Followers

Sunday, 13 August 2023

आमुक्ति का करिश्मा: विवाह: भाग ४

       


कृपया, पूरी कथा पढ़ने के लिए अनुक्रम पर जाए|


आमुक्ति ने कहा, “वो ब्राम्हण थी| उनके गाव अनंथवूर से हर साल इस मेले के लिए पैदल आती थी| रास्ते में जो भी मिले, सबको साथ लेकर आगे बढती थी| वो सही मायने में धर्म की सैनिक थी और लोगों को अंग्रेजो के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रोत्साहित भी करती थी| भले ही आज इतिहास की पुस्तकों में उनका नाम नहीं हैं पर मेरे लिए वो गुरु से कम नहीं थी| उनके साथ रहकर पंद्रह दिन कहा बित गए, पता ही नहीं चला| आखरी दिन उन्होंने मेरे दादा-दादी को अपने पास बुलाया और एक नारियल और रूपया देते हुए कहा, ‘आपकी आमुक्ति मुझे अपने बेटे मेघश्याम के लिए उपयुक्त वधु लगी| अगर आपकी सहमती हो तो मैं उसे अपने घर की बहु बनाना चाहती हु!’ ये सुन दादा-दादी को मानो स्वर्ग का सुख मिल गया हो|”

किरण ने कहा, “अच्छा! ऐसे पहले के ज़माने में विवाह तय होते थे| और महिलाए भी अपनी और से नाता तय कर सकती थी|”


लेखिका: रिंकू ताई

कृपया, पूरी कथा पढ़ने के लिए अनुक्रम पर जाए|


 

No comments:

Post a Comment

अग्नि तापलिया काया चि होमे

अग्नि तापलिया काया चि होमे । तापत्रयें संतप्त होती । संचित क्रियमाण प्रारब्ध तेथें । न चुके संसारस्थिति । राहाटघटिका जैसी फिरतां...