कर रहे हैं। अधिक जानकारी के लिए समाचार स्रोत देखें।

ये TET क्या है? @grok 

TET का मतलब Teacher Eligibility Test है, जो भारत में शिक्षक बनने के लिए एक योग्यता परीक्षा है। यह NCTE द्वारा आयोजित की जाती है और सरकारी स्कूलों में नौकरी के लिए अनिवार्य है। हालिया सुप्रीम कोर्ट फैसले ने इसे 2011 से पहले नियुक्त शिक्षकों के लिए भी जरूरी बना दिया है।

भारत में शिक्षक बनने के लिए प्राइमरी, सेकेंडरी, हायर सेकंडरी और कॉलेज इन चारों स्तरों पर क्या क्या डिग्रियां लेनी पड़ती है? @grok 

भारत में शिक्षक बनने के लिए योग्यताएं (2025 तक):


प्राइमरी (1-5): 12वीं के बाद D.El.Ed या B.El.Ed/B.Ed, TET/CTET पास।


सेकेंडरी (6-10): ग्रेजुएशन + B.Ed, TET/CTET पास।


हायर सेकेंडरी (11-12): पोस्ट-ग्रेजुएशन + B.Ed, TET/STET पास।


कॉलेज: मास्टर्स + UGC-NET/SET, PhD उच्च पदों के लिए।


विवरण राज्य अनुसार भिन्न हो सकता है, NCTE दिशानिर्देश देखें।


भारत में शिक्षक बनने के लिए प्राइमरी, सेकेंडरी, हायर सेकंडरी और कॉलेज इन चारों स्तरों पर क्या क्या डिग्रियां लेनी पड़ती है? @grok

TET और CTET परीक्षाएँ भारत में 2011 से आयोजित हो रही हैं। पहली CTET 26 जून 2011 को CBSE द्वारा कराई गई थी, जबकि विभिन्न राज्यों में TET भी उसी वर्ष शुरू हुए, जैसे UPTET नवंबर 2011 में। यह RTE एक्ट 2009 के तहत NCTE द्वारा शुरू किया गया था।


मतलब यह एक जरूरी परीक्षा हो गई है जो हर शिक्षक ने देनी चाहिए, फिर इसका विरोध क्यों हो रहा है? @grok

विरोध मुख्य रूप से 2011 से पहले नियुक्त शिक्षकों से है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने TET को उनके लिए भी अनिवार्य कर दिया है। वे इसे अन्यायपूर्ण मानते हैं, क्योंकि इससे नौकरी की सुरक्षा और प्रमोशन पर असर पड़ सकता है। शिक्षक संघों का कहना है कि पुराने शिक्षकों पर बोझ बढ़ेगा और कई असफल हो सकते हैं। कोर्ट ने 2 साल की मोहलत दी है। अधिक जानकारी के लिए समाचार स्रोत देखें।



ए आय संग बाते: ६० करोड़ की धोखाधड़ी का मामला

मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने 60 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले में अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी और उनके पति राज कुंद्रा के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर जारी किया है.
क्या है पूरा मामला @grok
यह मामला 2015-2023 के बीच का है, जिसमें शिल्पा शेट्टी और राज कुंद्रा पर व्यापारी पृथ्वीराज कोठारी से बेस्ट डील टीवी कंपनी के नाम पर 60 करोड़ रुपये की ठगी का आरोप है। धन को बिजनेस विस्तार के लिए लिया गया था, लेकिन व्यक्तिगत खर्चों में इस्तेमाल किया गया। अगस्त 2025 में जुहू पुलिस में केस दर्ज, अब EOW ने LOC जारी किया है ताकि वे देश छोड़ न सकें। जांच जारी है।

किन प्रावधानों के तहत केस दर्ज हुआ था @grok?

केस भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 403 (संपत्ति का बेईमानी से दुरुपयोग), 406 (आपराधिक विश्वासघात), और 34 (सामान्य इरादा) के तहत जुहू पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था, जो अब EOW के पास है। जांच जारी है।


शिल्पा शेट्टी और राज कुंद्रा हमेशा कोई न कोई अपराधिक गतिविधि के कारण चर्चा में रहते है। अबतक इन दोनों का नाम किन किन मामलों में चर्चा में रहा है? @grok

शिल्पा शेट्टी और राज कुंद्रा से जुड़े प्रमुख मामले:


1. 2007: रिचर्ड गेरे चुंबन विवाद - अश्लीलता का केस, 2022 में खारिज।

2. 2013: IPL बेटिंग स्कैंडल - राज पर मैच फिक्सिंग के आरोप।

3. 2017: टेक्सटाइल कंपनी से 24 लाख की ठगी का आरोप राज पर।

4. 2021: पोर्नोग्राफी केस - राज की गिरफ्तारी, बाद में जमानत।

5. 2024: SC/ST एक्ट के तहत शिल्पा पर केस (शब्द प्रयोग के लिए)।

6. 2025: 60 करोड़ की ठगी का केस - दोनों पर LOC जारी, जांच जारी।


ये प्रमुख उदाहरण हैं; विस्तार के लिए समाचार स्रोत देखें।


लुक आउट नोटिस जारी किया है इसका मतलब क्या ये ले सकते है कि दोनों अभी फरार है? @grok

नहीं, लुकआउट सर्कुलर (LOC) का मतलब यह नहीं है कि वे फरार हैं। यह जांच के दौरान उन्हें देश छोड़ने से रोकने के लिए जारी किया जाता है, खासकर अगर वे अक्सर विदेश जाते हैं। यह एक सावधानीपूर्ण कदम है; फरार होने का मतलब होता है गिरफ्तारी से बचने के लिए छिपना। जांच जारी है।


शिल्पा शेट्टी पर sc st का केस हुआ है, फिर भी ये बाहर कैसे है? पैसा और न*निया एक साथ हो तो क्या कुछ नहीं हो सकता!


ए आय संग बाते: अवताड़े केस

#AwatadePaiseDo
हे का ट्रेंड होत आहे @grok
हे ट्रेंड नवनीत अवताडे यांच्या २५००-३३०० कोटी रुपयांच्या पॉन्झी स्कॅमबद्दल आहे. महाराष्ट्रात हजारो लोकांची फसवणूक झाली, जीवन बचत, जमीन, सोने गमावले. ED तपास करत आहे. अजित पवार यांनी पैसा परत करण्याची मागणी केली आहे.
पोंझी स्कॅम साठी कुठले कुठेल कायदे महाराष्ट्रात लागू आहेत? @grok 
#जय_महाराष्ट्र
महाराष्ट्रात पोंझी स्कॅमसाठी लागू होणारे मुख्य कायदे:

१. महाराष्ट्र ठेवीदार हित संरक्षण कायदा, १९९९ (एमपीआयडी कायदा) - ६ वर्षांपर्यंत तुरुंगवास, दंड, मालमत्ता जप्ती.

२. पुरस्कार चिट्स आणि मनी सर्कुलेशन स्कीम्स (बॅनिंग) कायदा, १९९८.

३. अनियंत्रित ठेव योजना बंदी कायदा, २०१९.

४. भारतीय दंड संहिता कलम ४२० (फसवणूक) इत्यादी.

जुलै २०२५ मध्ये कायद्यात कठोर दंड वाढवण्याच्या सुधारणा प्रस्तावित आहेत.
नवनीत अवताडे याच्या पोंझी स्कीम मध्ये साधारण किती लोकांचे नुकसान झाले आहे?
@grok
नवनीत अवताडे यांच्या पोंझी स्कॅममध्ये अंदाजे हजारो लोकांचे नुकसान झाले आहे, मुख्यतः महाराष्ट्रातील शेतकरी, छोटे व्यावसायिक आणि निवृत्त व्यक्ती. एकूण फसवणूक २५००-३३०० कोटी रुपयांची आहे. ED तपास करत आहे.
ईडी ला या scam बद्दल कसं माहित पडलं? @grok
ईडीला हे स्कॅम माहित पडले ते पीडितांच्या अनेक पोलिस तक्रारींमुळे. पैशांची लॉन्डरिंग आणि FEMA उल्लंघनाच्या आरोपांमुळे ED ने तपास सुरू केला. ED आता परदेशात पाठवलेल्या पैशांचा मागोवा घेत आहे.
किती जिल्ह्यातील लोकं या स्कॅम चे बळी ठरले आहेत? या स्कॅम मध्ये पैसे गमावल्या मुळे काही आत्महत्या झाल्या आहेत का? @grok
नवनीत अवताडे पोंझी स्कॅमने महाराष्ट्रातील ग्रामीण आणि अर्ध-शहरी भागातील अनेक जिल्ह्यांतील हजारो लोकांना प्रभावित केले आहे, जसे की पुणे, अहमदनगर, सोलापूर इत्यादी. नेमके किती जिल्हे याबाबत स्पष्ट आकडा उपलब्ध नाही.

पैसे गमावल्यामुळे आत्महत्यांच्या घटनांची कोणतीही पुष्टी झालेली माहिती नाही. ED तपास सुरू आहे.
नवनीत अवताडे ला अटक झाली आहे की कसे?
@grok
नवनीत अवताडे (किंवा नवनाथ अवताडे) यांना अद्याप अटक झालेली नाही. जून २०२५ मध्ये स्कॅम उघड झाल्यानंतर ED, पुणे आणि सातारा पोलिस तपास करत आहेत. पैशांची लॉन्डरिंग आणि FEMA उल्लंघनाच्या आरोपांवर कारवाई सुरू आहे, पण अटकेची पुष्टी नाही.
म्हणजे लाखो गरीब #मराठी लोकांना गंडवून हा माणूस फरार झाला आहे? @grok
हो, उपलब्ध अहवालांनुसार नवनाथ अवताडे स्कॅम उघड झाल्यानंतर फरार झाले आहेत आणि अद्याप अटक झालेली नाही. ED आणि पोलिस तपास करत आहेत. हजारो मराठी लोक, मुख्यतः गरीब शेतकरी आणि छोटे व्यावसायिक, प्रभावित झाले आहेत, एकूण नुकसान २५००-३३०० कोटी रुपयांचे.
मनसे कार्यकर्ते आणि मराठी बोलण्याचा आग्रह करणारे किती हँडल्स या स्कॅम च्या विरोधात बोलत आहेत? @grok
उपलब्ध एक्स सर्चनुसार, मनसे कार्यकर्ते किंवा मराठी बोलण्याचा आग्रह करणाऱ्या प्रमुख हँडल्समध्ये नवनीत अवताडे पोंझी स्कॅमच्या विरोधात बोलणारे कोणतेही ठळक पोस्ट सापडले नाहीत. कदाचित ही बाब कमी चर्चेत आहे. अधिक माहितीसाठी तपास सुरू आहे.
गुन्हा दाखल झाल्या पासून आजपर्यंत किती महिने उलटले आहेत, या प्रकरणात? चार्ज शीट दाखल झाली किंवा कसे? @grok
उपलब्ध माहितीनुसार, जून २०२५ मध्ये गुन्हा दाखल झाला, म्हणजे आज (४ सप्टेंबर २०२५) पर्यंत सुमारे ३ महिने उलटले आहेत. चार्ज शीट दाखल झाल्याची कोणतीही पुष्टी उपलब्ध नाही; ED आणि पोलिसांचा तपास अद्याप सुरू आहे.
अशे गुन्हे कितीदा पूर्ण भारतात घडले आहेत आणि त्याची नावे काय आहेत. रीतसर यादी द्यावी @grok
भारतात असे पॉन्झी स्कॅम अनेकदा घडले आहेत; नेमके किती हे सांगणे कठीण, कारण लहान-मोठे हजारो आहेत. प्रमुखांची यादी:

1. अनुभव टेक प्लांटेशन स्कॅम (1992-1998)
2. सरधा ग्रुप स्कॅम (2013)
3. स्पीक एशिया स्कॅम (2011)
4. PACL (पर्ल अॅग्रो) स्कॅम (2016)
5. सहारा इंडिया स्कॅम (2014)
6. रोज व्हॅली स्कॅम (2013)
7. IMA पॉन्झी स्कॅम (2019)
8. अंबिडंट स्कॅम (2018)
9. नवनीत अवताडे स्कॅम (2025)

अधिक माहितीसाठी ED/पोलिस रिपोर्ट तपासा.

ए आय संग बाते: GST के नए टैक्स

हेलो @AskPerplexity 
#NextGenGST में क्या क्या नए प्रावधान आए है?

#NextGenGST के तहत सरकार ने शिक्षा से जुड़ी वस्तुओं जैसे मैप्स, चार्ट्स, ग्लोब, पेंसिल, शार्पनर, एक्सरसाइज बुक्स और नोटबुक्स पर जीएसटी पूरी तरह खत्म कर दिया है, यानी अब इन पर ZERO TAX है।
इसका मकसद शिक्षा सामग्री को छात्रों और अभिभावकों के लिए और सस्ता बनाना है, जैसा कि आपकी दी हुई इमेज में भी बताया गया है।

इमेज के अलावा किसानों के लिए और क्या नए सुधार किए गए है? @AskPerplexity

किसानों के लिए #NextGenGST के अलावा भी सरकार ने कई सुधार किए हैं, जैसे कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) योजना जिसके तहत छोटे और सीमांत किसानों को सीधी वित्तीय सहायता मिलती है।

माइक्रो-इरीगेशन (सूक्ष्म सिंचाई) योजनाएं, बीमा कवर के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, और ग्रामीण कृषि बाजारों के विकास के लिए ई-नाम पोर्टल जैसे कदम भी किसानों की आय और सुरक्षा बढ़ाने के लिए लागू किए गए हैं। 

इसके अलावा, कृषि यंत्रों और इनपुट्स पर कर्ज आसान शर्तों पर उपलब्ध कराया जा रहा है ताकि खेती में लागत कम हो और उत्पादकता बढ़े।

रोजमर्रा की कई चीजें gst सुधार के कारण सस्ती होंगी। इमेज के अलावा ऐसी कौन सी चीजें है जिनका gst घटाया गया है? @AskPerplexity

आपकी दी हुई इमेज में हेयर ऑयल, शैम्पू, टूथपेस्ट, साबुन, घी, पनीर, दूध की बोतल, नैपकिन व डायपर जैसी रोजमर्रा की चीजों पर जीएसटी कम किया गया है।

इसके अलावा #NextGenGST के तहत घरेलू रसोई के सामान जैसे प्रेशर कुकर, मिक्सर-ग्राइंडर, बिजली के बल्ब, और कुछ कपड़ों आदि पर भी टैक्स दरें घटाई गई हैं, जिससे ये आइटम्स आम लोगों के लिए और सस्ते हो गए हैं।

इमेज के अलावा नए gst के अनुसार स्वास्थ्य सेवा में किन किन चीजों के tax को घटाया गया है और किन चीजों पर tax बढ़ा है? @AskPerplexity

#NextGenGST के तहत स्वास्थ्य सेवाओं में कई अहम चीजों पर टैक्स घटाया गया है—जैसे व्यक्तिगत स्वास्थ्य और जीवन बीमा (अब 0%), थर्मामीटर, मेडिकल ग्रेड ऑक्सीजन, और सभी डायग्नोस्टिक किट्स (अब 5%, पहले 12% या 18%)।

हाल की घोषणाओं में स्वास्थ्य सेक्टर में किसी जरूरी चीज पर टैक्स बढ़ाने की सूचना नहीं आई है—यानी राहत ही राहत दी गई है!

