काया से कोई नही संगी बिना
राम रघुनाथ भजन बिना कोई नही संगी ॥धृ ॥
चार जणारे कांधे चढीयों, चढ्यो काठरी घोडी
जाय जंगलमें डेरा दिना, फुक दीनी जेसी होळी ॥१ ॥
हाड जडे जू लकडी रें, केस जळे जू घास ।
कंचन सरसी देह जळत है, उभा देखे पास ॥२ ॥
माता पत्नी रोये जनम जनम, थारी बहन रोवे दस मास ।
घरका तिरीया तिन दिन रोवे। ओर करे घरवासा ॥३ ॥
कोन है थारी बहन भाणजी, कौन है थारी माता ।
कौन है थारे संग चलेंगो, कौन करेला बाता चार ॥४ ।।
धरती है मेरी बहन, भाणजी, अग्नि है म्हारी माता ।
दियो लियो सब संग चलेंगो । अकल करेगी बाता ॥ ५ ॥
मटीया मे रेवे मटिया बिछावें, मटिया कारे सिराना ।
कहत कबीर सुनो भई साधो, मटिया में रम जाना ॥६ ॥
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