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विमुक्ति ने उत्तर दिया,
“हा| और मैं उन विदुषी की बात से प्रभावित हो उनके पीछे जाने लगी और मेरे पीछे
मेरी माँ भी आई| मैं और माँ जब उन विदुषी से मिले तो माँ ने खुश होकर कहा, ‘अरे
कालीताई आप!’ माँ जानती थी उन्हें| फिर माँ ने बताया, ‘आमुक्ति ये कालिताई हैं,
मेरी बचपन की सहेली| प्रणाम करो|’ मैंने जमीन पर घुटनों के बल बैठकर प्रणाम किया|
फिर उसके बाद मैं अपनी माँ से ज्यादा कालिताई के पास ही रहने लगी| उनके साथ ही
मंदिर जाना, भजन करना, उनको भोजन बनाने में मदत करना| मेरी जाती नीची रहने के बाद
भी वो मेरे हाथ का भोजन खाती थी|”
तभी उर्मिला जो काफी देर
से उनकी बाते सुन रही थी, उसने पूछा, “कालिताई कौन जाती की थी?”
लेखिका: रिंकू ताई
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