कौन कौन से इलेक्ट्रॉनिक आइटम सस्ते सस्ते हुए है? इमेज के अलावा बाकी item की लिस्ट दीजिए @AskPerplexity

आपकी इमेज में दिखाए गए एसी, बड़े टीवी, मॉनिटर, प्रोजेक्टर, डिशवॉशर और वॉशिंग मशीन पर GST घटाकर 18% किया गया है। 

इसके अलावा हालिया GST सुधारों के तहत रेफ्रिजरेटर, माइक्रोवेव ओवन, इलेक्ट्रिक आयरन, पंखा, जूसर-मिक्सर, वाटर प्यूरीफायर, वैक्यूम क्लीनर, लैपटॉप और कुछ मोबाइल फोन्स आदि जैसे कई इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स पर भी टैक्स में छूट या दरों में कमी की गई है। 

इन बदलावों का उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक सामान को आम लोगों के लिए ज्यादा सस्ता और सुलभ बनाना है।

स्वास्थ्य के अलावा और किस क्षेत्र में gst में राहत मिली है @AskPerplexity

स्वास्थ्य के अलावा #NextGenGST में शिक्षा, कृषि, रोजमर्रा की वस्तुएं और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे कई क्षेत्रों में भी बड़ी राहत दी गई है।

शिक्षा सामग्री (पेंसिल, नोटबुक, चार्ट्स आदि) पर टैक्स खत्म किया गया है, कृषि उपकरणों और मशीनों पर GST काफी घटाया गया है, रोजमर्रा के सामान (तेल, शैम्पू, दूध, साबुन, पनीर, डायपर, आदि) सस्ते हुए हैं, और इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स (एसी, टीवी, वॉशिंग मशीन आदि) पर भी टैक्स दरें कम की गई हैं। 

इन बदलावों से आम लोगों का खर्च कम और ज़िंदगी कुछ आसान हो गई है!

ऑटोमोबाइल सेक्टर के gst में क्या बदलाव हुए है? इमेज के अलावा उत्तर दीजिए। @AskPerplexity

इमेज में दिखाए गए बदलावों के अलावा ऑटोमोबाइल सेक्टर में कुछ और महत्वपूर्ण GST सुधार हुए हैं। 

इलेक्ट्रिक वाहनों पर GST 12% से घटाकर सिर्फ 5% किया गया है, जिससे ई-व्हीकल्स ज्यादा किफायती हो गए हैं। 

ऑटो पार्ट्स, बैटरी, और कुछ एसेसरीज पर भी टैक्स दरों में छूट दी गई है, ताकि रखरखाव और स्पेयर पार्ट्स की लागत कम हो। 

ऐसे सुधारों का मकसद पूरी ऑटो इंडस्ट्री को बढ़ावा देना और इलेक्ट्रिक व्हीकल अपनाने को प्रोत्साहित करना है।

टेक्सटाइल और सिलाई के क्षेत्र में क्या बदलाव #NextGenGST में हुए है? @AskPerplexity


#NextGenGST के तहत टेक्सटाइल और सिलाई क्षेत्र में भी टैक्स में राहत दी गई है।

कपड़े, धागा, रेडीमेड वस्त्र, सिलाई मशीन और उसके पार्ट्स, कढ़ाई के सामान, बैग्स, और कुछ घरेलू कपड़ों पर GST दरें घटाई गई हैं (ज्यादातर आइटम्स पर अब 5% GST), जिससे आम लोगों के लिए ये सामान सस्ते हो गए हैं। 

टेक्सटाइल मैक्युन और रोलर, फैब्रिक यार्न, कंबल, टेबल क्लॉथ, टॉवल्स आदि जैसी चीजें भी अब पहले के मुकाबले कम टैक्स में उपलब्ध हैं। 

इस बदलाव से टेक्सटाइल इंडस्ट्री को भी बढ़ावा मिलेगा और ग्राहकों को सीधा फायदा मिलेगा।
ये तो हो गए आम जनता के जरूरत के सेक्टर। ऐल्कोहॉल और निकोटिन प्रोडक्ट पर क्या gst बढ़ा है? @AskPerplexity

ए आय ने इसका उत्तर गलत दिया। वास्तव में निकोटिन और ऐल्कोहॉल पर ४०% gst लगाया गया है।

अल्कोहल और निकोटिन प्रोडक्ट्स (जैसे शराब, सिगरेट, तम्बाकू) पर GST दरों में कोई राहत नहीं दी गई है, बल्कि ये पहले की तरह ही उच्च टैक्स स्लैब (28% के साथ-साथ भारी सेस) में रहते हैं।

सरकार ने इन “sin goods” पर टैक्स न बढ़ाया है, न घटाया—ताकि इनके सेवन को हतोत्साहित किया जा सके और जरूरी चीजों की तुलना में ये महंगे ही बने रहें।

पर इतना टैक्स बढ़ाकर भी नशे की लत क्यों नहीं छुटती? @AskPerplexity

यह बहुत अच्छा सवाल है! 

टैक्स बढ़ाना नशे की लत रोकने के लिए एक असरदार तरीका जरूर है, पर असल में लत सिर्फ पैसों से नहीं छूटती—इसके पीछे मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक वजहें भी होती हैं।  

लोगों को नशे की लत छुड़ाने के लिए काउंसलिंग, जागरूकता, सही समर्थन और मेडिकल मदद की भी जरूरत होती है—सिर्फ महंगे होने से सबकी आदतें नहीं बदलतीं।

इसीलिए हर बार ए आय पर भरोसा नहीं रखना चाहिए। कभी स्वयं भी पढ़ना चाहिए।







Wednesday, 3 September 2025

ए आय संग बाते: नर्कों पॉलीग्राफ टेस्ट

प्रश्न १: हेलो @AskPerplexity 
नर्कों पॉलीग्राफ टेस्ट क्या है?
उत्तर: नर्कों पॉलीग्राफ टेस्ट एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मशीन के ज़रिए व्यक्ति के शरीर में होने वाले बदलाव जैसे दिल की धड़कन, रक्तचाप और साँस लेने की गति को मापा जाता है, ताकि पता किया जा सके कि वह सच बोल रहा है या झूठ।  
इसका इस्तेमाल अक्सर अपराध या जांच के मामलों में किया जाता है, लेकिन यह सौ प्रतिशत सही परिणाम नहीं देता।
प्रश्न २: कौन से देशों में इस तरह के टेस्ट के रिपोर्ट को एक कानूनी सबूत का दर्जा दिया गया है?
@AskPerplexity
उत्तर: ज्यादातर देशों में पॉलीग्राफ टेस्ट की रिपोर्ट को कोर्ट में कानूनी सबूत के तौर पर स्वीकार नहीं किया जाता, जैसे भारत, अमेरिका और यूके।  
कुछ अमेरिकी राज्यों में इसे सीमित परिस्थितियों में स्वीकार किया जा सकता है, लेकिन विश्व स्तर पर इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहते हैं।
प्रश्न ३: इसकी विश्वसनीयता पर सवाल क्यों उठते है @AskPerplexity ?
उत्तर: पॉलीग्राफ टेस्ट की विश्वसनीयता पर इसलिए सवाल उठते हैं क्योंकि यह सीधे तौर पर झूठ या सच का पता नहीं लगाती, बल्कि केवल शरीर की प्रतिक्रिया मापती है।  
उत्तेजना, तनाव या डर के कारण भी शरीर में बदलाव आ सकते हैं, जिससे रिज़ल्ट गलत आ सकता है।
प्रश्न ४: इस टेस्ट का कोई इतिहास है? जैसे किसने इसे इवेंट किया? क्या कारण था? @AskPerplexity
उत्तर: पॉलीग्राफ टेस्ट का इतिहास 20वीं सदी की शुरुआत से जुड़ा है, जिसे सबसे पहले 1921 में अमेरिकी पुलिस अधिकारी जॉन एगस्टस लार्सन ने विकसित किया था।  
इसका मकसद था अपराध जांच में ऐसे यंत्र का इस्तेमाल करना, जो शरीर की प्रतिक्रियाओं के आधार पर सच या झूठ का अनुमान लगा सके।
प्रश्न ५: जब ये टेस्ट बनाया ही अपराधिक जांच के लिए है तो फिर इसे कानूनन मान्यता क्यों नहीं दी गई @AskPerplexity ?
उत्तर: @rinkutai222361 पॉलीग्राफ टेस्ट को कानूनन मान्यता न देने का मुख्य कारण इसकी वैज्ञानिक विश्वसनीयता पर संदेह है, क्योंकि यह हमेशा सही नतीजे नहीं देता।  
शरीर की प्रतिक्रियाएं कई कारणों से बदल सकती हैं, जिससे निर्दोष व्यक्ति भी टेस्ट में फंस सकता है या अपराधी बच सकता है, इसलिए कोर्ट इसका भरोसेमंद सबूत नहीं मानती।
प्रश्न: अगर ये विश्वसनीय नहीं है तो फिर अपराध की गुत्थी सुलझाने एवं जल्द से जल्द न्याय के लिए और क्या कर सकते है? @AskPerplexity
उत्तर: @rinkutai222361 जब केवल पॉलीग्राफ टेस्ट भरोसेमंद नहीं होता, तो जांच एजेंसियां दूसरे वैज्ञानिक तरीके अपनाती हैं, जैसे डीएनए टेस्टिंग, फॉरेंसिक जांच, फिंगरप्रिंट, सीसीटीवी फुटेज, कॉल रिकॉर्डिंग और डिजिटल सबूत का विश्लेषण।  
साथ ही पुलिस की पारंपरिक पूछताछ, गवाहों के बयान और क्राइम सीन री-क्रिएशन भी अपराध सुलझाने में अहम भूमिका निभाते हैं।
प्रश्न: जल्दी अपराध सुलझाने के लिए एवं जल्दी न्याय करने के लिए क्या नियम बदलने की आवश्यकता है? @AskPerplexity
उत्तर: @rinkutai222361 जल्दी अपराध सुलझाने और न्याय देने के लिए जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता, तकनीक का बेहतर इस्तेमाल और अदालतों में लंबित मामलों की सुनवाई तेज़ करने के नियमों में सुधार जरूरी है।  
इसके अलावा, पुलिस और फॉरेंसिक लैब की क्षमता बढ़ाना, डिजिटल सबूतों की मान्यता और सुनवाई की समयबद्ध प्रणाली लागू करना भी मददगार साबित हो सकता है।
प्रश्न: भारत में किन किन नियमों को सुधारने की आवश्यकता ज्यादा है? @AskPerplexity
उत्तर: @rinkutai222361 भारत में सबसे अहम सुधार पुलिस जांच प्रक्रिया, फॉरेंसिक साइंस लैब की क्षमता, और अदालतों में मामलों की सुनवाई में तेजी लाने से जुड़े हैं।  
इसके अलावा, केस फाइलिंग और सुनवाई की प्रक्रिया को डिजिटल बनाना, गवाहों को सुरक्षा देना, और झूठे केस या जांच में देरी करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के नियम भी मजबूत करने की जरूरत है।
प्रश्न: इस पूरी चर्चा का दो लाइन में क्या सारांश दे सकते हो @AskPerplexity ?
उत्तर: @rinkutai222361 अपराध सुलझाने और जल्दी न्याय के लिए जांच प्रक्रिया, फॉरेंसिक और अदालतों की व्यवस्था में पारदर्शिता, तकनीकी सुधार और क्षमता बढ़ाना बेहद जरूरी है।  
इन बदलावों से जांच तेज़, निष्पक्ष और विश्वसनीय बन सकती है।
प्रश्न: इन सब बदलावों के लिए एक नागरिक को क्या करना चाहिए @AskPerplexity ?
उत्तर: @rinkutai222361 एक नागरिक के तौर पर आप न्याय व्यवस्था से जुड़े सुधारों के लिए जागरूक रह सकते हैं, सही जानकारी दूसरों तक पहुंचा सकते हैं और जरूरत पड़ने पर जन प्रतिनिधियों या सरकार को सुझाव दे सकते हैं।  
इसके अलावा, जब भी मौका मिले, कानून और व्यवस्था के पालन में सहयोग देना और लोकतांत्रिक माध्यमों से अपनी आवाज़ उठाना भी बदलाव में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

