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किरण ने कैसे-तैसे
अपनेआपको सँभालते हुए कहा, “मुझे माफ़ कर दो| मैं वादा करती हु, की मैं इसे खुद
सम्भालुंगी| मेरे गुरु के आश्रम में क्या तुम चलोगी?”
आमुक्ति ने कहा, “बिलकुल
नहीं| अब इसके आगे और कही नहीं जाउंगी मेरे जय विजय को बड़ी दिक्कत हो रही हैं इतनी
यात्रा कर| मैं एर्नाद से यहाँ तक कितनी तकलीफों से पोहोची हु मुझे पता हैं|”
ये बात सुन किरण के
दिमाग की बत्ती जली| सीमा खुद उस जगह गयी जहा आमुक्ति को मारा गया था| जब आमुक्ति
को मारा गया तब वो भी पेट से थी और जुड़वाँ बच्चे उसके गर्भ में पल रहे थे| सीमा जब
उस जगह गयी तब वह भी पेट से थी और जुड़वाँ बच्चे उसके भी पेट में पल रहे हैं| यही
समानता के कारण आमुक्ति ने सीमा को अपना माध्यम बनाया कुछ कहने के लिए|
लेखिका: रिंकू ताई
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