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अगली सुबह करेले के
चिप्स तले जा रहे थे और आमुक्ति उस भिनिसी कडवी खुशबु से उठ गयी| तैयार हुई और
कमरे के बाहर आई| फिर उसने बताया, “ऐसी खुशबु कई दशकों बाद सूंघने मिली हैं|” और
उसने खाना शुरू किया|
आगे आमुक्ति ने कहा,
“बचपन के दिन भी क्या दिन थे| माँ सारे काम प्यार से करवा लेती थी, ये कहकर की हर
एक को घर के काम करते आना चाहिए| न जाने कब कौनसा काम करना पड़ जाए| और खेती के काम
भी बाबा यही कहकर करवाते थे| लड़के-लड़की का भेद नहीं होता था काम करने के लिए| मेरी
दादी कहती थी कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता और न ही कोई काम स्त्री का या कोई
काम पुरुष का होता हैं; कुछ एक्का दुक्का काम छोड़ दिए तो|”
लेखिका: रिंकू ताई
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