अगा ये वैकुंटनायका । अगा ये त्रैलोक्यतारका । अगा जनार्दना जगव्यापका । अगा पाळका भक्तांचिया ॥१॥
अगा ये वसुदेवदेवकीनंदना । अगा ये गोपिकारमणा । अगा बळिबंध वामना। अगा निधाना गुणनिधी ॥ध्रु.॥
अगा ये द्रौपदीबांधवा । अगा ये सखया पांडवा । अगा जीवाचिये जीवा । अगा माधवा मधुसूदना ॥२॥
अगा महेश्वरा महाराजा । अगा श्रीहरी गरुडध्वजा । अगा सुंदरा सहस्रभुजा । पार मी तुझा काय वर्णप ॥३॥
अगा अंबॠषिपरंपरा। निलारंभ निर्वीकारा । अगा गोवर्धन धरणीधरा । अगा माहेरा दीनाचिया ॥४॥
अगा धर्मराया धर्मशीळा । कृपासिंधु कृपाळा । अगा प्रेमाचिया कल्लोळा । सकळकळाप्रवीणा ॥५॥
अगा चतुरा सुजाणा । मधुरागिरा सुलक्षणा । अगा उदारा असुरमर्दना । राखें शरणा तुकयाबंधु ॥६॥
यह तुकाराम महाराज द्वारा रचित एक भक्तिपूर्ण अभंग है, जिसमें वे भगवान विष्णु (विट्ठल) के विभिन्न रूपों, गुणों और लीलाओं का गुणगान करते हैं। यह अभंग भगवान के प्रति उनकी अनन्य भक्ति और प्रेम को व्यक्त करता है। "अगा" शब्द यहाँ आत्मीय संबोधन के रूप में प्रयोग हुआ है, जिसका अर्थ है "हे प्रभु" या "हे मेरे स्वामी"। आइए इसे पद-दर-पद हिंदी में समझते हैं:
मूल मराठी पाठ और हिंदी अर्थ:
अगा ये वैकुंटनायका । अगा ये त्रैलोक्यतारका । अगा जनार्दना जगव्यापका । अगा पाळका भक्तांचिया ॥१॥
अर्थ: "हे वैकुंठ के नायक! हे तीनों लोकों के तारणहार! हे जनार्दन (संसार के पालक), हे विश्वव्यापी! हे भक्तों के रक्षक!"
भाव: तुकाराम भगवान को वैकुंठ (विष्णु लोक) का स्वामी, तीनों लोकों का उद्धारक, और भक्तों का पालनकर्ता कहकर संबोधित करते हैं। यहाँ उनकी सर्वव्यापकता और भक्तवत्सलता की प्रशंसा है।
अगा ये वसुदेवदेवकीनंदना । अगा ये गोपिकारमणा । अगा बळिबंध वामना। अगा निधाना गुणनिधी ॥ध्रु.॥
अर्थ: "हे वसुदेव और देवकी के पुत्र (कृष्ण)! हे गोपियों के प्रियतम! हे बलि को बाँधने वाले वामन! हे गुणों के खजाने के निधान!"
भाव: यहाँ भगवान के कृष्ण और वामन अवतार का उल्लेख है। वे उन्हें गोपियों के प्रिय और गुणों के भंडार के रूप में वर्णन करते हैं। यह पंक्ति ध्रुवपद (मुखड़ा) है।
अगा ये द्रौपदीबांधवा । अगा ये सखया पांडवा । अगा जीवाचिये जीवा । अगा माधवा मधुसूदना ॥२॥
अर्थ: "हे द्रौपदी के भाई (रक्षक)! हे पांडवों के मित्र! हे जीवों के जीव (आत्मा के आधार)! हे माधव, हे मधुसूदन!"
भाव: तुकाराम भगवान को द्रौपदी का उद्धार करने वाला, पांडवों का साथी, और सभी जीवों का आधार कहते हैं। "माधव" और "मधुसूदन" उनके प्रिय नाम हैं।
अगा महेश्वरा महाराजा । अगा श्रीहरी गरुडध्वजा । अगा सुंदरा सहस्रभुजा । पार मी तुझा काय वर्णप ॥३॥
अर्थ: "हे महान राजा, हे महेश्वर! हे श्रीहरि, जिनका ध्वज गरुड़ है! हे सुंदर, सहस्रभुज (हजार भुजाओं वाले)! मैं तेरा वर्णन कैसे करूँ?"
भाव: यहाँ भगवान की महिमा और सुंदरता का वर्णन है। तुकाराम कहते हैं कि उनके गुण और रूप इतने विशाल हैं कि उनका पूरा वर्णन करना असंभव है।
अगा अंबॠषिपरंपरा। निलारंभ निर्वीकारा । अगा गोवर्धन धरणीधरा । अगा माहेरा दीनाचिया ॥४॥
अर्थ: "हे अम्बरीष जैसे ऋषियों की परंपरा के रक्षक! हे नीलवर्ण, निर्विकार (विकाररहित)! हे गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले! हे दीनों के मायके (आश्रय)!"
भाव: भगवान को ऋषियों का रक्षक, नीलवर्ण (कृष्ण), और गोवर्धन उठाने वाला कहा गया है। वे दीन-दुखियों के लिए मायके की तरह आश्रय हैं।
अगा धर्मराया धर्मशीळा । कृपासिंधु कृपाळा । अगा प्रेमाचिया कल्लोळा । सकळकळाप्रवीणा ॥५॥
अर्थ: "हे धर्म के राजा, धर्मनिष्ठ! हे कृपा के सागर, दयालु! हे प्रेम की लहरों वाले! हे सभी कलाओं में निपुण!"
भाव: भगवान को धर्म का पालक, कृपाशील, प्रेममयी, और सर्वकला में प्रवीण बताया गया है। यह उनकी दयालुता और पूर्णता को दर्शाता है।
अगा चतुरा सुजाणा । मधुरागिरा सुलक्षणा । अगा उदारा असुरमर्दना । राखें शरणा तुकयाबंधु ॥६॥
अर्थ: "हे चतुर, सुज्ञानी! हे मधुर वाणी वाले, शुभ लक्षणों से युक्त! हे उदार, असुरों का संहार करने वाले! तुकया (तुकाराम) के बंधु, शरण में मेरी रक्षा कर।"
भाव: तुकाराम भगवान को बुद्धिमान, मधुरभाषी, उदार, और असुरों का नाश करने वाला कहते हैं। अंत में, वे उन्हें अपना बंधु (भाई) कहकर शरण में रक्षा की प्रार्थना करते हैं।
संपूर्ण भाव:
इस अभंग में तुकाराम महाराज भगवान विष्णु (विट्ठल) के विभिन्न रूपों और गुणों का स्तवन करते हैं। वे उन्हें वैकुंठ का स्वामी, कृष्ण, वामन, पांडवों का मित्र, गोवर्धन धारक, और दीनों का आश्रय कहते हैं। भगवान के सुंदर रूप, कृपा, प्रेम, और शक्ति का वर्णन करते हुए वे उनकी महिमा को अनंत बताते हैं। अंत में, वे भगवान को अपना बंधु मानकर उनकी शरण में रक्षा की याचना करते हैं। यह अभंग भक्ति, प्रेम, और आत्मसमर्पण का सुंदर उदाहरण है।
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