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दुखी स्वर में आमुक्ति
ने कहा, “मार्च १९२१ तक मेरे विवाह को एक वर्ष पूरा हो गया था| विवाह वर्षगाठ का
होम हवन करने के बाद मुझे उल्टियां होने लगी| वैदरानी के साथ वैद्यजी को बुलाया
गया| नाड़ीपरिक्षण कर वैदरानी ने मेरे गर्भवती होने का समाचार दिया| ठीक से जांचने
के बाद ये बताया की मुझे जुड़वाँ बच्चे होने वाले हैं| अंग्रेजी डॉक्टर को भी एक
बार बताकर इस बात की पुष्टि की गयी| मेरे लिए ये अपने-आप में सुखद अनुभव था| मैं अपने-आप
में खुश रहने लगी थी| हर रोज रामायण-महाभारत का पाठ होने लगा था| मेघश्याम खुद इस
बात के लिए जागरूक थे| वे हर रोज गीता का एक अध्याय मुझे पढ़कर सुनाते| मेरे साथ
बैठकर गायत्री मन्त्र का जाप करते| उनका मेरे प्रति और होनेवाले बच्चो के प्रति
प्रेम और समर्पण देखकर बार-बार कन्यका माता को धन्यवाद देती थी| ऐसे करते-करते
पांच महीने बित गए थे|”
लेखिका: रिंकू ताई
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