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Wednesday, 26 March 2025

गोड तुझें रूप गोड तुझें नाम ।

सदा माझे डोळे जडो तुझे मूर्ती । रखुमाईच्या पती सोयरिया ॥१॥
गोड तुझें रूप गोड तुझें नाम । देईं मज प्रेम सर्व काळ ॥ध्रु.॥
विठो माउलिये हा चि वर देईं । संचरोनि राहीं हृदयामाजी ॥२॥
तुका म्हणे कांहीं न मागे आणीक । तुझे पायीं सुख सर्व आहे ॥३॥

यह तुकाराम महाराज द्वारा रचित एक सुंदर अभंग है, जिसमें वे भगवान विट्ठल और उनकी पत्नी रखुमाई के प्रति अपनी गहरी भक्ति और प्रेम को व्यक्त करते हैं। आइए इसे पद-दर-पद हिंदी में समझते हैं:
मूल मराठी पाठ और हिंदी अर्थ:
सदा माझे डोळे जडो तुझे मूर्ती । रखुमाईच्या पती सोयरिया ॥१॥  
अर्थ: "मेरी आँखें हमेशा तेरी मूर्ति पर टिकी रहें, हे रखुमाई के पति, हे मेरे प्रिय स्वामी!"  
भाव: तुकाराम प्रार्थना करते हैं कि उनकी नजरें सदा भगवान विट्ठल की मूर्ति पर स्थिर रहें। वे विट्ठल को रखुमाई के पति और अपने प्रिय स्वामी के रूप में संबोधित करते हैं, जो उनके आत्मीय और भक्तिपूर्ण संबंध को दर्शाता है।

गोड तुझें रूप गोड तुझें नाम । देईं मज प्रेम सर्व काळ ॥ध्रु.॥  
अर्थ: "तेरा रूप मधुर है, तेरा नाम मधुर है। मुझे हर समय तेरा प्रेम दे।"  
भाव: यहाँ तुकाराम विट्ठल के रूप और नाम की मधुरता की प्रशंसा करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि उन्हें हर पल ईश्वर का प्रेम प्राप्त हो। यह पंक्ति अभंग का ध्रुवपद (मुखड़ा) है, जो बार-बार दोहराया जाता है।
विठो माउलिये हा चि वर देईं । संचरोनि राहीं हृदयामाजी ॥२॥  
अर्थ: "हे विठो माउली (माँ जैसे विट्ठल)! मुझे यही वरदान दे कि तू मेरे हृदय में सदा संचार करता रहे।"  
भाव: तुकाराम विट्ठल को माँ की तरह संबोधित करते हैं और उनसे यह वर माँगते हैं कि उनका चैतन्य और प्रेम उनके हृदय में हमेशा बना रहे। यहाँ भगवान को माँ के रूप में देखने से उनकी भक्ति की कोमलता झलकती है।
तुका म्हणे कांहीं न मागे आणीक । तुझे पायीं सुख सर्व आहे ॥३॥  
अर्थ: "तुका कहते हैं कि मैं और कुछ नहीं माँगता। तेरे चरणों में ही सारा सुख है।"  
भाव: तुकाराम यहाँ अपनी संपूर्ण संतुष्टि और वैराग्य को व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं कि उन्हें सांसारिक चीज़ों की कोई चाह नहीं, क्योंकि विट्ठल के चरणों में ही उन्हें सच्चा सुख और शांति मिलती है।
संपूर्ण भाव:
इस अभंग में तुकाराम महाराज भगवान विट्ठल के प्रति अपनी अनन्य भक्ति और प्रेम को प्रकट करते हैं। वे विट्ठल के रूप और नाम की मधुरता का गुणगान करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि उनकी नजरें सदा उनकी मूर्ति पर टिकी रहें और उनका प्रेम उनके हृदय में बसा रहे। वे यह भी कहते हैं कि उन्हें सांसारिक वस्तुओं की कोई इच्छा नहीं, क्योंकि असली सुख और शांति केवल ईश्वर के चरणों में ही है। 

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