कृपया, पूरी कथा पढ़ने के लिए अनुक्रम पर जाए|
आमुक्ति ने कहा, “हा, ये
जगह-जगह लगने वाले मेले न केवल अध्यात्मिक उन्नति के लिए होते थे बल्कि समाज में
एकता का प्रचार करने के लिए भी होते थे और जाती-पाती के भेद से परे होकर रिश्ते तय
होते थे| और ऐसा नहीं था की उची-जाती की लड़की नीची-जाती के लड़के से विवाह नहीं कर
सकती थी| अगर नीची-जाती के लड़के में उतने संस्कार हैं जितने जीवन को उचित तरीके से
जीने के लिए जरुरी हैं, तो ऐसे भी विवाह होते थे| मेरा विवाह तय हो गया और बात यह
भी तय हुई की जब उचित समय आएगा तब मेरा विवाह मेघश्याम से हो जायेगा| उस मेले में
मेरी बड़ी बहन का भी विवाह तय हुआ और मेरे बड़े भाई का भी| मेला खत्म हुआ और फिर तब
से मुझे दादी और माँ ने माहवारी के लक्षणों से अवगत करा दिया| समय रहते बड़ी बहन का
भी विवाह हो गया और एक भाभी भी घर पर आ गयी| और मेरे पंद्रहवे जन्मदिन के दो दिन
बाद मुझे भी माहवारी आ ही गयी|”
लेखिका: रिंकू ताई
कृपया, पूरी कथा पढ़ने के लिए अनुक्रम पर जाए|
No comments:
Post a Comment