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आगे सीमा थोड़ी दुखी होकर
बोली, “करिश्मा को भी मुझ से कोई दिक्कत नहीं थी, बस वो चाहती थी की मैं
मूर्तिपूजा के साथ-साथ उनके मजहब के रिवाज और इबादत सिखु| इसके लिए हर रोज शाम को
वो मुझे ये सब सिखाने के लिए कही बाहर मिलने बुलाती थी| उसदिन भी उसने मुझे मजार
पर चादर चढ़ाना और दुआ मांगना सिखाया था| बस उसके बाद मैं माँ को सबकुछ बताने ही
वाली थी की मैं बेहोश हो गयी| उसके बाद का तो आपको सब पता ही हैं न मासी|”
रोते-रोते आगे सीमा ने
कहा, “मैं ही प्यार में इतनी अंधी हो गयी थी, की मैं समझ ही नहीं पायी, की मेरे
साथ हो क्या रहा हैं?”
लेखिका: रिंकू ताई
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