AI संग वार्ता के थ्रेड का संकलन
विषय: महुआ की अमित शाह के लिए बयानबाजी
प्रश्न १: क्या पार्लियामेंट्री प्रिविलेज के नाम पर अन्य सांसद या मंत्री को जान से मारने जैसे बयान दे सकते है? @AskPerplexity
उत्तर: नहीं, पार्लियामेंट्री प्रिविलेज (संसदीय विशेषाधिकार) के तहत कोई सांसद या मंत्री किसी अन्य सांसद या मंत्री को जान से मारने या हिंसा भड़काने जैसे बयान नहीं दे सकते।
ऐसे बयान न सिर्फ कानूनन अपराध हैं बल्कि संसद की मर्यादा और लोकतांत्रिक मूल्यों के भी खिलाफ होते हैं – इस तरह की भाषा के लिए कानूनी कार्यवाही भी हो सकती है।
प्रश्न २: क्या कानूनी कार्यवाही हो सकती है? @AskPerplexity
उत्तर: हाँ, ऐसे बयानों पर भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत गंभीर कानूनी कार्यवाही हो सकती है, जिनमें आपराधिक धमकी (धारा 506) या नेताओं के विरुद्ध अभद्र/हिंसक भाषा (धारा 504/505) शामिल है।
संसदीय विशेषाधिकार किसी भी प्रकार की हिंसा, हत्या या भड़काऊ टिप्पणी से सुरक्षा नहीं देते—ऐसा करने पर संसद की आचार समिति जांच कर सकती है, साथ में पुलिस भी FIR दर्ज कर सकती है और अदालत में मुकदमा चलाया जा सकता है।
प्रश्न ३: आप इस प्रश्न का उत्तर नए अपराधिक कानूनों के आधार पर फिर से दीजिए। @AskPerplexity
उत्तर: नई भारतीय आपराधिक संहिता (BNS), भारतीय न्याय संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) के तहत भी संसद या बाहर किसी भी सार्वजनिक व्यक्ति के खिलाफ हत्या, हिंसा या जान से मारने की धमकी देने पर सख्त कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
ऐसे बयान अब भी 'आपराधिक धमकी' (BNS धारा 351), 'सार्वजनिक शांति भंग करने' (धारा 203, 204 BNS) तथा 'भड़काऊ भाषण' के तहत अपराध माने जाते हैं और पुलिस FIR दर्ज करके गिरफ्तारी कर सकती है, साथ ही संसद की आचार समिति द्वारा अलग से अनुशासनात्मक जाँच भी संभव है।
उत्तर अधूरा लगा तो गूगल किया और विस्तारित उत्तर
नई भारतीय आपराधिक संहिता (BNS), भारतीय न्याय संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) के तहत भी संसद या बाहर किसी भी सार्वजनिक व्यक्ति के खिलाफ हत्या, हिंसा या जान से मारने की धमकी देने पर सख्त कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
ऐसे बयान अब भी 'आपराधिक धमकी' (BNS धारा 351), 'सार्वजनिक शांति भंग करने' (धारा 203, 204 BNS) तथा 'भड़काऊ भाषण' के तहत अपराध माने जाते हैं और पुलिस FIR दर्ज करके गिरफ्तारी कर सकती है, साथ ही संसद की आचार समिति द्वारा अलग से अनुशासनात्मक जाँच भी संभव है।
प्रश्न ४: पर महुआ मोइत्रा जिन्होंने @AmitShah के लिए हिंसक बयान दिया है वो तो सांसद है। फिर उनके खिलाफ fir करने के लिए कोई विशेष अनुमति लगेगी क्या? @AskPerplexity
उत्तर: नहीं, सांसद या किसी जनप्रतिनिधि के खिलाफ FIR दर्ज करने के लिए किसी विशेष अनुमति (जैसे संसद या स्पीकर की मंजूरी) की जरूरत नहीं होती, अगर उन्होंने किसी आपराधिक कानून का उल्लंघन किया है।
पुलिस कानून के अनुसार सीधे FIR दर्ज कर सकती है, और बाद में संसद की अनुशासन समिति भी अलग से जांच कर सकती है—सांसदों को इस मामले में कोई अतिरिक्त कानूनी छूट नहीं होती।
प्रश्न ५: बड़े विचित्र हो @AskPerplexity कल कह रहे थे ज्ञापन देना पड़ेगा आज कह रहे हो कोई अनुमति नहीं लगेगी। कल के प्रश्न कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री थे, आजके प्रश्न में सांसद है।
उत्तर: आपका सवाल बड़ा अच्छा है और ये कन्फ्यूजन कई जगह दिखती है।
