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Sunday, 13 August 2023

आमुक्ति का करिश्मा: पिशाच लोक की व्यथा: भाग ४

 


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आमुक्ति ने कहा, “हम पिशाचलोकवासियों को मनुष्य लोक की जो भी बात सुननी हैं हम सुनते हैं| मुझे मेरे जय-विजय को किसी भी तरह मोक्ष दिलाना था| मैं हर रोज कन्यका माता की आरती सुनती और अगर कोई हनुमान चालीसा पढ़ता तो उसे भी सुनती| दिन में एक बार दोनों सुनती| मेरे आने के रस्ते तो १९३० में ही खुल गए थे जब ये सुनते सुनते मुझे नौ साल के ऊपर हो गए थे| पिशाचयोनी में भी मैंने पुण्य कमा लिया था क्यों की मैं उस योनी में किसी और की कर्मो के कारण फसी थी|”

किरण ने फिर पूछा, “फिर अबतक आप मुक्त क्यों नहीं हुई?”

आमुक्ति ने बताया, “मैं हर रोज उस जंगल के किनारे आकर राह देखती एक ऐसी महिला की जो गर्भवती हो और उसके जुड़वाँ बच्चे होने हो| ऐसे ही एकदिन मैं वहा बैठी थी तो एक महिला काले कपड़ो में वहा आई जो बिलकुल मुझे चाहिए वैसी अवस्था में थी| पर तभी मैंने पिशाचलोक में एक दर्दभरी पुकार सुनी| मैं उस आवाज की तरफ गयी और देखा की मेरी बहन वहा हैं| उसके साथ बात करके मुझे पता चला की वो भी उस समय मारी गयी थी और उसके साथ उसकी एक साल की बच्ची थी जो आज उन दरिंदो के घर पर हैं| उसकी हालत देख मैंने अपना पुण्य उसे देने की ठानी और मैंने मेरी बहन को पिशाचलोक से बाहर भेज दिया| वो अब पिशाचिनी तो नहीं हैं पर उस जंगल में ही एक वृक्ष के रूप में हैं|”


लेखिका: रिंकू ताई

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