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Saturday, 12 August 2023

आमुक्ति का करिश्मा: पागलपन: भाग १

 


कृपया, पूरी कथा पढ़ने के लिए अनुक्रम पर जाए|


पागलपन

सीमा दुर्ग से तिरुवनंतपुरम, एमबीए पूरा होने के बाद, बैंक में नौकरी करने के लिए गयी हुई थी| नयी जगह, अंजान भाषा, पर सीमा ने नौकरी की खातिर सब अपना लिया| मल्यालम भी सिख रही थी| बैंक में उसकी दोस्ती अन्य कर्मचारियों से भी जल्दी ही हो गयी थी| कई लोग दुसरे राज्यों से वहा आकर काम कर रहे थे और बैंक ने ही सबके रहने के लिए क्वार्टर दे रखे थे|

इतने वर्कलोड के बावजूद भी सीमा हर वीकेंड घुमने जाया करती थी| अबकी बार वो अपनी नयी सहेली करिश्मा के साथ गयी थी| सीमा और करिश्मा एर्नाद घुमने गयी थी| करिश्मा इसके पहले भी एर्नाद कई बार आ चुकी थी| केरला हैं ही इतना सुन्दर की कितना भी घूम लो, देख लो, बार-बार देखने की इच्छा होती हैं|

सीमा हर रोज वैसे तो पूजा करती थी, पर आज सीमा को बस घूमना था और ढेर सारी सेल्फी लेनी थी, बस वो वही कर रही थी| और दूसरी तरफ करिश्मा, नमाज के समय बराबर नमाज अदा कर रही थी|

दोनों घूम रही थी, एक जगह से दूसरी जगह, जैसे मानो फिर कभी नहीं आयेगी| एक जगह करिश्मा ने बिच जंगल कार रोकी और उसे किसी बाबा की मजार दिखी| मजार पर हरे रंग की चादर चढ़ी हुई थी पर चारो और जंगल और अजीब सी शांति थी|

दोनों कार से उतरी, और करिश्मा ने कहा, “सीमा, ये बाबा मोपला विद्रोह में शहीद हुए थे, अंग्रेजो से लड़ते-लड़ते| आओ तुम भी यहाँ दुआ मांग लो|”

करिश्मा ने अपने साथ जरी लगी हुई चादर लायी थी| दोनों ने मिलकर उस मजार पर चादर चढ़ाई| और जैसे करिश्मा दुआ मांगने के लिए कर रही थी वैसा ही सीमा कर रही थी|

कृपया, पूरी कथा पढ़ने के लिए अनुक्रम पर जाए|

लेखिका: रिंकू ताई|



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