सांसद या केंद्रीय मंत्री के खिलाफ FIR दर्ज करने के लिए आमतौर पर कोई विशेष अनुमति (जैसे संसद अध्यक्ष या गवर्नर की संस्तुति) नहीं चाहिए, जब उनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले हों, जैसे हत्या या हिंसा की धमकी (जो नए कानूनों में भी शामिल हैं)।
हालांकि, अगर पुलिस आगे गिरफ्तारी या चार्जशीट फाइल करना चाहती है, तो कुछ मामलों में संसद के सत्र के दौरान संसद अध्यक्ष को सूचना देना जरूरी हो सकता है, लेकिन FIR लिखवाने या प्रारंभिक जांच के लिए अनुमति नहीं चाहिए—सामान्य नागरिकों की तरह ही कानून लागू होता है।
प्रश्न ६ अगर कोई केस बनती है तो फिर संसद में क्या कोई विशेष समिति का गठन किया जाता है, ऐसे मामलों की जांच के लिए? @AskPerplexity
उत्तर: हाँ, ऐसे मामलों में संसद में 'आचार समिति' (Ethics Committee) बनाई जाती है या उसे जांच सौंपी जाती है, जो सांसद के आचरण की जाँच करती है।
अगर मामला बहुत गंभीर हो तो संसद में स्पीकर के आदेश पर विशेष समिति भी गठित हो सकती है, जो जांच रिपोर्ट बनाकर अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश करती है—फैसला संसद के नियमों के मुताबिक होता है।
प्रश्न ७: क्या ऐसे सांसद डिसक्वालिफाई होते है? @AskPerplexity
उत्तर: अगर सांसद के खिलाफ संसद की समिति या अदालत में गंभीर आरोप साबित हो जाते हैं, तो संसद उन्हें डिसक्वालिफाई कर सकती है—जैसे सजा या नैतिक दोष साबित होना।
फैसला संसद के नियम, समिति की सिफारिश और स्पीकर/राज्यसभा चेयरमैन के आदेश पर निर्भर करता है, और कई बार अदालत के आदेश के बाद भी सदस्यता खत्म हो सकती है।
प्रश्न ८अबतक ऐसे हिंसक बयानों के लिए किन सांसदों को डिसक्वालिफाई किया गया है? @AskPerplexity
उत्तर: अब तक सिर्फ हिंसक बयान (violence-inciting speech) या धमकी के लिए किसी सांसद की सदस्यता सीधे तौर पर रद्द (disqualify) करने का कोई जाना-माना उदाहरण नहीं मिलता।
अक्सर सांसदों को ऐसे मामलों में संसदीय निलंबन, चेतावनी या अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ता है, लेकिन डिसक्वालिफिकेशन आमतौर पर तभी होता है जब अदालत में गंभीर आपराधिक सजा या भ्रष्टाचार जैसे बड़े कारण साबित हो जाएँ।
प्रश्न ९: सांसदों के disqualification का क्या परिणाम होता है? @AskPerplexity
उत्तर: सांसद के डिसक्वालिफिकेशन के बाद उनकी संसद सदस्यता तुरंत खत्म हो जाती है और वे सांसद के अधिकार, वेतन-सुविटीधाएं, और वोटिंग का अधिकार भी खो देते हैं।
इसके बाद उस सीट के लिए उपचुनाव (by-election) कराया जाता है, जिससे नया सांसद चुना जा सके।
प्रश्न १० अंतिम प्रश्न @AskPerplexity
एक बार सांसद डिसक्वालिफाई हो जाते है तो फिर भी वो कैसे जनरल इलेक्शन में फिर से सहभाग लेते हैं?
Cc: @ECISVEEP @LokSabhaSectt @Rajyasabhasectt @rashtrapatibhvn
उत्तर: अच्छा सवाल है! अगर सांसद किसी अपराध में दोषी पाकर डिसक्वालिफाई होते हैं और उन्हें अदालत से दो साल या उससे ज़्यादा की सजा मिलती है, तो वे सजा की तारीख से छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकते—ऐसा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act, 1951) में प्रावधान है।
अगर उनकी सजा कोर्ट में अपील पर स्थगित (stay) हो जाती है या बरी हो जाते हैं, तो वे फिर से चुनाव में भाग ले सकते हैं।
निष्कर्ष: पार्लियामेंट्री प्रिविलेज कानून एवं जनप्रतिनिधित्व के कानूनों में संशोधन की आवश्यकता है।
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