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फिर थोडा यादों में खोते
हुए आमुक्ति ने कहा, “अगली सुबह हम दोनों यात्रा के लिए तैयार थे| पहले मुझे लगा
की हमारे साथ कोई और भी चलेगा पर ऐसा न था| हम दोनों को ही इस यात्रा को पैदल पूरा
करना था| दो महीने की यात्रा के हिसाब से सब सामान ले लिया था हम दोनों ने| और
दक्षिण की तरफ हमने अपनी यात्रा आरम्भ कर दी|”
नागनाथ ने पूछा, “आपको
जाना कहा तक था?”
आमुक्ति ने कहा, “दक्षिण
की तरफ एकदम सागरतट पर बसे कन्याकुमारी तक और वापस भी लौटना था| हम दोनों निकल पड़े|
यात्रा के वो दिन मैं आज भी नहीं भूली|”
लेखिका: रिंकू ताई
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