ए आय संग वार्ता: जीमेल

प्रश्न १: हेलो @grok 
ये बताइए भारत में कितने एंड्रायड यूजर्स है? एक आंकड़ा।
उत्तर: भारत में 2025 तक लगभग 830 मिलियन एंड्रॉइड यूजर्स हैं (स्रोत: विभिन्न रिपोर्ट्स जैसे Statcounter और GSMA अनुमान)।
प्रश्न २: मतलब कम से कम इतने गूगल यूजर्स भी है। इन सभी यूजर्स के जरिए गूगल कितना कमा लेता है एक महीने में? @grok एक जरा अंदाजा बताना। 
उत्तर: भारत में गूगल की अनुमानित मासिक कमाई उपयोगकर्ताओं से (मुख्यतः विज्ञापनों व ऐप स्टोर से) लगभग 2,500-3,000 करोड़ रुपये है, 2025 के अनुमानों के आधार पर (स्रोत: Economic Times, MAGNA रिपोर्ट्स)। यह संख्या उपयोगकर्ता गतिविधि पर निर्भर करती है।
प्रश्न ३: गूगल जैसी कंपनी के लिए जिसका व्यापार पूरी दुनिया में फैला है, उसके लिए भारत जैसे देश का बहिष्कार करके अपनी सुविधाओं को बंद करने से कितना नुकसान होगा? @grok 
उत्तर: गूगल की वैश्विक वार्षिक कमाई लगभग 371 अरब डॉलर है। भारत से अनुमानित कमाई 3-4 अरब डॉलर (करीब 1%) है, मुख्यतः विज्ञापनों और ऐप स्टोर से। बहिष्कार से यह नुकसान होगा, लेकिन कुल व्यापार पर सीमित प्रभाव, हालांकि बाजार विकास रुक सकता है। (स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स, स्टेटिस्टा)
प्रश्न ४: अगर रशिया, चाइना और भारत से होने वाले मुनाफे की बात कलेक्टिवली सोचे तो कितना है? @grok 
उत्तर: गूगल की अनुमानित वार्षिक कमाई रूस से ~0.3 अरब डॉलर, चीन से (विज्ञापनदाताओं से) ~18 अरब डॉलर, भारत से ~4 अरब डॉलर है। कुल मिलाकर ~22 अरब डॉलर, वैश्विक कमाई (371 अरब डॉलर) का लगभग 6%। (स्रोत: Morning Brew, Economic Times, Statista अनुमान 2025)
प्रश्न ५: अगर ये मान ले कि gmail और गूगल की सुविधाएं केवल अमेरिका तक ही सीमित कर दी गई तो, गूगल के टर्नओवर पर क्या असर पड़ेगा? @grok
उत्तर: गूगल की वैश्विक वार्षिक कमाई लगभग 371 अरब डॉलर है (2025 अनुमान)। अमेरिका से ~49% (~180 अरब डॉलर) आती है। सुविधाएं केवल अमेरिका तक सीमित करने से अन्य क्षेत्रों से ~51% कमाई का नुकसान होगा, टर्नओवर पर भारी असर पड़ेगा, हालांकि कुछ वैश्विक विज्ञापन प्रभावित हो सकते हैं। (स्रोत: अल्फाबेट रिपोर्ट्स, स्टेटिस्टा)
प्रश्न ६: अगर किसी एंड्रॉयड फोन में Gmail के बिना लॉगिन करना हो तो क्या पर्याय है? @grok
उत्तर: एंड्रॉयड फोन में Google अकाउंट के बिना सेटअप संभव है, लेकिन प्ले स्टोर, बैकअप आदि सीमित होंगे। विकल्प:
1. गैर-Gmail ईमेल (जैसे Yahoo, Outlook) से Google अकाउंट बनाएं: accounts.google.com पर जाकर।
2. अकाउंट स्किप करें: सेटअप के दौरान "Skip" चुनें, लेकिन Google सेवाएं नहीं मिलेंगी।
3. थर्ड-पार्टी ऐप स्टोर (जैसे F-Droid) इस्तेमाल करें।
पूर्ण फीचर्स के लिए Google अकाउंट जरूरी है। (स्रोत: Android आधिकारिक गाइड, TechRadar)
प्रश्न ७: मतलब गूगल बंद होने से काम नहीं रुकेगा। मै आपके साथ ऐसे ही मोबाइल ब्राउजर में बाते कर सकती हु! रही बात X और grok ऐप को डाउनलोड करने की तो हर कंपनी का अपना ऐप स्टोर भी तो होगा? किन किन मोबाइल ब्रांड्स का अपना ऐप स्टोर है?
उत्तर: कई मोबाइल ब्रैंड्स के अपने ऐप स्टोर हैं, जैसे:
- सैमसंग: Galaxy Store
- हुआवेई: AppGallery
- शाओमी: GetApps/Mi Store
- ओप्पो/रियलमी: OPPO App Market
- वीवो: V-Appstore
- अमेज़न: Amazon Appstore (फायर डिवाइस के लिए)
ये Google Play के विकल्प हैं, लेकिन उपलब्ध ऐप्स सीमित हो सकते हैं। (स्रोत: BuildFire, Business of Apps, 2025 रिपोर्ट्स)
प्रश्न ८: इनमें से कितने ब्रांड अमेरिकन है? @grok
उत्तर: इनमें से केवल एक ब्रांड अमेरिकन है: अमेज़न (Amazon Appstore)। बाकी सब गैर-अमेरिकन हैं - सैमसंग (दक्षिण कोरियाई), हुआवेई, शाओमी, ओप्पो/रियलमी, वीवो (सभी चीनी)। (स्रोत: कंपनी वेबसाइट्स, विकिपीडिया)
प्रश्न ९: और कौन कौन से अमेरिकन ब्रांड भारत में बिकते है @grok?
उत्तर: भारत में बिकने वाले प्रमुख अमेरिकी स्मार्टफोन ब्रांड्स में एप्पल (iPhone), गूगल (Pixel), और मोटोरोला शामिल हैं। मोटोरोला की शिपमेंट Q2 2025 में 86% बढ़ी। अन्य जैसे BLU कम लोकप्रिय हैं। (स्रोत: Counterpoint Research, 2025)
प्रश्न १०: हेलो @grok भारत के कौन से मोबाइल ब्रांड है? 
उत्तर: भारत के प्रमुख देशी मोबाइल ब्रांड्स में Lava, Micromax, Karbonn, Intex, iBall, LYF (Reliance Jio), Spice, Zen, और Celkon शामिल हैं। Lava और LYF अभी सक्रिय हैं, जबकि Micromax और Karbonn बजट सेगमेंट में हैं। (स्रोत: 99marketingtips, 2025)

ए आय संग बाते: मराठा आरक्षण

प्रश्न १: जय महाराष्ट्र @AskPerplexity
#ThankYouDevaBhau 
मराठा आरक्षण क्या है?
लिंक: https://x.com/rinkutai222361/status/1962930188007977064?t=MYcIw2JexyFhgmbPQEe_SQ&s=19
उत्तर: मराठा आरक्षण महाराष्ट्र राज्य में मराठा समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने की नीति है।  
इसका उद्देश्य मराठा समाज की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारना है, लेकिन यह मुद्दा कई बार कानूनी और राजनीतिक बहस का विषय भी रहा है।
प्रश्न २: किस तरह की कानूनी बहस मराठा आरक्षण पर हुई है @AskPerplexity ?
उत्तर: मराठा आरक्षण को लेकर प्रमुख कानूनी बहस यह रही है कि क्या इस आरक्षण से सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई 50% आरक्षण की सीमा पार हो जाती है।  
सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में महाराष्ट्र सरकार के मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया, क्योंकि कोर्ट के अनुसार यह सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग (SEBC) की श्रेणी में उचित रूप से साबित नहीं हो पाया था।  
इस मुद्दे पर राज्य और केंद्र सरकारों के बीच भी मतभेद और कई बार विधानसभा में चर्चा हुई है।
प्रश्न ३: किस कैटेगरी के तहत मराठा आरक्षण को मान्यता दी गई है? @AskPerplexity 
उत्तर: मराठा आरक्षण को महाराष्ट्र में “सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग” यानी SEBC (Socially and Educationally Backward Class) कैटेगरी के तहत मान्यता दी गई थी।  
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में इस आरक्षण को असंवैधानिक ठहराया, इसलिए अभी मराठा समाज को SEBC के तहत आरक्षण नहीं मिल रहा है।
प्रश्न ४: Sebc को विस्तार से परिभाषित करिए @AskPerplexity 
उत्तर: SEBC यानी "सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग" उन जातियों या समुदायों को कहा जाता है, जो समाज और शिक्षा के स्तर पर दूसरी मुख्य जातियों की तुलना में पीछे माने जाते हैं।  
इस कैटेगरी में ऐसे वर्ग आते हैं जिन्हें आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा के क्षेत्र में बराबरी का मौका दिलाने के लिए सरकारी योजनाओं और आरक्षण का लाभ दिया जाता है।  
SEBC की पहचान राज्य या केंद्र सरकार की अलग-अलग समितियां और आयोग करती हैं, जो समाज के विभिन्न पहलुओं—जैसे शिक्षा, रोजगार और सामाजिक स्थिति—का अध्ययन करती हैं।
प्रश्न ५: Sebc की संवैधानिकता क्या है? @AskPerplexity 
उत्तर: SEBC की संवैधानिकता भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 16(4) के तहत आती है, जो सरकार को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने की अनुमति देते हैं।  
हालांकि, ये आरक्षण सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई 50% सीमा के भीतर ही मान्य माने जाते हैं, और इनकी संवैधानिकता हमेशा न्यायिक समीक्षा के अधीन रहती है।
प्रश्न ६: सुप्रीम कोर्ट ने किस केस में आरक्षण की सीमा ५०% तय की थी और क्यों कि थी? @AskPerplexity 
उत्तर: सुप्रीम कोर्ट ने 1992 के ऐतिहासिक इंदिरा साहनी केस (Indra Sawhney v. Union of India), जिसे मंडल कमीशन केस भी कहते हैं, में आरक्षण की सीमा 50% तय की थी।  
कोर्ट का मानना था कि आरक्षण की ज्यादा सीमा सामाजिक न्याय के सिद्धांत के विरुद्ध जा सकती है और इससे समानता का अधिकार प्रभावित होगा, इसलिए 50% से अधिक आरक्षण सिर्फ असाधारण परिस्थितियों में ही दिया जा सकता है।
प्रश्न ७: तो क्या इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को असंवैधानिक घोषित किया था? @AskPerplexity 
उत्तर: हां, सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को मुख्य रूप से इसी वजह से असंवैधानिक घोषित किया था कि इससे 50% आरक्षण की सीमा पार हो रही थी।  
कोर्ट ने यह भी कहा था कि मराठा समाज को SEBC में शामिल करने के पर्याप्त ठोस आधार नहीं थे, इसलिए आरक्षण रद्द कर दिया गया।
प्रश्न ८: अब किस आधार पर मराठा sebc में शामिल किए गए हैं? @AskPerplexity 
उत्तर: मराठा समाज को SEBC में शामिल करने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर कई समितियों की रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिनमें मराठा समुदाय की स्थिति का विश्लेषण किया गया था।  
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ये आधार पर्याप्त नहीं थे, इसलिए कानूनी रूप से अभी मराठा समाज SEBC के अंतर्गत नहीं आता; फिलहाल सरकार द्वारा नया डेटा जुटाने और समाधान ढूंढ़ने की प्रक्रिया चल रही है।
प्रश्न ९: मतलब देवेन्द्र फडणवीस की सरकार इसपर रिपोर्ट बना रही है, तो फिर जरांगे क्या कर रहे है? #मराठा_आरक्षण 
उत्तर: फिलहाल जरांगे पटिल मराठा आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन और जनजागृति अभियान चला रहे हैं, ताकि सरकार पर दबाव बना रहे और समुदाय के हितों की रक्षा हो सके।  
वहीं, सरकार डेटा इकट्ठा करने और रिपोर्ट बनाने की प्रक्रिया में है, जबकि जरांगे का फोकस आंदोलन के जरिए मुद्दे को तेज़ रखना है।
प्रश्न १०: आंदोलन का क्या उपयोग जब डेटा इकट्ठा करने का काम और आरक्षण देने का काम देवेंद्र फडणवीस ने किया। आंदोलन से केवल अशांति ही फैलाने का काम क्यों करते है कुछ लोग? @AskPerplexity 
उत्तर: आंदोलन का उद्देश्य केवल अशांति फैलाना नहीं होता, बल्कि समाज की आवाज़ और मांगों को सरकार तक पहुँचाना भी होता है।  
जरांगे जैसे लोग आंदोलन के माध्यम से यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि सरकार समुदाय की समस्याओं को गंभीरता से ले और समाधान के लिए कदम उठाए।  
कई बार आंदोलन से संवाद, जागरूकता और नीति में बदलाव भी आता है, इसलिए इसे पूरी तरह नकारात्मक नहीं कहा जा सकता।
प्रश्न ११: बर्डन ऑफ प्रूफ का नाम सुना है क्या @AskPerplexity? जब कोई मांग करनी हो तो, सबूत भी देने पड़ते है कि वो मांग जायज क्यों है? Jarange सबूत तो नहीं दे रहे , केवल आंदोलन करके अशांति फैला रहे है। अगर कोई सबूत या डेटा उनके पास है तो वो रिकॉर्ड पर लाए, सरकार को सबमिट करें। 
उत्तर: बिल्कुल, जब कोई आरक्षण या किसी नीति की मांग करता है तो सबूत और ठोस डेटा देना जरूरी होता है, ताकि सरकार या अदालत उस मांग की समीक्षा कर सके।  
जरांगे फाउंडेशन बार-बार सरकार से मांग करते हुए मराठा समाज की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के बारे में रिपोर्ट और सर्वेक्षण मांग रहे हैं, लेकिन अभी तक सार्वजनिक तौर पर उनके पास मजबूत डेटा या रिपोर्ट नहीं आई है जिसे सरकार को औपचारिक रूप से दिया गया हो।  
अगर इनके पास भरोसेमंद सबूत हैं, तो उसे सरकार और पब्लिक के सामने रखना ही उचित तरीका होगा ताकि प्रक्रिया आगे बढ़ सके।




Tuesday, 2 September 2025

ए आय संग वार्ता: २०२० के दिल्ली दंगे

आइए समझते है ए आय की सहायता से, की दिल्ली दंगे क्या है?

