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Monday, 10 March 2025

काया

आपणो कोई नहीं संगी रे कायारे 
काया से कोई नही संगी बिना 
राम रघुनाथ भजन बिना कोई नही संगी ॥धृ ॥

चार जणारे कांधे चढीयों, चढ्यो काठरी घोडी 
जाय जंगलमें डेरा दिना, फुक दीनी जेसी होळी ॥१ ॥

हाड जडे जू लकडी रें, केस जळे जू घास । 
कंचन सरसी देह जळत है, उभा देखे पास ॥२ ॥

माता पत्नी रोये जनम जनम, थारी बहन रोवे दस मास । 
घरका तिरीया तिन दिन रोवे। ओर करे घरवासा ॥३ ॥

कोन है थारी बहन भाणजी, कौन है थारी माता । 
कौन है थारे संग चलेंगो, कौन करेला बाता चार ॥४ ।।

धरती है मेरी बहन, भाणजी, अग्नि है म्हारी माता । 
दियो लियो सब संग चलेंगो । अकल करेगी बाता ॥ ५ ॥

मटीया मे रेवे मटिया बिछावें, मटिया कारे सिराना ।
 कहत कबीर सुनो भई साधो, मटिया में रम जाना ॥६ ॥

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