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Thursday, 27 March 2025

करावा परमार्थ अहर्निशी


जन्माचे तें मूळ पाहिलें शोधून । दु:खासी कारण जन्म घ्यावा॥१॥

पापपुण्य करूनी जन्मा येतो प्राणी । नरदेही येऊनी हानी केली ॥ २ ॥

रजतमसत्व आहे ज्याचे अंगी । याच गुणॆं जगी वाया गेला ॥ ३॥

तम म्हणिजे काय नर्कचि केवळ । रज तो सबळ मायाजाळ ॥ ४॥

तुका म्हणे येथें सत्याचे सामर्थ्य । करावा परमार्थ अहर्निशी ॥ ५॥


यह तुकाराम महाराज द्वारा रचित एक गहन अभंग है, जिसमें वे जीवन के मूल कारण, जन्म-मृत्यु के चक्र, और सांसारिक गुणों के प्रभाव का विश्लेषण करते हैं। साथ ही, वे परमार्थ (आध्यात्मिक साधना) के महत्व पर जोर देते हैं। आइए इसे पद-दर-पद हिंदी में समझते हैं:

मूल मराठी पाठ और हिंदी अर्थ:

जन्माचे तें मूळ पाहिलें शोधून । दु:खासी कारण जन्म घ्यावा ॥१॥  

अर्थ: "जन्म के मूल को खोजकर देखा, (पाया कि) दुख का कारण ही जन्म लेना है।"  

भाव: तुकाराम कहते हैं कि उन्होंने जीवन के मूल सत्य को खोजा और समझा कि जन्म लेना ही दुखों का कारण है। यहाँ वे जन्म-मृत्यु के चक्र को दुख का आधार मानते हैं।

पापपुण्य करूनी जन्मा येतो प्राणी । नरदेही येऊनी हानी केली ॥२॥  

अर्थ: "पाप और पुण्य करके प्राणी जन्म लेता है। मानव देह में आकर (भी) उसने हानि ही की।"  

भाव: यहाँ तुकाराम बताते हैं कि पिछले कर्मों (पाप और पुण्य) के कारण प्राणी बार-बार जन्म लेता है। लेकिन मानव जीवन, जो मोक्ष के लिए दुर्लभ अवसर है, में भी लोग सही मार्ग से भटककर अपनी हानि कर लेते हैं।

रजतमसत्व आहे ज्याचे अंगी । याच गुणॆं जगी वाया गेला ॥३॥  

अर्थ: "जिसके अंदर रज, तम और सत्व (तीन गुण) हैं, इन्हीं गुणों के कारण वह संसार में नष्ट हो गया।"  

भाव: तुकाराम यहाँ प्रकृति के तीन गुणों—रज (रजोगुण: सक्रियता), तम (तमोगुण: अज्ञान), और सत्व (सत्वगुण: शुद्धता)—का उल्लेख करते हैं। ये गुण मनुष्य को बाँधते हैं और उसे संसार में भटकने के लिए मजबूर करते हैं, जिससे उसका जीवन व्यर्थ चला जाता है।

तम म्हणिजे काय नर्कचि केवळ । रज तो सबळ मायाजाळ ॥४॥  

अर्थ: "तम (तमोगुण) क्या है? केवल नर्क ही है। रज (रजोगुण) माया का मजबूत जाल है।"  

भाव: तुकाराम तीन गुणों का और गहराई से विश्लेषण करते हैं। वे कहते हैं कि तमोगुण अज्ञान और दुख का कारण है, जो नर्क के समान है। वहीं रजोगुण मनुष्य को सांसारिक माया के जाल में फँसाए रखता है।

तुका म्हणे येथें सत्याचे सामर्थ्य । करावा परमार्थ अहर्निशी ॥५॥  

अर्थ: "तुका कहते हैं कि यहाँ सत्य का सामर्थ्य है। दिन-रात परमार्थ (आध्यात्मिक साधना) करनी चाहिए।"  

भाव: अंत में, तुकाराम उपदेश देते हैं कि सांसारिक गुणों से मुक्ति का एकमात्र रास्ता सत्य को अपनाना और निरंतर परमार्थ (ईश्वर भक्ति और आत्म-कल्याण की साधना) करना है। यहाँ वे भक्ति और ज्ञान के मार्ग को जीवन का लक्ष्य बताते हैं।

संपूर्ण भाव:

इस अभंग में तुकाराम महाराज जीवन के दार्शनिक पहलू पर प्रकाश डालते हैं। वे कहते हैं कि जन्म दुख का कारण है, जो पाप-पुण्य के कर्मों से उत्पन्न होता है। मनुष्य तीन गुणों (रज, तम, सत्व) के प्रभाव में संसार में भटकता है, जहाँ तमोगुण नर्क की ओर ले जाता है और रजोगुण माया में फँसाता है। उनका समाधान है कि सत्य को पहचानकर और दिन-रात ईश्वर भक्ति में लगकर मनुष्य इस चक्र से मुक्त हो सकता है। यह अभंग भक्ति के साथ-साथ वैराग्य और आत्म-जागरूकता का संदेश देता है।

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