कृपया, पूरी कथा पढ़ने के लिए अनुक्रम पर जाए|
फिर किरण ने पूछा, “तो
फिर तुमने सीमा का एबॉर्शन क्यों नहीं करने दिया हमें?”
आमुक्ति बोली, “मैंने
इतने दशकों तक अपने जय-विजय की मुक्ति के लिए प्रयास किये थे| मैं इनसे दूर नहीं
हो सकती थी और न ही इनके साथ पिशाचयोनी से मुक्त हो सकती थी| जिसदिन कालिताई ने
मुझे पिशाचलोक में दर्शन दिए उसदिन उन्होंने कहा था की पहले मुझे अपने दोनों बच्चो
को मुक्त करना होगा, अपनेआप से भी और पिशाचयोनी से भी तभी मैं मुक्त हो सकुंगी|
मैं चाहती थी तो चुपचाप सीमा पर कब्ज़ा जमाये रहती थी पर जब उसे मारने का षड्यंत्र
मुझे पता चला मैंने उसे जिन्दा रखने की ठानी| इसमें मेरा ही फायदा था किसी भी तरह
दोनों बच्चे और सीमा को जिन्दा रखना था| मैं अगर पहले ही तुम्हे बता देती की दोनों
बच्चे मरे हुए पैदा होंगे तो तुम मुझे कबका यहाँ से भगा चुकी होती और मेरा
उद्देश्य कभी पूरा नहीं होता, जो था मेरे जय विजय की मुक्ति| मैं यहाँ जय-विजय को
पिशाचयोनी से मुक्ति दिलाने ही आई हु|”
लेखिका: रिंकू ताई
कृपया, पूरी कथा पढ़ने के लिए अनुक्रम पर जाए|
No comments:
Post a Comment