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आमुक्ति ने कहा, “वो
ब्राम्हण थी| उनके गाव अनंथवूर से हर साल इस मेले के लिए पैदल आती थी| रास्ते में
जो भी मिले, सबको साथ लेकर आगे बढती थी| वो सही मायने में धर्म की सैनिक थी और
लोगों को अंग्रेजो के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रोत्साहित भी करती थी| भले ही आज
इतिहास की पुस्तकों में उनका नाम नहीं हैं पर मेरे लिए वो गुरु से कम नहीं थी|
उनके साथ रहकर पंद्रह दिन कहा बित गए, पता ही नहीं चला| आखरी दिन उन्होंने मेरे
दादा-दादी को अपने पास बुलाया और एक नारियल और रूपया देते हुए कहा, ‘आपकी आमुक्ति
मुझे अपने बेटे मेघश्याम के लिए उपयुक्त वधु लगी| अगर आपकी सहमती हो तो मैं उसे
अपने घर की बहु बनाना चाहती हु!’ ये सुन दादा-दादी को मानो स्वर्ग का सुख मिल गया
हो|”
किरण ने कहा, “अच्छा!
ऐसे पहले के ज़माने में विवाह तय होते थे| और महिलाए भी अपनी और से नाता तय कर सकती
थी|”
लेखिका: रिंकू ताई
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