त्याचे जवळी देव भक्तीभावे उभा । स्वानंदाचा गाभा तया दिसे ॥ २॥
तया दिसे रूप अंगुष्ठ प्रमाण । अनुभवी खूण जाणती हे ॥ ३॥
जाणती जे खूण स्वात्मअनुभवी । तुका म्हणे पदवी ज्याची त्याला ॥ ४ ॥
यह तुकाराम महाराज द्वारा रचित एक गहन और आध्यात्मिक अभंग है, जिसमें वे भगवान और भक्त के बीच के सूक्ष्म संबंध, आत्मानुभव, और भक्ति के फल का वर्णन करते हैं। आइए इसे पद-दर-पद हिंदी में समझते हैं:
मूल मराठी पाठ और हिंदी अर्थ:
जैसी गंगा वाहे तैसे त्याचे मन । भगवंत जाण त्याचेजवळी ॥१॥
अर्थ: "जैसे गंगा बहती है, वैसे ही उसका मन (शुद्ध और निरंतर बहता है)। भगवंत जानता है कि वह उसके पास ही है।"
भाव: तुकाराम यहाँ एक सच्चे भक्त के मन की शुद्धता और निरंतरता को गंगा की धारा से तुलना करते हैं। ऐसा भक्त हमेशा ईश्वर के प्रति समर्पित रहता है, और भगवान भी जानता है कि वह भक्त उसके निकट है।
त्याचे जवळी देव भक्तीभावे उभा । स्वानंदाचा गाभा तया दिसे ॥२॥
अर्थ: "उसके पास भगवान भक्ति के भाव से खड़ा है। उसे (भक्त को) आत्मानंद का मूल (सार) दिखाई देता है।"
भाव: यहाँ यह बताया गया है कि जब भक्त का मन शुद्ध और भक्ति से परिपूर्ण होता है, तो भगवान उसके समीप आकर खड़ा हो जाता है। भक्त को उस आत्मिक आनंद का अनुभव होता है, जो ईश्वर की उपस्थिति से मिलता है।
तया दिसे रूप अंगुष्ठ प्रमाण । अनुभवी खूण जाणती हे ॥३॥
अर्थ: "उसे (भक्त को) अंगुष्ठ (अंगूठे) के आकार का रूप दिखाई देता है। अनुभवी लोग इस संकेत को जानते हैं।"
भाव: यहाँ "अंगुष्ठ प्रमाण रूप" से तात्पर्य भगवान के सूक्ष्म स्वरूप (जैसे आत्मा या परमात्मा का प्रकाश) से है, जो भक्त को ध्यान या अनुभव में दिखता है। जो लोग आध्यात्मिक साधना में अनुभवी हैं, वे इस संकेत को समझते हैं कि यह ईश्वर का दर्शन है।
जाणती जे खूण स्वात्मअनुभवी । तुका म्हणे पदवी ज्याची त्याला ॥४॥
अर्थ: "जो लोग इस संकेत को जानते हैं और आत्मानुभव में डूबे हैं, तुका कहते हैं कि वह पदवी (उच्च आध्यात्मिक स्थिति) उसी की है।"
भाव: तुकाराम कहते हैं कि जो भक्त इस सूक्ष्म दर्शन को पहचानते हैं और आत्मानुभव में लीन हैं, वही सच्चे अर्थ में उस उच्च आध्यात्मिक स्थिति को प्राप्त करते हैं। यह पदवी भक्ति और ज्ञान की पराकाष्ठा का प्रतीक है।
संपूर्ण भाव:
इस अभंग में तुकाराम महाराज एक सच्चे भक्त की स्थिति का वर्णन करते हैं, जिसका मन गंगा की तरह शुद्ध और निरंतर ईश्वर की ओर बहता है। ऐसा भक्त भगवान को अपने पास पाता है और उसे आत्मानंद का अनुभव होता है। वे यह भी संकेत देते हैं कि भगवान का सूक्ष्म स्वरूप (अंगुष्ठ के आकार का प्रकाश) भक्त को दिखाई देता है, जिसे केवल अनुभवी साधक ही समझ सकते हैं। अंत में, तुकाराम कहते हैं कि यह आत्मानुभव और ईश्वर का सान्निध्य ही भक्त को उच्चतम आध्यात्मिक पदवी प्रदान करता है। यह अभंग भक्ति, आत्म-साक्षात्कार, और ईश्वर की निकटता का सुंदर चित्रण करता है।
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