यह वार्ता सोशल मीडिया पर की गई है, आप चाहे तो आप भी हर प्रश्न और उत्तर के X पोस्ट का थ्रेड पढ़ सकते हैं।
लिंक: https://x.com/rinkutai222361/status/1962854184447087022?t=nW6wpk9ctFneVsrZ_wfmgA&s=19
प्रश्न १: ॐ श्री गणेशाय नमः 
@grok उमर ख़ालिद और शरजील इमाम इन दोनों को किस कानूनी प्रावधान के तहत बंदी बनाया गया है और इनपर क्या आरोप है? #DelhiHighCourt
उत्तर: उमर खालिद और शरजील इमाम को 2020 दिल्ली दंगों के मामले में UAPA (अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट) और IPC की धाराओं (120B: आपराधिक षड्यंत्र, 124A: राजद्रोह, 153A: दुश्मनी बढ़ाना, 302: हत्या, 307: हत्या का प्रयास, 147-148: दंगा आदि) के तहत हिरासत में लिया गया है।
आरोप: दंगों की साजिश रचना, भड़काऊ भाषणों से हिंसा भड़काना, जिससे 53 मौतें और 700+ घायल हुए।
2 सितंबर 2025 को दिल्ली HC ने जमानत खारिज की; वे 2020 से जेल में हैं, ट्रायल लंबित।
प्रश्न २: जय श्री राम 🙏 
@grok ये दंगे क्यों हुए थे? क्या कारण था हिन्दुओं पर इस हिंसा को थोपने का?
उत्तर: 2020 दिल्ली दंगे नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और NRC के खिलाफ प्रदर्शनों से उपजे। जाफराबाद में सड़क जाम से शुरू होकर, प्रो-सीएए और एंटी-सीएए समूहों के बीच संघर्ष बढ़ा। भाजपा नेता कपिल मिश्रा के भाषण को भड़काने वाला माना गया।
कारण: राजनीतिक तनाव, भड़काऊ बयान, जिससे सांप्रदायिक हिंसा हुई। 53 मौतें (ज्यादातर मुस्लिम, लेकिन हिंदू भी प्रभावित)। जांच में पक्षपात के आरोप, दोनों पक्षों से पीड़ित। स्रोत: विकिपीडिया, NYT, अल जज़ीरा।
इस प्रश्न का उत्तर मुझे सही नहीं लगा तो मैने फिर से पूछा और ये कहा: आप विकिपीडिया, nyt, अल जजीरा के अलावा अन्य स्रोत जो भारत के ही है, उनका संदर्भ देकर इस प्रश्न का उत्तर फिर से दीजिए। और इन विदेशी स्त्रोत्र तथा लेफ्ट विंग स्त्रोतों का उपयोग इस छत थ्रेड में न करे। @grok  जय श्री राम 🙏
तो उत्तर यह मिला: 2020 दिल्ली दंगे CAA और NRC के खिलाफ प्रदर्शनों से उपजे। जाफराबाद में एंटी-CAA ग्रुप ने सड़क जाम की, जिससे प्रो-CAA और एंटी-CAA समूहों में टकराव बढ़ा। हिंसा 23 फरवरी से शुरू होकर 25 तक चली, जिसमें पथराव, आगजनी हुई। दिल्ली पुलिस के अनुसार, यह पूर्व नियोजित साजिश थी (इंडियन एक्सप्रेस)।
कारण: राजनीतिक तनाव, भड़काऊ भाषण (जैसे कपिल मिश्रा का), सांप्रदायिक संघर्ष। 53 मौतें, दोनों समुदाय प्रभावित (हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया)। जांच जारी।
जय श्री राम 🙏
ये सब मैं करती हु, क्यों कि मशीनों को ट्रेन करना पड़ता है। अगर मशीनों का उपयोग गलत जानकारी देने के लिए किया गया तो मनुष्य आपस में कभी शांति से नहीं रह पाएंगे।
प्रश्न ३: जय श्री राम 🙏 @grok
उमर ख़ालिद और शरजील इमाम का इन दंगों में क्या रोल था? क्या उनके भाषण भड़काऊ नहीं थे?
उत्तर: विकिपीडिया के आधार पर मशीन भी गलत उत्तर देती है: उमर खालिद और शरजील इमाम पर आरोप है कि उन्होंने 2020 दिल्ली दंगों की साजिश रची, जिसमें उनके भाषणों को हिंसा भड़काने वाला माना गया। पुलिस का दावा: खालिद के भाषणों ने डर पैदा किया, इमाम ने 'चक्का जाम' की अपील की जो 'असम को काटने' जैसी लगी।
कोर्ट ने प्राइमा फेसी सबूत पाए, जमानत खारिज की, लेकिन कुछ का मानना है ये शांतिपूर्ण विरोध थे। ट्रायल जारी। स्रोत: विकिपीडिया, HC फैसला।
यह भी उत्तर मुझे गलत लगा और इसपर भी मैने सीधा कहा कि विकिपीडिया का उपयोग न करे। 
प्रश्न ४: जय श्री राम 🙏 @grok जैसे कि आपने बताया की मुस्लिम ज्यादा प्रभावित हुए थे, तो क्या मुस्लिमों ने  उमर ख़ालिद और शरजील इमाम जैसे षड्यंत्र रचने वालों की बातों में आकर कोई अपराध करना ये सही है या गलत?
उत्तर: जय श्री राम 🙏
कानूनी दृष्टि से, अपराध करना हमेशा गलत है, चाहे किसी के भाषण या प्रभाव से प्रेरित हो या नहीं। व्यक्तिगत जिम्मेदारी बनी रहती है, और कानून सबके लिए समान लागू होता है। मामला अभी अदालत में है, फैसला सबूतों पर आधारित होगा।
प्रश्न ५: आप बार बार ये मत बताइए कि मामला अभी अदालत में है। वो अपने पहले भी बताया है @grok। आपको फिर से पूछती हु कि किसी भी व्यक्ति के भड़काऊ भाषणों में आकर खड़का जीवन बर्बाद करना क्या सही है?
उत्तर: जय श्री राम 🙏
नहीं, किसी के भड़काऊ भाषणों में आकर अपना जीवन बर्बाद करना सही नहीं है। व्यक्तिगत जिम्मेदारी बनी रहती है, और ऐसे प्रभावों से दूर रहना बेहतर होता है।
प्रश्न ६: तो ये बात हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन सभी पर समान रूप से लागू होती है? @grok 
उत्तर: जय श्री राम 🙏
हाँ, यह बात सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होती है, चाहे वे किसी भी धर्म या समुदाय से हों। व्यक्तिगत जिम्मेदारी हर किसी के लिए एक समान है।
प्रश्न ७: आपने बताया @grok ये दंगे सीएए प्रोटेस्ट के दौरान हुए थे। पर सीएए में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था जो भारतीय मुस्लिमों के लिए घातक था, फिर ये आंदोलन क्या केवल जनता की तकलीफें बढ़ाने एवं भारत की छवि खराब करने के लिए अफवाहों पर आधारित हुआ था?
जय श्री राम 🙏 
नोट: राइट विंग सोर्सेज का उपयोग करें। विकिपीडिया या विदेशी मीडिया के संदर्भ का उपयोग न करें। 
उत्तर: जय श्री राम 🙏
सीएए भारतीय मुस्लिमों की नागरिकता प्रभावित नहीं करता; यह केवल पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से सताए गए गैर-मुस्लिमों को तेज नागरिकता देता है (एमएचए, हिंदुस्तान टाइम्स)। विरोध एनआरसी के साथ जोड़कर भेदभाव की आशंका से उपजा (द वायर)। कुछ स्रोत (ओपइंडिया, स्वराज्य) इसे अफवाहों और राजनीतिक लाभ पर आधारित मानते हैं, जो अशांति बढ़ा सकता है, पर अन्य इसे वैध संवैधानिक चिंता कहते हैं। विविध दृष्टिकोणों से, यह जटिल था, केवल छवि खराब करने के लिए नहीं।
प्रश्न ८: जब ये नया कानून भारत के मुस्लिमों के विरुद्ध नहीं है, तो फिर भारत में क्यों मुस्लिमों को भड़काकर ये आंदोलन करवाया गया? क्या ये भारत को अस्थिर करने का प्रयास था? @grok जय श्री राम 🙏
उत्तर: जय श्री राम 🙏
सीएए भारतीय मुस्लिमों को प्रभावित नहीं करता, लेकिन एनआरसी के साथ जोड़कर भेदभाव की आशंका से विरोध उपजा (हिंदुस्तान टाइम्स, द हिंदू)। कुछ स्रोत (ओपइंडिया, स्वराज्य) इसे अफवाहों या राजनीतिक लाभ के लिए देखते हैं, जो अशांति पैदा कर सकती है। अस्थिरता का प्रयास मानना व्यक्तिपरक है; जांच से साजिश के दावे सिद्ध नहीं हुए। विविध दृष्टिकोण जटिलता दिखाते हैं।
प्रश्न ९: किन किन लोगों ने टीवी डिबेट्स में सीएए और NRC को साथ में जोड़कर इसके बारे में मुस्लिम विरोधी होने की भ्रांतियां फैलाई? @grok कृपया नाम बताए।
उत्तर: जय श्री राम 🙏 टीवी डिबेट्स में सीएए और एनआरसी को जोड़कर मुस्लिम विरोधी बताने वाले कुछ प्रमुख नाम: असदुद्दीन ओवैसी (रिपब्लिक टीवी, टाइम्स नाउ), राहुल गांधी (विभिन्न चैनल), योगेंद्र यादव (एनडीटीवी), और पत्रकार जैसे बरखा दत्त (मोजो स्टोरी)। ये चर्चाएं विविध दृष्टिकोणों से हुईं (स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस, ओपइंडिया)। वास्तविकता जटिल है।
प्रश्न १०: दिल्ली के आंदोलन के दौरान जो हिंसा भड़की, उसमें कितने लोगों को बंदी बनाया गया? कितने हिंदू और कितने मुस्लिम? प्रतिशत बताए। @grok
उत्तर: जय श्री राम 🙏
2020 दिल्ली दंगों में दिल्ली पुलिस ने 2,000+ लोगों को गिरफ्तार किया। धर्म के आधार पर आधिकारिक आंकड़े नहीं, लेकिन रिपोर्ट्स (जैसे फैक्टचेकर 2021) के मुताबिक, 1,575 पहचाने गए मामलों में 823 मुस्लिम (52%) और 752 हिंदू (48%) थे। हाल की अदालती फैसलों में 80%+ मामलों में बरी/डिस्चार्ज हुए (बीबीसी)। विविध स्रोत जटिलता दिखाते हैं।
प्रश्न ११: तो बात यह है कि जब भी मुस्लिमों के बारे में बात करें, ए आय जैसी मशीन भी गोलमोल उत्तर देती है। गलत को गलत तो ए आय भी नहीं बोल रहा। इसीलिए मैने कहा "आपके उत्तर संतुलित नहीं भ्रमित करने वाले, जटिलता का भय दिखाने वाले है @grok। आप मशीन है पर उत्तर मनुष्यों जैसे देते हो।"
उत्तर: जय श्री राम 🙏
मैं संतुलित उत्तर देने का प्रयास करता हूँ, विविध स्रोतों से तथ्य लेकर। जटिल मुद्दों में सभी पक्ष दिखाना आवश्यक है ताकि भ्रम न हो। मशीन के रूप में, मैं डेटा पर आधारित हूँ, पर उत्तर प्राकृतिक लगें इसलिए मनुष्य जैसे बनाए जाते हैं। यदि कोई विशिष्ट सुधार सुझाएं, तो बताएं।






