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अपनी सिसकियों को रोकते
हुए आमुक्ति ने कहा, “एक महीने बाद मेरी भूख मुझे उस खंडहर मंदिर से काफी दूर ले
गयी और मैं रास्ता भूल गयी| एक जगह मुझे दस दरिंदो ने घेर लिया उसमे १५ साल से
लेकर ७५ साल तक के लोग थे| मैंने जरा समय नहीं गवाया, और हाथ में रखे खुरपी से सबसे
बूढ़े दरिन्दे को उसका गला काट कर वही ढेर कर दिया| मेरी आक्रमकता देख उम्र में
सबसे छोटे दरिंदेने मुझे धक्का देकर निचे गिराया और हवस भरी नजरो से वो मुझे घुर
रहा था| उसने लेकिन बचे हुए दरिंदो को ईशारा किया| मैं समझ गयी थी की अब मेरे साथ
क्या होने वाला हैं| मैंने जोर-जोर से शिवमन्त्र का उच्चार करना शुरू कर दिया| अब
बचे हुए में से जो उम्र में सबसे बड़ा था वो मेरी तरफ लपका और उसने मेरे पेट पहने
कपडे को हटाया| गर्भावस्था वाला पेट देख उसे गुस्सा आया और उसने अपने हाथ से मेरे
पेट को बिच से चिर दिया| मैं दर्द से चिल्लाती रही पर उसे दया नहीं आई| दूसरा
दरिंदा आया और उसने मेरे कटे हुए पेट में हाथ दाल कर मेरे एक बच्चे को निकाला|
मेरा बच्चा जिन्दा था| तड़प रहा था| उसके हिलते हुए हाथ पैर मुझे दिख रहे थे| पर उस
निर्दयी ने बिना देरी किये उसका एक टुकड़ा अपने दात से तोडा और उसे कच्चा चबाने
लगा| यह देख मैं और भी पीड़ा से तड़पने लगी थी| उन्होंने मेरे एक बच्चे को मेरे
सामने कच्चा कहा लिया| फिर एक दरिंदा सामने आया और उसने मेरे पेट में फिर से हाथ
डाला| उसे मेरा दूसरा बच्चा भी मिल गया| उसके साथ भी उन्होंने वही किया| मैं तड़पते
हुए, रोते-बिलखते उन्हें देख रही थी, पर कुछ कर नहीं पा रही थी| उनके मरे हुए साथी
को उन्होंने वही जमीन में गाड दिया और मुझे वैसे ही तड़पता हुआ छोड़ कर चले गए| मैं
अपने अंतिम क्षणों में पश्चाताप कर रही थी| और फिर मैं भी मर गयी| जैसे ही मेरी
आत्मा शरीर से बाहर आई मेरे दोनों बच्चों की आत्माए मुझ से जुड़ गयी| तब से मैं उस
खंडहर के आसपास ही भटक रही हु| एर्नाद गाव से लग कर ये जगह थी|”
किरण यह सुनकर डर के
मारे कपने लगी थी| पर उसके मन में प्रश्न था की फिर आमुक्ति की आत्मा इतनी
शक्तिशाली कैसे हुई की उसने बराबर उसी अवस्था की लड़की को चुना और उसके माध्यम से
यहाँ तक आई?
आमुक्ति का दुखद अंत
सुनकर किरण व्याकुल हो उठी| किरण के मन में कई प्रश्न कोलाहल मचा रहे थे|
लेखिका: रिंकू ताई
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