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आगे अपने दादा को याद
करते हुए आमुक्ति ने बताया, “दादा को मल्यालम, संस्कृत और हिंदी आती थी| वो कहते
थे, अंग्रेजी विदेशी भाषा हैं और हिंदी स्वदेशी भाषा| हमें हिंदी सीखनी चाहिए,
भारत के बाकी जगह पर कभी गए तो इसका बहुत उपयोग हैं| दादा की ये बात मुझे अच्छी
लगती थी| मैंने भी हिंदी सिखने की चेष्टा की| तब मुझे टूटी फूटी आती थी| पर मैं
हिंदी पढ़ सकती थी| इसीलिए आज भी बोल रही हु|”
नागनाथ को अपने अंग्रेजी
प्रेम पर गुस्सा आने लगा था अब| पर वो शांति से बैठा रहा| थोड़ी देर बाद नागनाथ ने
पूछा, “आपकी जाती कौनसी थी?”
विमुक्ति ने कहा,
“अंग्रेजों के कागजी कारवाही के हिसाब से तो मैं कोरगा जाती की हु| एकदम नीची जाती
की|”
ये सुन उर्मिला और
नागनाथ के मन में कई सवाल उठे, “क्या नीची जाती? क्या उची जाती? इस पिशाचिनी के
हिसाब से तो सौ साल पहले जिसके जेब में पैसा होता था वो उची जाती का होता था और
जिसके जेब में पैसा नहीं वो नीची जाती का? अंग्रेजो ने समाज को बड़ा ही बुरी तरह से
बाटा और आज भी हम ऐसे ही बटे हुए हैं, पर क्यों?”
लेखिका: रिंकू ताई
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