कठासु आई सुंठ कठासु आई जिरो
कठासु आयो ये म्हारो जामण जायो बिरो
दिल्लीसु आई सुंठ आग्रासु आयो जिरो
द्वारकासु आयो ए म्हारो जामण जायो बिरो ||१ ||
कठे उतरी सुठ न कठे उतऱ्या जिरो
कठे उतऱ्या ए म्हारो जामण जायो बिरो
दुकाने उतरे सुठ बजारा उतरे जिरो
बागामे उतरे ए म्हारो जामण जायो बिरो ॥२ ॥
कयामे चईजे सुठ क कयामे चईजे जिरो
कयामे चईजे ए म्हारो जामण जायो बिरो
चहामे. चईजे सुंठ बंगारा चईजे जिरो
पंचामे चईजे ए म्हारो जामण जायो बिरो ॥३ ॥
काई देवे सुंठ न कोई देवे जिरो
काई देवे ए म्हारो जामण जायो बिरो
चरकास देवे सुंठ सुगंधी देवे जिरो
माहेरो पेरावे ओ म्हारो जामण आयो बिरो ॥४॥
नोट: द्वारका की जगह मामाजी के गांव का नाम लेना।
No comments:
Post a Comment