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आमुक्ति ने आगे कहा, “अब
यहाँ से एक महिना और पैदल यात्रा करते हुए घर पर जाना था| हम दोनों को घर जाने की
जल्दी हो गयी थी| इसीलिए हमने जंगल के रस्ते को अपनाया| थोडा डरवाना था पर कर
लिया| दिन भर हम जल्दी जल्दी चलकर किसी गाव तक पोहोच जाते| और दिन भर जंगल में जो
भी फल या कंद मिलते थे वो खाते थे| अगर किसी गाव में हमें भोजन दिया जाता था तो कर
लेते थे नहीं तो पूरा दिन फल और कंद खाकर बिता देते थे| और अगले दिन दुगनी तेजी से
रास्ता पार कर लेते थे|”
लेखिका: रिंकू ताई
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