काय म्हणावें तयासी । तो केवळ पापरासि ॥ध्रु.॥
जो स्मरे राम नामा । तयासी म्हणावें रिकामें ॥२॥
जो तीर्थव्रत करी । तयासी म्हणावें भिकारी ॥३॥
तुका म्हणे विंचाची नांगी । तैसा दुर्जन सर्वांगीं ॥४॥
यह तुकाराम महाराज द्वारा रचित एक अभंग है, जिसमें वे दुर्जनों (दुष्ट लोगों) की मानसिकता और व्यवहार की निंदा करते हैं। वे ऐसे लोगों की तुलना जहरीले साँप से करते हैं जो संतों और भक्ति के मार्ग को नीचा दिखाते हैं। आइए इसे पद-दर-पद हिंदी में समझते हैं:
मूल मराठी पाठ और हिंदी अर्थ:
अखंड संत निंदी । ऐसी दुर्जनाची बुद्धी ॥१॥
अर्थ: "निरंतर संतों की निंदा करना, ऐसी होती है दुर्जन की बुद्धि।"
भाव: तुकाराम कहते हैं कि दुष्ट लोग हमेशा संतों और सज्जनों की निंदा करते हैं। यह उनकी कुटिल और नीच मानसिकता का लक्षण है।
काय म्हणावें तयासी । तो केवळ पापरासि ॥ध्रु.॥
अर्थ: "उसे क्या कहें? वह तो पूरी तरह पाप का ढेर है।"
भाव: तुकाराम ऐसे व्यक्ति को पाप का प्रतीक मानते हैं। उनका कहना है कि जो संतों की निंदा करता है, उसे कुछ और कहने की जरूरत नहीं, वह स्वयं पाप का पर्याय है। यह पंक्ति अभंग का ध्रुवपद (मुखड़ा) है।
जो स्मरे राम नामा । तयासी म्हणावें रिकामें ॥२॥
अर्थ: "जो राम के नाम का स्मरण करता है, उसे वह (दुर्जन) व्यर्थ कहता है।"
भाव: यहाँ तुकाराम बताते हैं कि दुर्जन उस भक्त की खिल्ली उड़ाता है जो भगवान राम के नाम का जप करता है। वह भक्ति को बेकार और समय की बर्बादी मानता है।
जो तीर्थव्रत करी । तयासी म्हणावें भिकारी ॥३॥
अर्थ: "जो तीर्थ और व्रत करता है, उसे वह (दुर्जन) भिखारी कहता है।"
भाव: दुर्जन उस व्यक्ति का भी मजाक उड़ाता है जो तीर्थ यात्रा या व्रत जैसे धार्मिक कार्य करता है। वह ऐसे लोगों को नीच या गरीब समझता है, जो उसकी संकुचित सोच को दर्शाता है।
तुका म्हणे विंचाची नांगी । तैसा दुर्जन सर्वांगीं ॥४॥
अर्थ: "तुका कहते हैं कि जैसे बिच्छू की पूँछ (में जहर होता है), वैसे ही दुर्जन पूरे शरीर से (हानिकारक) है।"
भाव: तुकाराम दुर्जन की तुलना बिच्छू से करते हैं। जिस तरह बिच्छू की पूँछ में जहर होता है, उसी तरह दुर्जन का पूरा व्यक्तित्व ही दूसरों के लिए हानिकारक और जहरीला होता है।
संपूर्ण भाव:
इस अभंग में तुकाराम महाराज दुर्जनों की कुटिल प्रकृति का चित्रण करते हैं। वे कहते हैं कि ऐसे लोग संतों की निंदा करते हैं, भगवान के नाम का जप करने वालों को बेकार और तीर्थ-व्रत करने वालों को भिखारी कहते हैं। यह उनकी पापमयी और नीच सोच का परिचायक है। तुकाराम उन्हें बिच्छू की तरह जहरीला बताते हैं, जो हर तरह से दूसरों को हानि पहुँचाते हैं। यह अभंग सज्जनता और भक्ति के प्रति सम्मान और दुर्जनों के प्रति सावधानी का संदेश देता है।
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