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तुम अगर अरमान के कहने
पर मजहब अपना भी लेती तो भी वो तुमसे कभी प्यार नहीं करता था| तुम्हारे साथ भी वही
होता था जो दूसरी लडकियों के साथ हुआ हैं| मैं अरमान के हर गलत काम में उसकी साथी
बन गयी थी इस उम्मीद के साथ की वो किसी दिन मुझे ढेर सारा प्यार देगा| पर मैं बेवकूफ
थी| प्यार के सही मायने तुम जब मेरी जिंदगी में आई तब मुझे पता चले|
पर अब ये बेवकुफी मैं और
नहीं करुँगी| अरमान ने मुझे कोर्ट रूम में ही तलाक दे दिया हैं| अभी जो कानून हैं
उसके हिसाब से मैंने अरमान पर केस कर दिया हैं| पर सच कहू, तो मैं अब अरमान के साथ
नहीं रहना चाहती| और इस पुरे समय में जिस तरह मेरे खुद के माँ बाप ने भी मेरा साथ
छोड़ दिया हैं, मैंने फैसला ले लिया हैं की अब मैं लौट कर उनके पास भी नहीं जाउंगी|
हो सके तो मुझे माफ़ कर
देना| और अरमान को भूल जाना| वो तुम्हारे लायक कभी था ही नहीं|
तुम्हारी दोस्त
एक्स-मजहबी करिश्मा!
करिश्मा का ये ख़त पढ़कर
सीमा गहरी सोच में डूब गयी| उसे समझ नहीं आ रहा था की किस पर भरोसा रखना चाहिए|
अरमान पर या अरमान के चेहरे से नकाब उठाने वाले कोर्ट, पुलिस, करिश्मा या आमुक्ति
पर?
लेखिका: रिंकू ताई
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