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आगे आमुक्ति ने कहा, “जब
भी मुक्ति के लिए पर्याप्त पुण्य मुझे मिल जाता मेरा कोई न कोई नातेदार मुझे मिलता
जो उस समय बड़ी बेरहमी से मारा गया| मैं नियति की इच्छा समझकर उन्हें अपना पुण्य दे
देती और वो अलग-अलग योनियों में जन्म लेकर पिशाचयोनी से मुक्त हो जाते| ऐसे करते-करते
नब्बे साल हो गए| फिर एक दिन उस खंडहर मंदिर में जहा मुर्तिया स्थापित थी वहा एक
प्रकाशपुंज मुझे दिखा| कुतुहलवश मैं उस प्रकाश के पास गयी और हाथ जोड़े खड़ी रही|
फिर उस प्रकाशपुंज से कालिताई सामने आई – हा मेरी सासुमा ने मुझे दर्शन दिए|
कालिताई ने मुझे बताया की मैंने जो पुण्य वितरित कर दिया उसके कारण मुझे पिशाचयोनी
से मुक्ति मिलने के पहले अपनी आपबीती किसी मनुष्य के माध्यम से सबको बताने का एक
अवसर मिलेगा| और उस अवसर की राह में मैं इतने सालों तक एक ऐसी लड़की की तलाश कर रही
थी जिसे ये भ्रम हैं की लोग दरिन्दे नहीं होते| सीमा उसी तरह की लड़की थी और
करिश्मा भी मेरे काम आ सकती थी, पर मैंने सीमा को ही चुना|”
लेखिका: रिंकू ताई
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