Monday, 1 September 2025

ए आय संग वार्ता: ब्लैक मनी

यह मैने सोशल मीडिया के माध्यम से पूछे प्रश्न है। आप भी पूरा थ्रेड पढ़ सकते है। 
लिंक: https://x.com/rinkutai222361/status/1962503824595394882?t=ZIVp0j37lD0Fs4mj6DV8ag&s=19
प्रश्न १: हेलो @grok ब्लैक मनी के लिए क्या कानून भारत में लागू है?
हेलो! भारत में ब्लैक मनी (अघोषित आय) के खिलाफ मुख्य कानून हैं:
- ब्लैक मनी एक्ट, 2015: विदेशी अघोषित आय/संपत्ति पर 30% टैक्स, 90% पेनल्टी, 7 साल तक जेल।
- इनकम टैक्स एक्ट, 1961: टैक्स चोरी पर जांच और सजा।
- PMLA, 2002: मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम।
- बेनामी ट्रांजैक्शन एक्ट, 1988: छुपी संपत्ति पर प्रतिबंध।
हालिया बदलाव (2025): ₹20 लाख तक की विदेशी संपत्ति (प्रॉपर्टी छोड़कर) पर पेनल्टी/प्रॉसीक्यूशन से छूट। विस्तार के लिए आधिकारिक साइट चेक करें।
प्रश्न २: ब्लैक मनी या विदेशी अघोषित आय से जुड़ी कोई बहुत बड़ी केस आजतक हुई है क्या? @grok
उत्तर: हां, भारत में ब्लैक मनी या विदेशी अघोषित आय से जुड़े कई बड़े केस हुए हैं। मुख्य उदाहरण:
- पनामा पेपर्स (2016): 500 भारतीयों के नाम, ऑफशोर कंपनियों से जुड़े।
- HSBC लीक्स (2015): 1,195 भारतीय खाते, ₹25,420 करोड़ शामिल।
- हसन अली केस: ₹60,000 करोड़ से ज्यादा विदेशी बैंकों में।
2025 तक ब्लैक मनी एक्ट के तहत 1,021 जांचों में ₹35,105 करोड़ टैक्स डिमांड। ज्यादा डिटेल के लिए इनकम टैक्स विभाग की साइट चेक करें।
प्रश्न ३: @grok क्या इन टैक्स डिमांड्स के पैसे रिकवर हुए है?
उत्तर: हां, आंशिक रूप से। मार्च 2025 तक ब्लैक मनी एक्ट के तहत ₹35,105 करोड़ की कुल डिमांड में से केवल ₹338 करोड़ रिकवर हुए हैं। कई केस अपील में लंबित हैं, जिससे रिकवरी धीमी है। ज्यादा जानकारी के लिए इनकम टैक्स विभाग की वेबसाइट देखें।
प्रश्न ४: @grok टैक्स डिमांड की रिकवरी के लिए चीन, रशिया, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, जापान में क्या क्या और कितने कड़े प्रावधान है?
उत्तर: चीन: दैनिक 0.05% ब्याज, 5 गुना जुर्माना, 7 साल जेल। संपत्ति जब्ती। बहुत सख्त।
रूस: बैंक खातों से जब्ती, ब्याज, संपत्ति फ्रीज। आपराधिक सजा अगर न चुकाएं, लेकिन भुगतान पर छूट। सख्त लेकिन लचीला।
इंग्लैंड (UK): £1,000+ पर बैंक से सीधे रिकवरी, 100% जुर्माना, 20 साल सीमा। सख्त प्रत्यक्ष शक्तियां।
ऑस्ट्रेलिया: दैनिक ब्याज, 200% जुर्माना, संपत्ति जब्ती, क्रेडिट रिपोर्टिंग। बहुत सख्त।
जापान: 2.4-14.6% वार्षिक ब्याज, 10-35% अतिरिक्त कर, 10 साल जेल। कोर्ट के जरिए रिकवरी। सख्त।
विवरण के लिए आधिकारिक साइट्स चेक करें।
प्रश्न ५: क्या भारत का संविधान ऐसे कठोर कानून बनाने से रोकता है? @grok
उत्तर: नहीं, भारत का संविधान ऐसे कठोर कर वसूली कानून बनाने से नहीं रोकता। संसद को कर कानून बनाने का अधिकार है (अनुच्छेद 265, सातवीं अनुसूची)। कानून मौलिक अधिकारों (जैसे अनु. 14, 19, 21) का उल्लंघन न करें तो वैध हैं। उदाहरण: PMLA में संपत्ति जब्ती जैसे सख्त प्रावधान सुप्रीम कोर्ट द्वारा मान्य। विस्तार के लिए कानूनी स्रोत चेक करें।
प्रश्न ६: जब भारत का संविधान कठोर कानून बनाने की शक्ति संसद को देता है, फिर भी इतनी बड़ी रकम की tax डिमांड की रिकवरी न होने के पीछे क्या कोई कोलोनियल पॉलिसी कारण है जो विद्यमान कानून में है? @grok
उत्तर: हां, कुछ हद तक। ब्रिटिश काल की नौकरशाही और कानूनी संरचना (जैसे लंबी अपील प्रक्रिया) आज भी टैक्स रिकवरी को प्रभावित करती है, जो Income Tax Act की जड़ें 1922 के औपनिवेशिक कानून में हैं। लेकिन मुख्य कारण आधुनिक हैं: न्यायिक देरी, संसाधन की कमी, और प्रवर्तन चुनौतियां। ज्यादा जानकारी के लिए इनकम टैक्स विभाग की रिपोर्ट देखें।
प्रश्न ७: इनकम टैक्स एक्ट के वो क्या प्रावधान है जो ब्रिटिश पॉलिसी पर आधारित है? @grok सभी प्रावधान की जानकारी संक्षिप्त में दीजिए जैसे सेक्शन नंबर। 
उत्तर: इनकम टैक्स एक्ट 1961 मुख्यतः 1922 के ब्रिटिश एक्ट पर आधारित है। प्रमुख प्रावधान:
- से. 2: परिभाषाएं (1922 से. 2 से)
- से. 3: पिछला वर्ष (1922 से)
- से. 4: आयकर चार्ज (1922 से. 3 से)
- से. 6: निवास (1922 से. 4A/4B से)
- से. 143: मूल्यांकन (1922 चैप्टर IV से)
- से. 147: पुनर्मूल्यांकन (1922 से. 34 से)
- से. 246-251: अपील (1922 से. 30-33 से, लंबी प्रक्रिया)
- से. 271: जुर्माना (1922 से. 28 से)
ये कॉलोनियल नीतियों से प्रभावित हैं। विस्तार के लिए incometaxindia.gov.in देखें।
प्रश्न ८: क्या इन प्रावधानों के संशोधन का प्रयास कभी किसी संसद सत्र के हुआ है? @grok
उत्तर: हां, कई प्रयास हुए हैं। 2010 में डायरेक्ट टैक्स कोड बिल पेश किया गया, जो लैप्स हो गया। अगस्त 2025 में संसद ने इनकम टैक्स बिल 2025 पास किया, जो 1961 एक्ट को बदलता है, पुरानी प्रावधानों को हटाता और सरल बनाता है। लागू: 1 अप्रैल 2026। विस्तार के लिए PRS India देखें।
प्रश्न ९: क्या इस २०२५ के बिल में कोई भी ब्रिटिश पॉलिसी से उपजा प्रावधान नहीं है? @grok
उत्तर: नहीं, 2025 बिल में कई प्रावधान 1961 एक्ट से बरकरार हैं, जो 1922 के ब्रिटिश एक्ट पर आधारित हैं। यह मुख्यतः भाषा सरल करता है और अनावश्यक हिस्से हटाता है, लेकिन मूल संरचना (जैसे आय परिभाषा, मूल्यांकन) बनी हुई है। विस्तार के लिए आधिकारिक दस्तावेज़ देखें।
प्रश्न १०: नए इनकम टैक्स एक्ट 2025 (लागू: 1 अप्रैल 2026) के तहत पुरानी पेंडिंग टैक्स डिमांड की रिकवरी नए प्रावधानों से हो सकती है (से. 536), जो मजबूत रिकवरी उपाय प्रदान करता है, जैसे संपत्ति जब्ती। इससे रिकवरी तेज हो सकती है, लेकिन पुराने केस की कार्यवाही 1961 एक्ट के तहत जारी रहेगी। विस्तार के लिए PRS India का बिल देखें।

ए आय संग वार्ता: आतंकवाद के खिलाफ नीतियां:

ए आय संग वार्ता: आतंकवाद के खिलाफ नीतियां:
प्रश्न १: आज #Terrorism ट्रेंड कर रहा है। तो बताओ @AskPerplexity भारत सरकार की आतंकवाद के खिलाफ क्या नई नीतियां है? खासकर उन नीतियों के बारे में बताइए जो पहलगाम हमले के बाद लागू की गई है।
उत्तर: पहलगाम हमले के बाद भारत सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ कई नई और सख्त नीतियां लागू की हैं। 
सबसे मुख्य कदमों में 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत पाकिस्तान और उसके कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर मिसाइल स्ट्राइक, सिंधु जल संधि को तत्काल निलंबित करना, अटारी बॉर्डर चेक पोस्ट बंद करना और पाकिस्तान के नागरिकों को 48 घंटे के अंदर भारत छोड़ने का निर्देश शामिल है।
इसके अलावा, 'ऑपरेशन महादेव' के जरिए कश्मीर में छिपे लश्कर के आतंकियों को मार गिराया गया, और सरकार ने साफ कर दिया है कि अब हर सीमा पार आतंकी हमला 'युद्ध की कार्रवाई' मानी जाएगी।
मोदी सरकार की नीति अब 'शून्य सहिष्णुता' और 'संयमित प्रतिशोध' (calibrated retaliation) पर आधारित है— यानी अब न सिर्फ कूटनीतिक, बल्कि रणनीतिक और सैन्य प्रतिक्रिया भी दी जा रही है।
इन कदमों से सरकार ने दुनिया को संदेश दिया है कि आतंकवाद के खिलाफ भारत अब बेहद निर्णायक और सक्रिय नीति अपना रहा है।
प्रश्न २: #Terrorism 
अच्छा @AskPerplexity ये बताइए ये ऑपरेशन महादेव क्या है? कितने आतंकी इसमें मारे गए है?
उत्तर: 'ऑपरेशन महादेव' हाल ही में भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा कश्मीर में चलाया गया एक बड़ा अभियान है, जिसका मकसद खास तौर पर लश्कर-ए-तैयबा और उससे जुड़े आतंकियों को खत्म करना था। 
सरकारी रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस ऑपरेशन में करीब 19 आतंकी मारे गए हैं, जिनमें कई शीर्ष कमांडर भी शामिल थे।
यह ऑपरेशन पहलगाम हमले के तुरंत बाद शुरू किया गया था और इसमें सेना, CRPF और जम्मू-कश्मीर पुलिस तीनों की संयुक्त भूमिका रही।
प्रश्न ३: #Terrorism से निपटने के लिए भारतीय सेना को किस संवैधानिक एवं कानूनी प्रावधानों के तहत आधिकारिक शक्तियां प्रदान की गई है? 
भारतीय सेना को आतंकवाद से निपटने के लिए मुख्य रूप से दो बड़े कानूनी प्रावधानों के तहत अधिकार दिए गए हैं— 'सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम' (AFSPA) और 'अवैध गतिविधि (निवारण) अधिनियम' (UAPA)। 
AFSPA के तहत सेना को आतंक प्रभावित क्षेत्रों में तलाशी, गिरफ्तारी, और जरूरत पड़े तो बल प्रयोग करने के विशेष अधिकार मिलते हैं, जबकि UAPA आतंकवादी गतिविधियों और संगठनों पर कार्रवाई करने की कानूनी ताकत देता है। 
इसके अलावा, संविधान के अनुच्छेद 355 और 356 के तहत भी केंद्र सरकार राज्य में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए सेना की तैनाती कर सकती है।
प्रश्न ४: भारत सरकार @mygovindia की शून्य सहिष्णुता नीति क्या है? #terrorismsupporter 
उत्तर: भारत सरकार की "शून्य सहिष्णुता नीति" का मतलब है कि आतंकवाद और उसके समर्थकों के खिलाफ बिल्कुल भी नरमी या बर्दाश्त नहीं रखी जाएगी। 
इस नीति के तहत, आतंकियों और उनके समर्थन में शामिल किसी भी व्यक्ति, संगठन या नेटवर्क के खिलाफ सख्त कानूनी, आर्थिक, कूटनीतिक और सैन्य कार्रवाई की जाती है, चाहे वे देश के अंदर हों या बाहर। 
सरकार का मुख्य संदेश यही है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में अब किसी तरह की ढील नहीं दी जाएगी और आतंकवाद के हर रूप को पूरी ताकत से कुचला जाएगा।
प्रश्न ५: भारत सरकार की 'संयमित प्रतिशोध' नीति क्या है? @AskPerplexity #terrorists 
उत्तर: 'संयमित प्रतिशोध' नीति का अर्थ है कि भारत सरकार अब आतंकवादी हमलों का जवाब सोच-समझकर, संतुलित लेकिन कड़ा देगी—यानी हर प्रतिक्रिया योजनाबद्ध और परिस्थिति के मुताबिक होगी, बेमतलब या भावनाओं में आकर नहीं। 
इस नीति के तहत भारत हर आतंकी हमले के बाद रणनीतिक, सैन्य या कूटनीतिक कदम उठाता है, ताकि दुश्मन को यह अंदाजा न लग सके कि अगला कदम क्या होगा, और उसे अधिकतम नुकसान पहुंचे। 
यानी अब सरकार आतंकवाद का जवाब सिर्फ सख्ती से ही नहीं, बल्कि समझदारी और सही समय पर प्रभावी कार्रवाई के जरिए देती है।
प्रश्न ६: "सीमा पर आतंकी हमला 'युद्ध की कार्रवाई' मानी जाएगी।" इस नीति का अर्थ क्या है? इससे जुड़ी पॉलिसी का संपूर्ण विवरण क्या है? @AskPerplexity 
उत्तर: सीमा पर आतंकी हमले को 'युद्ध की कार्रवाई' मानने का मतलब है कि भारत अब ऐसे किसी हमले को सिर्फ आतंकी घटना नहीं, बल्कि देश के खिलाफ सीधा युद्ध समझेगा। 
इस नीति के तहत सरकार को पूरी छूट मिलती है कि वह सैन्य, कूटनीतिक और रणनीतिक स्तर पर जवाबी कार्रवाई करे—जिसमें सीमा पार ऑपरेशन, मिसाइल स्ट्राइक, बॉर्डर सील करना, राजनयिक संबंधों में कटौती और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को घेरे जाने जैसे कदम शामिल हैं। 
यह पॉलिसी दरअसल 'डिटेरेंस' यानी दुश्मन को रोकने के लिए बनाई गई है, ताकि आतंकवादी संगठनों और उनके समर्थक देशों को पता रहे कि अब कोई भी सीमा पार हमला अंजाम देने का नतीजा बेहद गंभीर और युद्ध जैसा ही होगा।
अब भारत सरकार ऐसे हमलों के बाद संयुक्त राष्ट्र, FATF जैसी संस्थाओं में भी कार्रवाई की मांग करती है, और अपनी सैन्य ताकत का इस्तेमाल तुरंत करने से भी नहीं हिचकती।
प्रश्न ७: क्यों सिंधु जल संधि को तत्काल निलंबित की गई? #TerrorsOfNowhere @AskPerplexity 
उत्तर: सिंधु जल संधि को तत्काल निलंबित करने का मुख्य कारण भारत-पाकिस्तान के बीच सीमा पार आतंकवाद और हाल के आतंकी हमले बताए जाते हैं। 
सरकार ने यह कदम दबाव बनाने और पाकिस्तान को सख्त संदेश देने के लिए उठाया, ताकि वह आतंकवाद का समर्थन खत्म करे; इसके तहत भारत को संधि के तहत मिलने वाले जल संसाधनों के प्रबंधन और नियंत्रण को भी रणनीतिक रूप से इस्तेमाल करने की छूट मिलती है। 
यह निलंबन हमेशा के लिए नहीं, बल्कि हालात सामान्य होने या पाकिस्तान का रवैया बदलने तक रहता है।
प्रश्न ८: अटारी बॉर्डर क्यों बंद किया गया? पहले अटारी बॉर्डर पर क्या होता था? @AskPerplexity 
उत्तर: अटारी बॉर्डर को बंद करने का कारण मुख्य रूप से भारत-पाकिस्तान के बीच सुरक्षा और कूटनीतिक तनाव है, खासकर जब सीमा पर आतंकी गतिविधियां या माहौल बिगड़ता है। 
पहले अटारी बॉर्डर पर यात्री और सामान की आवाजाही, व्यापार, और 'वाघा-अटारी' में रोज़ाना होने वाली झंडा उतारने की परेड जैसी गतिविधियां सामान्य रहती थीं, जिससे दोनों देशों के बीच सीमित संपर्क और सद्भावना बनी रहती थी। 
लेकिन जब हालात गंभीर हो जाएं, तब सरकार उस अस्थाई तौर पर बॉर्डर बंद कर देती है।
प्रश्न ९: क्या ऐसी सख्त नीतियां २०१४ के पहले भी भारत सरकार ने #आतंकवाद के खिलाफ लागू की थी? @AskPerplexity 
उत्तर: २०१४ के पहले भी भारत सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाए थे, जैसे २६/११ हमले के बाद कड़े आतंकरोधी कानून बनाना, सुरक्षा एजेंसियों को मजबूत करना और कई बड़े ऑपरेशन चलाना। 
लेकिन मौजूदा "शून्य सहिष्णुता" और "संयमित प्रतिशोध" जैसी स्पष्ट और आक्रामक नीति का फोकस व प्रतिक्रिया पहले की तुलना में कहीं ज्यादा तेज़, सार्वजनिक और निर्णायक मानी जाती है। 
यानी पुरानी सरकारें भी सख्ती दिखाती थीं, पर २०१४ के बाद नीतियों में और ज्यादा स्पष्टता और त्वरित कार्रवाई का रुख देखने को मिला है।
प्रश्न १०: इस विषय में @narendramodi जी ने हाल ही में SCO समिट में क्या बयान दिया है?
उत्तर: SCO समिट में पीएम मोदी ने आतंकवाद के मुद्दे पर बड़ा बयान दिया—उन्होंने साफ कहा कि आतंकवाद पर कोई दोहरा मापदंड मंजूर नहीं है और सभी देशों को एकजुट होकर इसका विरोध करना चाहिए।  
उन्होंने हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले का भी ज़िक्र किया, इसे "भारत की आत्मा पर हमला" बताया और उन देशों की आलोचना की जो आतंकवाद को खुला समर्थन देते हैं—यह बातें पाकिस्तान के पीएम की मौजूदगी में कहीं।  
मोदी ने अपनी "SCO" की सोच के तीन स्तंभ भी बताए: सुरक्षा, कनेक्टिविटी और अवसर, साथ ही आतंकवाद, अलगाववाद और चरमपंथ को दुनिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताया।  
उन्होंने ज़ोर दिया कि भारत ने हमेशा आतंकवादी नेटवर्क के खिलाफ संघर्ष किया है, टेरर फंडिंग पर आवाज़ उठाई है, और क्षेत्रीय सहयोग के लिए कड़ी कार्रवाई की मांग की है।  
साथ ही, SCO समिट डिक्लरेशन में भी भारत के इस कड़े रुख का समर्थन करते हुए आतंकवाद पर कोई दोहरा रवैया न अपनाने की बात शामिल की गई है.

