चैतन्य महाप्रभु (18 फरवरी 1486 - 1534) एक महान भारतीय संत, भक्ति योग के प्रचारक और गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के संस्थापक थे। वे भक्तिकाल के प्रमुख व्यक्तित्वों में से एक माने जाते हैं। उनका जन्म पश्चिम बंगाल के नवद्वीप (अब मायापुर) में हुआ था। उनका मूल नाम विश्वंभर मिश्र था, लेकिन लोग उन्हें प्यार से "निमाई" कहते थे, क्योंकि उनका जन्म एक नीम के पेड़ के नीचे हुआ था। उनके सुनहरे रंग के कारण उन्हें "गौरांग" या "गौर" भी कहा जाता था। 24 साल की उम्र में उन्होंने संन्यास लिया और "कृष्ण चैतन्य" नाम अपनाया, जिसके बाद वे चैतन्य महाप्रभु के नाम से प्रसिद्ध हुए।
चैतन्य महाप्रभु का जीवन और योगदान
चैतन्य महाप्रभु ने भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति को जन-जन तक पहुँचाने के लिए "हरिनाम संकीर्तन" (हरे कृष्ण मंत्र का कीर्तन) को लोकप्रिय बनाया। उनका मानना था कि भक्ति और प्रेम ही ईश्वर तक पहुँचने का सबसे सरल रास्ता है। उन्होंने जाति-पाँति और ऊँच-नीच के भेदभाव को खत्म करने की शिक्षा दी और हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया। उनके द्वारा शुरू किया गया "हरे कृष्ण हरे राम" मंत्र आज भी दुनिया भर में गाया जाता है, खासकर इस्कॉन (ISKCON) के माध्यम से।
उन्होंने वृंदावन को फिर से जीवंत किया, जो उस समय लगभग विलुप्त हो चुका था। ऐसा कहा जाता है कि अगर चैतन्य महाप्रभु न होते, तो वृंदावन की पहचान शायद मिट गई होती। वे अपने जीवन के आखिरी साल वृंदावन और पुरी में बिताए।
क्या वे भगवान थे?
गौड़ीय वैष्णव परंपरा में चैतन्य महाप्रभु को भगवान श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है। भक्तों का विश्वास है कि वे राधा और कृष्ण के संयुक्त रूप में अवतरित हुए थे, ताकि भक्तों को भक्ति का मार्ग दिखा सकें। हालाँकि, चैतन्य महाप्रभु ने खुद कभी यह दावा नहीं किया कि वे भगवान हैं। वे हमेशा खुद को कृष्ण का दास कहते थे। उनके जीवन पर लिखे गए ग्रंथों जैसे "चैतन्य चरितामृत" (कृष्णदास कविराज द्वारा) और "चैतन्य भागवत" (वृंदावन दास ठाकुर द्वारा) में उनकी दिव्यता का वर्णन मिलता है।
उनकी शिक्षाएँ
चैतन्य महाप्रभु ने "शिक्षाष्टक" नामक आठ श्लोक लिखे, जो उनकी शिक्षाओं का सार हैं। इसमें वे कहते हैं कि मनुष्य को विनम्र बनना चाहिए, दूसरों का सम्मान करना चाहिए और हर हाल में भगवान का नाम जपना चाहिए। उनका मशहूर मंत्र है:
"हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।"
याद रखने योग्य बात
चैतन्य महाप्रभु एक संत थे, जिन्होंने भक्ति के जरिए समाज को जोड़ा। वे नृत्य और संकीर्तन में इतने मगन हो जाते थे कि लोग उन्हें देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते थे। उनकी मृत्यु 1534 में पुरी में हुई, और ऐसा माना जाता है कि वे भगवान जगन्नाथ में समा गए।
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