Followers

Sunday, 13 August 2023

आमुक्ति का करिश्मा: देवदर्शन यात्रा: भाग ३

  




कृपया, पूरी कथा पढ़ने के लिए अनुक्रम पर जाए|


फिर थोडा यादों में खोते हुए आमुक्ति ने कहा, “अगली सुबह हम दोनों यात्रा के लिए तैयार थे| पहले मुझे लगा की हमारे साथ कोई और भी चलेगा पर ऐसा न था| हम दोनों को ही इस यात्रा को पैदल पूरा करना था| दो महीने की यात्रा के हिसाब से सब सामान ले लिया था हम दोनों ने| और दक्षिण की तरफ हमने अपनी यात्रा आरम्भ कर दी|”

नागनाथ ने पूछा, “आपको जाना कहा तक था?”

आमुक्ति ने कहा, “दक्षिण की तरफ एकदम सागरतट पर बसे कन्याकुमारी तक और वापस भी लौटना था| हम दोनों निकल पड़े| यात्रा के वो दिन मैं आज भी नहीं भूली|”


लेखिका: रिंकू ताई

कृपया, पूरी कथा पढ़ने के लिए अनुक्रम पर जाए|

No comments:

Post a Comment

अग्नि तापलिया काया चि होमे

अग्नि तापलिया काया चि होमे । तापत्रयें संतप्त होती । संचित क्रियमाण प्रारब्ध तेथें । न चुके संसारस्थिति । राहाटघटिका जैसी फिरतां...