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Thursday, 27 March 2025

कुळीं कन्यापुत्र होतीं जीं सात्त्विक ।

आपुलिया हिता जो असे जागता । धन्य माता पिता तयाचिया ॥१॥

कुळीं कन्यापुत्र होतीं जीं सात्त्विक । तयाचा हरीख वाटे देवा ॥२॥

गीता भागवत करिती श्रवण । अखंड चिंतन विठोबाचें ॥३॥

तुका म्हणे मज घडो त्याची सेवा । तरी माझ्या दैवा पार नाहीं ॥४॥

यह तुकाराम महाराज द्वारा रचित एक सुंदर अभंग है, जिसमें वे सात्त्विक और भक्तिमय जीवन जीने वाले व्यक्तियों की प्रशंसा करते हैं और उनकी सेवा करने की इच्छा व्यक्त करते हैं। आइए इसे पद-दर-पद हिंदी में समझते हैं:
मूल मराठी पाठ और हिंदी अर्थ:
आपुलिया हिता जो असे जागता । धन्य माता पिता तयाचिया ॥१॥  
अर्थ: "जो अपने हित (आध्यात्मिक कल्याण) के लिए जागरूक रहता है, उसके माता-पिता धन्य हैं।"  
भाव: तुकाराम कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने आत्मिक और आध्यात्मिक उत्थान के प्रति सजग और प्रयत्नशील रहता है, उसके माता-पिता सौभाग्यशाली हैं, क्योंकि ऐसा पुत्र या पुत्री उनके कुल को गौरवान्वित करता है।
कुळीं कन्यापुत्र होतीं जीं सात्त्विक । तयाचा हरीख वाटे देवा ॥२॥  
अर्थ: "जो कुल में सात्त्विक (शुद्ध और धर्मपरायण) कन्या या पुत्र होते हैं, उनके कारण देव को भी प्रसन्नता होती है।"  
भाव: यहाँ तुकाराम कहते हैं कि जिस कुल में पुत्र या पुत्री सात्त्विक गुणों (शुद्धता, भक्ति, और धर्म) से युक्त होते हैं, वे न केवल अपने परिवार का, बल्कि भगवान का भी आनंद बढ़ाते हैं। ऐसे लोग ईश्वर को प्रिय होते हैं।
गीता भागवत करिती श्रवण । अखंड चिंतन विठोबाचें ॥३॥  
अर्थ: "वे गीता और भागवत का श्रवण करते हैं। उनका चिंतन अखंड रूप से विठोबा (विट्ठल) में लगा रहता है।"  
भाव: तुकाराम उन लोगों के गुणों का वर्णन करते हैं जो आध्यात्मिक ग्रंथों जैसे गीता और भागवत को सुनते हैं और जिनका मन निरंतर भगवान विट्ठल के चिंतन में डूबा रहता है। यह उनकी भक्ति और साधना की गहराई को दर्शाता है।
तुका म्हणे मज घडो त्याची सेवा । तरी माझ्या दैवा पार नाहीं ॥४॥  
अर्थ: "तुका कहते हैं कि मुझे ऐसे (भक्तों) की सेवा करने का अवसर मिले, तो मेरे भाग्य की कोई सीमा न होगी।"  
भाव: तुकाराम यहाँ अपनी विनम्र इच्छा व्यक्त करते हैं कि उन्हें ऐसे सात्त्विक और भक्तिमय लोगों की सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हो। वे मानते हैं कि ऐसी सेवा से उनका जीवन धन्य हो जाएगा और उनके भाग्य का कोई अंत नहीं होगा।
संपूर्ण भाव:
इस अभंग में तुकाराम महाराज उन लोगों की महिमा गाते हैं जो अपने आध्यात्मिक कल्याण के प्रति जागरूक रहते हैं, सात्त्विक जीवन जीते हैं, और भगवान विट्ठल की भक्ति में लीन रहते हैं। वे कहते हैं कि ऐसे लोग अपने माता-पिता और कुल को ध - उनके लिए धन्य हैं और भगवान को भी प्रसन्न करते हैं। वे गीता और भागवत जैसे शास्त्रों का अध्ययन करते हैं और निरंतर ईश्वर का चिंतन करते हैं। तुकाराम इन भक्तों की सेवा करने की इच्छा रखते हैं, क्योंकि वे इसे अपने लिए परम सौभाग्य मानते हैं। यह अभंग भक्ति, सात्त्विकता, और सेवा भाव के महत्व को रेखांकित करता है।

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