Followers

Sunday, 13 August 2023

आमुक्ति का करिश्मा: बचपन के दिन: भाग ३

       


कृपया, पूरी कथा पढ़ने के लिए अनुक्रम पर जाए|


अगली सुबह करेले के चिप्स तले जा रहे थे और आमुक्ति उस भिनिसी कडवी खुशबु से उठ गयी| तैयार हुई और कमरे के बाहर आई| फिर उसने बताया, “ऐसी खुशबु कई दशकों बाद सूंघने मिली हैं|” और उसने खाना शुरू किया|

आगे आमुक्ति ने कहा, “बचपन के दिन भी क्या दिन थे| माँ सारे काम प्यार से करवा लेती थी, ये कहकर की हर एक को घर के काम करते आना चाहिए| न जाने कब कौनसा काम करना पड़ जाए| और खेती के काम भी बाबा यही कहकर करवाते थे| लड़के-लड़की का भेद नहीं होता था काम करने के लिए| मेरी दादी कहती थी कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता और न ही कोई काम स्त्री का या कोई काम पुरुष का होता हैं; कुछ एक्का दुक्का काम छोड़ दिए तो|”


लेखिका: रिंकू ताई

कृपया, पूरी कथा पढ़ने के लिए अनुक्रम पर जाए|


 

No comments:

Post a Comment

अग्नि तापलिया काया चि होमे

अग्नि तापलिया काया चि होमे । तापत्रयें संतप्त होती । संचित क्रियमाण प्रारब्ध तेथें । न चुके संसारस्थिति । राहाटघटिका जैसी फिरतां...