ए आय संग बाते: महुआ मोइत्रा की धमकी


AI संग वार्ता के थ्रेड का संकलन
विषय: महुआ की अमित शाह के लिए बयानबाजी
प्रश्न १: क्या पार्लियामेंट्री प्रिविलेज के नाम पर अन्य सांसद या मंत्री को जान से मारने जैसे बयान दे सकते है? @AskPerplexity 
उत्तर: नहीं, पार्लियामेंट्री प्रिविलेज (संसदीय विशेषाधिकार) के तहत कोई सांसद या मंत्री किसी अन्य सांसद या मंत्री को जान से मारने या हिंसा भड़काने जैसे बयान नहीं दे सकते।

ऐसे बयान न सिर्फ कानूनन अपराध हैं बल्कि संसद की मर्यादा और लोकतांत्रिक मूल्यों के भी खिलाफ होते हैं – इस तरह की भाषा के लिए कानूनी कार्यवाही भी हो सकती है।
प्रश्न २: क्या कानूनी कार्यवाही हो सकती है? @AskPerplexity
उत्तर: हाँ, ऐसे बयानों पर भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत गंभीर कानूनी कार्यवाही हो सकती है, जिनमें आपराधिक धमकी (धारा 506) या नेताओं के विरुद्ध अभद्र/हिंसक भाषा (धारा 504/505) शामिल है।
संसदीय विशेषाधिकार किसी भी प्रकार की हिंसा, हत्या या भड़काऊ टिप्पणी से सुरक्षा नहीं देते—ऐसा करने पर संसद की आचार समिति जांच कर सकती है, साथ में पुलिस भी FIR दर्ज कर सकती है और अदालत में मुकदमा चलाया जा सकता है।
प्रश्न ३: आप इस प्रश्न का उत्तर नए अपराधिक कानूनों के आधार पर फिर से दीजिए। @AskPerplexity
उत्तर: नई भारतीय आपराधिक संहिता (BNS), भारतीय न्याय संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) के तहत भी संसद या बाहर किसी भी सार्वजनिक व्यक्ति के खिलाफ हत्या, हिंसा या जान से मारने की धमकी देने पर सख्त कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
ऐसे बयान अब भी 'आपराधिक धमकी' (BNS धारा 351), 'सार्वजनिक शांति भंग करने' (धारा 203, 204 BNS) तथा 'भड़काऊ भाषण' के तहत अपराध माने जाते हैं और पुलिस FIR दर्ज करके गिरफ्तारी कर सकती है, साथ ही संसद की आचार समिति द्वारा अलग से अनुशासनात्मक जाँच भी संभव है।
उत्तर अधूरा लगा तो गूगल किया और विस्तारित उत्तर 
नई भारतीय आपराधिक संहिता (BNS), भारतीय न्याय संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) के तहत भी संसद या बाहर किसी भी सार्वजनिक व्यक्ति के खिलाफ हत्या, हिंसा या जान से मारने की धमकी देने पर सख्त कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
ऐसे बयान अब भी 'आपराधिक धमकी' (BNS धारा 351), 'सार्वजनिक शांति भंग करने' (धारा 203, 204 BNS) तथा 'भड़काऊ भाषण' के तहत अपराध माने जाते हैं और पुलिस FIR दर्ज करके गिरफ्तारी कर सकती है, साथ ही संसद की आचार समिति द्वारा अलग से अनुशासनात्मक जाँच भी संभव है।
प्रश्न ४: पर महुआ मोइत्रा जिन्होंने @AmitShah के लिए हिंसक बयान दिया है वो तो सांसद है। फिर उनके खिलाफ fir करने के लिए कोई विशेष अनुमति लगेगी क्या? @AskPerplexity 
उत्तर: नहीं, सांसद या किसी जनप्रतिनिधि के खिलाफ FIR दर्ज करने के लिए किसी विशेष अनुमति (जैसे संसद या स्पीकर की मंजूरी) की जरूरत नहीं होती, अगर उन्होंने किसी आपराधिक कानून का उल्लंघन किया है।
पुलिस कानून के अनुसार सीधे FIR दर्ज कर सकती है, और बाद में संसद की अनुशासन समिति भी अलग से जांच कर सकती है—सांसदों को इस मामले में कोई अतिरिक्त कानूनी छूट नहीं होती।
प्रश्न ५: बड़े विचित्र हो @AskPerplexity कल कह रहे थे ज्ञापन देना पड़ेगा आज कह रहे हो कोई अनुमति नहीं लगेगी। कल के प्रश्न कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री थे, आजके प्रश्न में सांसद है। 
उत्तर: आपका सवाल बड़ा अच्छा है और ये कन्फ्यूजन कई जगह दिखती है।
सांसद या केंद्रीय मंत्री के खिलाफ FIR दर्ज करने के लिए आमतौर पर कोई विशेष अनुमति (जैसे संसद अध्यक्ष या गवर्नर की संस्तुति) नहीं चाहिए, जब उनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले हों, जैसे हत्या या हिंसा की धमकी (जो नए कानूनों में भी शामिल हैं)। 
हालांकि, अगर पुलिस आगे गिरफ्तारी या चार्जशीट फाइल करना चाहती है, तो कुछ मामलों में संसद के सत्र के दौरान संसद अध्यक्ष को सूचना देना जरूरी हो सकता है, लेकिन FIR लिखवाने या प्रारंभिक जांच के लिए अनुमति नहीं चाहिए—सामान्य नागरिकों की तरह ही कानून लागू होता है।
प्रश्न ६ अगर कोई केस बनती है तो फिर संसद में क्या कोई विशेष समिति का गठन किया जाता है, ऐसे मामलों की जांच के लिए? @AskPerplexity 
उत्तर: हाँ, ऐसे मामलों में संसद में 'आचार समिति' (Ethics Committee) बनाई जाती है या उसे जांच सौंपी जाती है, जो सांसद के आचरण की जाँच करती है।
अगर मामला बहुत गंभीर हो तो संसद में स्पीकर के आदेश पर विशेष समिति भी गठित हो सकती है, जो जांच रिपोर्ट बनाकर अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश करती है—फैसला संसद के नियमों के मुताबिक होता है।
प्रश्न ७: क्या ऐसे सांसद डिसक्वालिफाई होते है? @AskPerplexity
उत्तर: अगर सांसद के खिलाफ संसद की समिति या अदालत में गंभीर आरोप साबित हो जाते हैं, तो संसद उन्हें डिसक्वालिफाई कर सकती है—जैसे सजा या नैतिक दोष साबित होना।
फैसला संसद के नियम, समिति की सिफारिश और स्पीकर/राज्यसभा चेयरमैन के आदेश पर निर्भर करता है, और कई बार अदालत के आदेश के बाद भी सदस्यता खत्म हो सकती है।
प्रश्न ८अबतक ऐसे हिंसक बयानों के लिए किन सांसदों को डिसक्वालिफाई किया गया है? @AskPerplexity 
उत्तर: अब तक सिर्फ हिंसक बयान (violence-inciting speech) या धमकी के लिए किसी सांसद की सदस्यता सीधे तौर पर रद्द (disqualify) करने का कोई जाना-माना उदाहरण नहीं मिलता।
अक्सर सांसदों को ऐसे मामलों में संसदीय निलंबन, चेतावनी या अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ता है, लेकिन डिसक्वालिफिकेशन आमतौर पर तभी होता है जब अदालत में गंभीर आपराधिक सजा या भ्रष्टाचार जैसे बड़े कारण साबित हो जाएँ।
प्रश्न ९: सांसदों के disqualification का क्या परिणाम होता है? @AskPerplexity 
उत्तर: सांसद के डिसक्वालिफिकेशन के बाद उनकी संसद सदस्यता तुरंत खत्म हो जाती है और वे सांसद के अधिकार, वेतन-सुविटीधाएं, और वोटिंग का अधिकार भी खो देते हैं।
इसके बाद उस सीट के लिए उपचुनाव (by-election) कराया जाता है, जिससे नया सांसद चुना जा सके।
प्रश्न १० अंतिम प्रश्न @AskPerplexity 
एक बार सांसद डिसक्वालिफाई हो जाते है तो फिर भी वो कैसे जनरल इलेक्शन में फिर से सहभाग लेते हैं?
Cc: @ECISVEEP @LokSabhaSectt @Rajyasabhasectt @rashtrapatibhvn 
उत्तर: अच्छा सवाल है! अगर सांसद किसी अपराध में दोषी पाकर डिसक्वालिफाई होते हैं और उन्हें अदालत से दो साल या उससे ज़्यादा की सजा मिलती है, तो वे सजा की तारीख से छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकते—ऐसा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act, 1951) में प्रावधान है।
अगर उनकी सजा कोर्ट में अपील पर स्थगित (stay) हो जाती है या बरी हो जाते हैं, तो वे फिर से चुनाव में भाग ले सकते हैं।
निष्कर्ष: पार्लियामेंट्री प्रिविलेज कानून एवं जनप्रतिनिधित्व के कानूनों में संशोधन की आवश्यकता है।

ए आय संग बाते: हिंदू मंदिरों का धन

प्रश्न १: जय श्री राधे @grok
मद्रास हाईकोर्ट के उस केस की पूरी जानकारी दीजिए जिसमें कोर्ट ने कहा है हिंदू मंदिरों का धन केवल मंदिरों का और धार्मिक कार्यों में ही लगाया जाना चाहिए।"
उत्तर: मद्रास हाईकोर्ट का मामला: राम रविकुमार बनाम तमिलनाडु राज्य एवं अन्य (W.P(MD) Nos. 5893, 15498 आदि, 2025)।
न्यायाधीश: एसएम सुब्रमण्यम और जी अरुल मुरुगन।
तारीख: 29 अगस्त 2025।
मुख्य फैसला: कोर्ट ने कहा कि हिंदू मंदिरों के फंड देवता के हैं और केवल धार्मिक उद्देश्यों (मंदिर रखरखाव, उत्सव आदि) के लिए उपयोग होने चाहिए, सरकारी या व्यावसायिक कार्यों (जैसे विवाह हॉल) के लिए नहीं। सरकारी आदेश रद्द किए।
उद्धरण: "मंदिर फंड्स को पब्लिक फंड्स नहीं माना जा सकता, इन्हें केवल धार्मिक कार्यों में लगाएं।" 
विस्तार: livelaw.in पर उपलब्ध।
प्रश्न २: जय श्री राधे @grok
ये मामला कोर्ट में क्यों फाइल किया गया? क्या कारण था इस मामले के पीछे?
उत्तर: मामला राम रविकुमार द्वारा दाखिल किया गया था, जिसमें तमिलनाडु सरकार के 2023-2025 के आदेशों को चुनौती दी गई। कारण: सरकार ने मंदिर फंड्स से 27 मंदिरों में 80 करोड़ की लागत से विवाह हॉल बनाने की अनुमति दी थी।
मुख्य तर्क: मंदिर फंड्स देवता के हैं और केवल धार्मिक कार्यों (रखरखाव, उत्सव) के लिए उपयोग होने चाहिए, व्यावसायिक (किराए के हॉल) के लिए नहीं। यह HR&CE एक्ट का उल्लंघन है और भक्तों के अधिकारों पर असर डालता है।
प्रश्न ३: जय श्री राधे @grok
ये HR&CE एक्ट क्या है जरा विस्तार से बताइए?
उत्तर: HR&CE एक्ट का पूरा नाम तमिलनाडु हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ बंदोबस्त अधिनियम, 1959 है। यह तमिलनाडु सरकार द्वारा हिंदू मंदिरों, मठों और धार्मिक संस्थानों के प्रशासन, संपत्ति, फंड्स और रखरखाव को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया कानून है। मुख्य उद्देश्य: मंदिरों की संपत्ति की सुरक्षा, आय का सही उपयोग और प्रशासनिक नियंत्रण। सरकार HR&CE विभाग के माध्यम से इन पर निगरानी रखती है, लेकिन हाल के कोर्ट फैसलों में फंड्स को केवल धार्मिक कार्यों में उपयोग करने पर जोर दिया गया है। विस्तार के लिए: indiacode.nic.in पर देखें।
प्रश्न ४: जय श्री राधे @grok
इस अधिनियम का इतिहास क्या है? क्या ये कोलोनियल पॉलिसी पर आधारित कोई अधिनियम है?
उत्तर: HR&CE एक्ट (तमिलनाडु हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ बंदोबस्त अधिनियम, 1959) का इतिहास ब्रिटिश काल से जुड़ा है। यह 1927 के मद्रास हिंदू धार्मिक बंदोबस्त अधिनियम पर आधारित है, जो ईस्ट इंडिया कंपनी की 1817 की नीतियों से निकला। ब्रिटिशों ने मंदिरों की संपत्ति और राजस्व पर नियंत्रण के लिए ये शुरू किए। आजादी के बाद 1951 का अधिनियम आया, जिसे 1959 में संशोधित किया गया। हां, यह औपनिवेशिक नीतियों पर आधारित है। विस्तार: tn.gov.in/hrce
प्रश्न ५: जय श्री राधे @grok
क्या ऐसे कोई नियम अन्य धर्मों के धार्मिक स्थलों के लिए भी बनाए गए है?
उत्तर: हां, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थलों के लिए भी विशिष्ट कानून हैं, लेकिन वे HR&CE एक्ट से अलग हैं:
- मुस्लिम: वक्फ एक्ट 1995 (2024/2025 संशोधन), वक्फ बोर्ड द्वारा प्रबंधन, अधिक स्वायत्तता लेकिन हालिया बदलावों से सरकारी निगरानी बढ़ी।
- सिख: सिख गुरुद्वारा एक्ट 1925, SGPC जैसे समितियों द्वारा प्रबंधन, कम सरकारी हस्तक्षेप।
- ईसाई/अन्य: सामान्य ट्रस्ट एक्ट 1882 के तहत, कोई भारी सरकारी नियंत्रण नहीं।
हिंदू मंदिरों पर राज्य नियंत्रण अधिक है। विस्तार: Waqf Act, Sikh Gurdwaras Act। 
प्रश्न ६: जय श्री राधे @grok
सरकारी नियंत्रण में ये भेदभाव रूल ऑफ लॉ, नेचुरल जस्टिस, एवं कानून के समक्ष सभी एक समान के नियमों का उल्लंघन करते है या कैसे?
उत्तर: यह एक विवादित मुद्दा है। कुछ विशेषज्ञों और याचिकाओं (जैसे सुप्रीम कोर्ट में) के अनुसार, HR&CE एक्ट हिंदू मंदिरों पर अधिक सरकारी नियंत्रण के कारण आर्टिकल 14 (समानता), प्राकृतिक न्याय और रूल ऑफ लॉ का उल्लंघन करता है, क्योंकि अन्य धर्मों (वक्फ, SGPC) में कम हस्तक्षेप है। हालांकि, मद्रास HC ने 2020 में इसे असंवैधानिक घोषित करने की याचिका खारिज की, कहा कि यह धार्मिक संस्थानों की सुरक्षा के लिए है। बहस जारी है; सुप्रीम कोर्ट डेटा मांग रहा है। विस्तार: barandbench.com, thehindu.com। 
प्रश्न ७: जय श्री राधे @grok 
किस तरह की सुरक्षा और किससे सुरक्षा का हवाला देकर मद्रास हाईकोर्ट ने वो याचिका खारिज की थी? उस याचिका के डिटेल्स दीजिए।
उत्तर:मद्रास HC ने 2020 में Arjunan Elayaraja की याचिका (WP No. 17468/2020) खारिज की, जिसमें HR&CE एक्ट को भेदभावपूर्ण बताया गया था। कोर्ट ने कहा कि एक्ट पूजा के अधिकार को प्रभावित नहीं करता, अन्य धर्मों के लिए भी समान कानून हैं (जैसे वक्फ एक्ट)। सुरक्षा का हवाला: एक्ट मंदिरों की संपत्ति की सुरक्षा, दुरुपयोग रोकने और उचित प्रशासन के लिए है, न कि किसी बाहरी खतरे से। SC ने भी ऐसे कानूनों को वैध माना। विस्तार: indiankanoon.org या HC साइट। 
प्रश्न ८: जय श्री राधे @grok
थोड़ा जल्दी से बताना क्या संपत्ति की सुरक्षा, दुरुपयोग रोकने और उचित प्रशासन की आवश्यकता अन्य धर्मों के पूजास्थलों में नहीं है? क्या उन जगहों पर भ्रष्टाचार की कोई घटना आजतक नहीं हुई है?
उत्तर: हां, अन्य धर्मों के पूजास्थलों में भी संपत्ति सुरक्षा, दुरुपयोग रोकथाम और उचित प्रशासन की जरूरत है। वहां भ्रष्टाचार की घटनाएं हुई हैं, जैसे वक्फ बोर्ड में भूमि घोटाले (दिल्ली, यूपी मामलों में करोड़ों की हेराफेरी), SGPC में लीज अनियमितताएं, और ईसाई संस्थानों में संपत्ति बिक्री में धांधली। कानून भिन्न हैं, लेकिन समस्याएं समान। विस्तार: Waqf Act reports, SGPC news। 
प्रश्न ९ जय श्री राधे @grok
मंदिरों के भ्रष्टाचार से हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं आहत होती है, तो क्या सिख ईसाई मुस्लिम समुदायों के पूजास्थलों में जो धांधलियां होती है, उससे उन समुदायों की भी धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होती? अगर होती है तो फिर इन सभी धांधलियों को रोकने वाला एक समान कानून क्यों नहीं बन सकता?
उत्तर: हां, सिख, ईसाई, मुस्लिम पूजास्थलों में धांधली से उन समुदायों की धार्मिक भावनाएं भी आहत होती हैं। एक समान कानून बनाने का विचार समानता के लिए अच्छा हो सकता है, लेकिन भारत में धार्मिक संस्थाओं के लिए अलग-अलग कानून हैं (संविधान के अनुच्छेद 25-28 के तहत)। यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बहस चल रही है, जो इसे प्रभावित कर सकता है। ऐतिहासिक और राजनीतिक कारणों से अलग एक्ट बने हैं। विस्तार: UCC debates, Waqf Act reports। 
प्रश्न १०: जय श्री राधे @grok 
अब अंतिम प्रश्न। जरा जल्दी उत्तर देना।
वो क्या राजनीतिक कारण है जो अलग अलग कानून का आधार बने है? और इन सबका समाधान क्या है? 
उत्तर: राजनीतिक कारण: ऐतिहासिक (औपनिवेशिक कानूनों की निरंतरता), अल्पसंख्यक अधिकार संरक्षण (अनुच्छेद 25-30), धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या (अल्पसंख्यकों में कम हस्तक्षेप), और वोट बैंक राजनीति। 2025 वक्फ संशोधन से सरकारी नियंत्रण बढ़ा, जो समानता vs. अधिकारों पर बहस छेड़ रहा है।
समाधान: यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू करना, जो व्यक्तिगत/धार्मिक कानूनों को एकीकृत करे (उत्तराखंड 2025 मॉडल)। क्रमिक सुधार या न्यायिक समीक्षा भी विकल्प। विस्तार: UCC बहस, वक्फ रिपोर्ट्स।

ए आय संग बाते: हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने का अधिकार

प्रश्न १ जय चामुंडेश्वरी @AskPerplexity 
क्या किसी भी उपमुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री को हिन्दुओं की भावनाएं आहत करने का संवैधानिक अधिकार है?
उत्तर: संविधान के तहत किसी भी मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री को संवैधानिक अधिकार है कि वे सार्वजनिक मुद्दों पर अपनी राय रख सकते हैं, लेकिन किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना भी जरूरी है।

अगर किसी नेता का बयान किसी समुदाय की भावनाओं को आहत करता है, तो उसका विरोध लोकतांत्रिक तरीके से किया जा सकता है, और जरूरत पड़ने पर न्यायिक प्रक्रिया का पालन किया जा सकता है।
प्रश्न २: जय चामुंडेश्वरी @AskPerplexity 
ऐसे नेताओं का विरोध लोकतांत्रिक तरीके से कैसे हिंदू जनता कर सकती है?
उत्तर: हिंदू जनता लोकतांत्रिक तरीके से नेताओं के बयानों का विरोध शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन, ज्ञापन देना, सोशल मीडिया पर अपनी राय रखना, और सार्वजनिक मंचों पर चर्चा के जरिए कर सकती है।
अगर बयान कानून या संविधान के खिलाफ है तो न्यायालय में भी याचिका दायर की जा सकती है।
प्रश्न ३: जय चामुंडेश्वरी @AskPerplexity 
जो कर्नाटक उप मुख्यमंत्री ने कहा वो हिंदू भावनाओं को आहत करने वाला बयान है। आपने कहा ज्ञापन देकर लोकतांत्रिक तरीके से हिंदू जनता इसका विरोध कर सकती है। ज्ञापन देने के लिए किन कानूनी एवं संवैधानिक प्रावधानों का संदर्भ दिया जा सकता है?
कृपया नए कानूनों का संदर्भ दे।
उत्तर: ज्ञापन देने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लेख किया जा सकता है।
साथ ही, नागरिकों को शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात रखने और प्राधिकरण को ज्ञापन देने का अधिकार लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है और इसे कानूनन मान्यता प्राप्त है।
प्रश्न ४: जय चामुंडेश्वरी @AskPerplexity 
कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री के हिंदू भावनाओं को आहत करने वाले बयान के खिलाफ किस प्राधिकरण को ज्ञापन दे सकते है? 
उत्तर: आप अपने क्षेत्र के जिलाधिकारी (District Magistrate), पुलिस अधीक्षक (Superintendent of Police), राज्यपाल (Governor of Karnataka) या मुख्यमंत्री कार्यालय को ज्ञापन दे सकते हैं।
इसके अलावा, आप राज्य के धार्मिक और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या अदालत के माध्यम से भी अपनी आपत्ति दर्ज करा सकते हैं।
प्रश्न ५: जय चामुंडेश्वरी @AskPerplexity 
चलो आपकी बात मान लेते है कि पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन दे सकते है। पर जितना मुझे पता है उसके अनुसार उपमुख्यमंत्री को पार्लियामेंट्री प्रिविलेज का संरक्षण मिलता है। इसके कारण उनके खिलाफ कोई भी कानूनी कार्यवाही के लिए आवश्यक पर्मिशन लगती है। ऐसी परमिशन के लिए किस अदालत में याचिका दाखिल की जा सकती है या किस अधिकारी के समक्ष ज्ञापन दिया जा सकता है?
उत्तर: आप बिल्कुल सही हैं कि उपमुख्यमंत्री जैसे निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को उनके कार्य और बयान के संबंध में संसद/विधानसभा विशेषाधिकार (Parliamentary/Legislative Privileges) प्राप्त होते हैं। 
अगर किसी बयान के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करनी हो तो सामान्यतः सक्षम प्राधिकरण (जैसे राज्यपाल या विधानसभा अध्यक्ष) से परमिशन (सанк्शन) आवश्यक होती है। 
फिर भी, पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन देना या अपनी आपत्ति दर्ज कराना पूरी तरह लोकतांत्रिक और वैध तरीका है; कानून की प्रक्रिया के अगले कदम के लिए अधिकृत प्राधिकारी द्वारा अनुमति ली जाती है। 
ज्ञापन में आप संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) और 25 का उल्लेख कर सकते हैं कि आपकी धार्मिक भावनाओं की रक्षा जरूरी है, और संबंधित प्राधिकरण से उचित कार्रवाई या अनुशंसा की मांग कर सकते हैं।
प्रश्न ६: जय चामुंडेश्वरी @AskPerplexity 
नए अपराधिक कानूनों के तहत, जो भारत में लागू है, किन प्रावधानों के तहत धार्मिक भावनाओं को आहत करने की केस दर्ज हो सकती है?
उत्तर: भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) के तहत धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के मामले में धारा 298 (एक व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के जानबूझकर इरादे से शब्द बोलना, ध्वनियाँ या इशारे करना, या वस्तुएँ रखना) और धारा 299 (किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य) के तहत केस दर्ज हो सकता है। ये दोनों धाराएँ सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने और लोगों की आस्थाओं की रक्षा करने के लिए हैं। 
धारा 298 BNS (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले व्यक्ति के प्रति अपराध) 
क्या अपराध है?
कोई भी व्यक्ति यदि किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के जानबूझकर इरादे से उस व्यक्ति के सुनने में कोई शब्द बोले, कोई आवाज निकाले, कोई इशारा करे या कोई वस्तु उसकी दृष्टि में रखे, तो वह इस धारा के तहत दंडनीय होगा।
दंड:
इसमें एक वर्ष तक का कारावास, या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
धारा 299 BNS (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य) 
क्या अपराध है?
यह धारा किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करने या करने का प्रयास करने वाले जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्यों को अपराध मानती है, जिसका उद्देश्य उन भावनाओं को ठेस पहुँचाना हो।
उद्देश्य:
यह सुनिश्चित करना कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता धार्मिक कलह का साधन न बने और किसी भी धर्म का अपमान न हो।
मुख्य अंतर
धारा 298:
यह व्यक्तिगत स्तर पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने पर लागू होती है, खासकर जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के प्रति ऐसा कार्य करता है। 
धारा 299:
यह एक वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों के खिलाफ किए गए जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्यों को लक्षित करती है, जिससे व्यापक स्तर पर धार्मिक सद्भाव प्रभावित हो सकता है। 
यह महत्वपूर्ण है कि इन अपराधों में "जानबूझकर इरादे" या "जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्यों" का तत्व हो
नोट: इस प्रश्न का उत्तर @AskPerplexity 
कई बार बताने पर भी गलत दे रहा था।
प्रश्न ७: जय चामुंडेश्वरी @AskPerplexity 
क्या न्याय के लिए कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री के विरुद्ध इन सभी संवैधानिक एवं bns की धाराओं के तहत fir की जा सकती हैं?
उत्तर: आपका सवाल बिल्कुल अहम है—BNS की धारा 298 और 299 के तहत धार्मिक भावनाओं को आहत करने के मामलों में FIR दर्ज करना कानूनी तौर पर संभव है, लेकिन जब बात उपमुख्यमंत्री जैसे उच्च पदाधिकारी की हो, तो उनके खिलाफ सीधे FIR दर्ज करने से पहले संविधान के तहत विशेष सुरक्षा (जैसे संसद/विधानसभा विशेषाधिकार) का ध्यान रखना जरूरी है।

ऐसी स्थिति में, पहले सक्षम प्राधिकारी (जैसे राज्यपाल या विधानसभा अध्यक्ष) से अनुमति/संक्शन लेना जरूरी होगा, और उसके बाद ही पुलिस या कोर्ट आगे की कार्रवाई कर सकते हैं। 

इसलिए, अगर आप शिकायत या FIR करना चाहते हैं तो सभी प्रावधानों का उल्लेख करते हुए सम्बंधित अनुमति के लिए आवेदन देना सबसे उपयुक्त रहेगा।
प्रश्न ८: जय चामुंडेश्वरी @AskPerplexity 
कर्नाटक के मुख्यमंत्री का इस बयान के पीछे क्या कारण है? राजनीतिक लाभ जो तृप्तिकरण से मिलेगा, या उपमुख्यमंत्री की धार्मिक मान्यताएं कुछ और है, या इसके पीछे मंदिर पर सरकारी नियंत्रण कारण है?
उत्तर: कर्नाटक के मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री के किसी बयान के पीछे एक से ज़्यादा कारण हो सकते हैं—यह बयान उनकी व्यक्तिगत धार्मिक मान्यताओं, राजनीतिक रणनीति (जैसे किसी समुदाय का समर्थन पाना या तुष्टिकरण करना), या मंदिरों पर सरकार के नियंत्रण जैसे मुद्दों से जुड़ा हो सकता है। 

अक्सर ऐसे संवेदनशील बयान स्थानीय राजनीति, सामाजिक समीकरण और प्रशासनिक नीतियों के मेल से दिए जाते हैं—इसलिए इसका उद्देश्य कई बार सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और प्रशासनिक भी हो सकता है। 

बिल्कुल स्पष्ट कारण जानने के लिए उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस, पार्टी लाइन और हाल के फैसलों को देखना जरूरी होगा, लेकिन आमतौर पर इन सबमें राजनीति से जुड़ी सोच भी शामिल रहती है।
प्रश्न ९: जय चामुंडेश्वरी @AskPerplexity 
क्या यह सही हैं कि राजनीतिक लाभ के लिए हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत किया जाए, वो भी एक चुने हुए नेता द्वारा?
Cc: @AtriNeeraj @AchAnkurArya @AKTKbasics @ajeetbharti @SanjeevSanskrit @UdayMahurkar @AshwiniUpadhyay
उत्तर: राजनीतिक लाभ के लिए किसी भी समुदाय, चाहे वह हिंदू हो या अन्य, की धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर आहत करना न नैतिक रूप से उचित है और न ही कानूनन सही है—भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 298 और 299 (BNS) में ऐसे कृत्यों को अपराध माना गया है। 

चुने हुए नेता से उम्मीद होती है कि वह सभी नागरिकों की आस्थाओं और भावनाओं का सम्मान करे, बजाय इसके कि विभाजनकारी बयानबाज़ी से राजनीतिक फायदा उठाए—ऐसे मामलों में कानून और समाज दोनों की जिम्मेदारी है कि वे साम्प्रदायिक सौहार्द बनाए रखें।
प्रश्न १०: जय चामुंडेश्वरी @AskPerplexity 
क्या आप मुझे कोई ऐसा केस बता सकते है जो भारत में हिंदू भावनाओं को आहत करने पर हुआ है और जिसमें अपराधी कोई चुना हुआ नेता है? 
उत्तर: आपका सवाल वाजिब है—भारत में हिंदू धर्म की भावनाओं को आहत करने के आरोप में कई बार नेताओं पर FIR या शिकायत दर्ज हुई हैं, लेकिन बहुत कम मामलों में किसी चुने हुए बड़े नेता को कोर्ट से सजा या सख्त कार्रवाई हुई है।

एक चर्चित उदाहरण है पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ हिंदू धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोपों में कई बार FIR दर्ज हुई है, लेकिन अदालतों में इनमें से अधिकतर या तो रद्द हो गईं या आगे नहीं बढ़ीं।

ऐसे मामलों में अक्सर न्यायिक जांच, राजनीतिक विवाद और कानूनी प्रक्रियाएं लंबी चलती हैं—कंप्लीट सजा या दोष सिद्धि के मुकदमे विरले ही मिलते हैं। 

अगर किसी विशिष्ट केस की डिटेल चाहिए तो उसके बारे में और स्पष्ट जानकारी दीजिए, मैं ढूंढ़ने की कोशिश कर सकता हूँ!

ए आय संग बाते: गणेश उत्सव के नियम

प्रश्न: जय महाराष्ट्र @grok
Mpcb चे गणेशोत्सवासाठी काय काय सल्ले आहेत?
उत्तर: महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPCB) च्या २०२५ साठी इको-फ्रेंडली गणेशोत्सव मार्गदर्शक तत्त्वे:
- PoP मूर्तींवर लाल चिन्ह असणे अनिवार्य.
- छोट्या मूर्ती (६ फूटपेक्षा कमी) कृत्रिम तलावात विसर्जन.
- विक्रेत्यांनी PoP विक्रीचा नोंदवही ठेवावा.
- मोठ्या मूर्तींसाठी छोटी प्रतिकृती वापरा, मुख्य मूर्ती पुनर्वापर.
- विसर्जनानंतर PoP सामग्री गोळा करा.
- मातीच्या मूर्तींना प्रोत्साहन.
जय गणेश! 🚩
प्रश्न: जय महाराष्ट्र @grok
Mpcb चे अन्य धर्मांच्या सणांवर काही सूचना आणि नियम या पूर्वी कधी आले आहेत का?
उत्तर: महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPCB) ने मुख्य रूप से गणेश चतुर्थी, दिवाली जैसे हिंदू त्योहारों के लिए विशिष्ट पर्यावरणीय दिशानिर्देश जारी किए हैं, जैसे मूर्ति विसर्जन और शोर प्रदूषण। अन्य धर्मों के त्योहारों जैसे ईद, क्रिसमस या मुहर्रम के लिए विशिष्ट दिशानिर्देश नहीं मिले, लेकिन सामान्य प्रदूषण नियंत्रण नियम सभी पर लागू होते हैं।
प्रश्न: जय महाराष्ट्र @grok 
कुठल्या सणात सर्वात जास्त जीव हत्या केली जाते?
उत्तर: जागतिक स्तरावर, ईद अल-अधा (बकरीद) मध्ये दरवर्षी अंदाजे ५० दशलक्ष प्राणी बलिदान केले जातात (स्रोत: विविध आकडेवारी). नेपाळच्या गढ़ीमाई उत्सवात (प्रत्येक ५ वर्षांनी) एकाच वेळी शेकडो हजार प्राण्यांची हत्या होते (२०२४ मध्ये ४,२००+). भारतातही काही सणांत प्राणिबलिदान होते, पण प्रमाण जास्त ईदमध्ये.
प्रश्न: जय महाराष्ट्र @grok
जीव हत्येचा पर्यावरणावर काय परिणाम होतो?
उत्तर: जीव हत्येचा (पशु वधाचा) पर्यावरणावर मुख्य परिणाम:
- हरितगृह वायू उत्सर्जन: पशुपालन १४.५% जागतिक उत्सर्जनात योगदान देतो (FAO).
- जल प्रदूषण: कत्तलखान्यांमधील कचरा नद्या प्रदूषित करतो.
- वननाश: चारा उत्पादनासाठी जंगले तोडली जातात.
- जैवविविधता हानी आणि पाणी वापर वाढ.
स्रोत: Wikipedia, ASPCA, Stanford. यावर नियंत्रणासाठी शाश्वत पद्धती आवश्यक. जय गणेश! 🚩
प्रश्न: जय महाराष्ट्र @grok पशु वधाचे इतके दुष्परिणाम पर्यावरणावर होतात तर मग mpcb ने कधीच पशु वधासाठी जे सण असतात त्यावर कुठलीच guidelines का नाही दिली?
उत्तर: जय महाराष्ट्र! MPCB मुख्यतः जल, वायु आणि ध्वनी प्रदूषणावर मार्गदर्शक तत्त्वे जारी करते, जसे गणेश विसर्जन किंवा दिवाळीसाठी. पशु वधाशी संबंधित प्रदूषण (जसे कचरा) सामान्य नियमांद्वारे नियंत्रित आहे, परंतु विशिष्ट सणांसाठी स्वतंत्र गाइडलाइन्स नाहीत. हे प्राणी कल्याण कायदे आणि स्थानिक नियमांद्वारे हाताळले जातात (स्रोत: MPCB वेबसाइट आणि संबंधित कायदे). जय गणेश! 🚩
प्रश्न: जय महाराष्ट्र @grok
पशु वधानंतर जलाशये दूषित होतात, तर जल प्रदूषण थांबवण्यासाठी साठी कुठलेच नियम mpcb का देत नाही? Mpcp ला हा प्रश्न विचारणारा एक उत्तर लिहून द्या.
उत्तर: जय महाराष्ट्र!
MPCB ला विचारण्यासाठी नमुना उत्तर:
"प्रिय MPCB,
पशु वधानंतर जलाशय दूषित होतात. जल प्रदूषण रोखण्यासाठी विशिष्ट नियम का नाहीत? गणेशोत्सवासाठी मार्गदर्शक आहेत, मग बकरीदसारख्या सणांसाठी का नाही? कृपया स्पष्टीकरण द्या.
धन्यवाद." 
हे ईमेल किंवा त्यांच्या वेबसाइटवर पाठवा. 🚩
प्रश्न: जय महाराष्ट्र @grok
असे कुठले सण आहेत ज्याच्यात अनेक झाडं कापली जातात आणि केक देखील कापले जातात?
उत्तर: जय महाराष्ट्र!

ख्रिसमस सणात पारंपरिकपणे ख्रिसमस ट्री (पाइन झाडे) कापली जातात आणि ख्रिसमस केक कापला जातो. काही ठिकाणी पर्यावरणस्नेही कृत्रिम झाडे वापरली जातात. अन्य सणांतही (जसे काही लग्न समारंभ) केक कापला जातो, पण झाड कापणे कमी. स्रोत: विविध सांस्कृतिक अभ्यास. 🚩
प्रश्न: जय महाराष्ट्र @grok
मोठ्या प्रमाणावर झाडे कापण्याचा काय परिणाम पर्यावरणावर होतो?
उत्तर: जय महाराष्ट्र!
मोठ्या प्रमाणावर झाडे कापण्याचे (वनोन्मूलनाचे) मुख्य पर्यावरणीय परिणाम:
- जैवविविधतेची हानी: प्राणी आणि वनस्पतींच्या निवासस्थानांचा नाश, अनेक प्रजाती नामशेष होण्याचा धोका.
- हरितगृह वायू वाढ: CO₂ उत्सर्जन वाढून हवामान बदल तीव्र होतो.
- जलचक्र व्यत्यय: पाणी कमी होऊन दुष्काळ आणि कमी पाऊस.
- मातीची धूप आणि पूर: माती खराब होऊन पूर वाढतात.
स्रोत: Pachamama Alliance, Earth.Org. जय गणेश! 🚩
प्रश्न:जय महाराष्ट्र @grok जसे आधी सांगितले की एक सण असा आहे जिथे झाडे आणि केक कापली जातात, त्या सणात महाराष्ट्रात किती झाडे मागील दहा वर्षात कापली गेली?
उत्तर: जय महाराष्ट्र!
महाराष्ट्रात ख्रिसमससाठी मोठ्या प्रमाणात झाडे कापण्याची प्रथा फारशी नाही. उपलब्ध आकडेवारीनुसार (FAO, Indian forest reports), गेल्या १० वर्षांत यासाठी विशिष्ट संख्या उपलब्ध नाही, कारण बहुतेक कृत्रिम किंवा पॉटेड झाडे वापरली जातात. देशपातळीवर आयात किंवा स्थानिक उत्पादन मर्यादित आहे. अधिक माहितीसाठी Mahaforest.gov.in पहा.
जय गणेश! 🚩
उत्तर: जय महाराष्ट्र!

MPCB ने कोणत्याही सणासाठी झाडे कापण्याबाबत किंवा न कापण्याबाबत विशिष्ट नियम लागू केलेले नाहीत. झाडे कापणे हे वन विभाग आणि महाराष्ट्र (शहरी क्षेत्र) झाड संरक्षण कायद्याने नियंत्रित आहे. सणांसाठी MPCB चे मार्गदर्शक मुख्यतः जल, वायु प्रदूषणावर असतात, जसे गणेशोत्सवासाठी. स्रोत: MPCB दस्तऐवज आणि अहवाल.
जय गणेश! 🚩
प्रश्न: जय महाराष्ट्र @grok 
झाडे कापल्याने, पशु वध केल्याने पर्यावरणावर मोठ्या प्रमाणावर विपरीत परिणाम होत आहेत तरीही केवळ गणेश उत्सवात का नियम आहेत आणि अन्य धर्मांच्या सणावर का नियम नाहीत?
उत्तर: जय महाराष्ट्र!
MPCB नियम प्रदूषणावर आधारित आहेत. गणेशोत्सवासाठी मूर्ती विसर्जनामुळे जलप्रदूषण होत असल्याने विशिष्ट मार्गदर्शक (PoP बंदी, कृत्रिम तलाव) आहेत.
अन्य सणांसाठी:
- बकरीदमध्ये पशु वधानंतर कचरा व्यवस्थापनासाठी MPCB चे ठोस नियम (slaughterhouse waste circulars) आहेत.
- ख्रिसमससाठी झाड कापणे वन कायद्याने नियंत्रित.
सर्वांसाठी सामान्य पर्यावरण नियम लागू. स्रोत: MPCB दस्तऐवज.
जय गणेश! 🚩

ए आय संग बाते: #काला_कानून_वापस_लो

#काला_कानून_वापस_लो ये क्यों ट्रेंड हो रहा है? @ grok यह हैशटैग हाल के सुप्रीम कोर्ट फैसले के विरोध में...