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Monday, 7 August 2023

साहसी बुढ़िया

बात ज्यादा पुरानी भी नहीं हैं। एक राज्य में कम पढ़े-लिखे यानि कि अज्ञानी लोग रहते थे। वहाँ का राजा भी अज्ञानियों में गिना जाता था।

राज्य की खुशहाली उस समय भंग हो गयी थी जब सभी एक अनजाने डर के बीच जिन्दा रहने की कोशिश कर रहे थे। कारण यह था कि राज्य में रात के समय किसी घण्टे की टनटन की आवाज आती थी, इसी कारण पुरे राज्य में भय व्याप्त था। हर आदमी के चेहरे पर आतंक देखा जा सकता था।

सभी समझ रहे थे कि यह सब कोई भूत कर रहा है। और भूत के डर के कारण सभी के कामधन्धे मन्दे पड़े थे।

इस प्रेत के आतंक से वहाँ का राजा भी अपरिचित और चिंतित था। मगर किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें ?

एक दिन राज्य के महामन्त्री ने राजा को सुझाव दिया कि वह राज्य के आसपास के इलाकों में यह मुनादी करवा दें कि जो कोई भी घण्टे वाले प्रेत को सदासदा के लिए खत्म कर देगा उसे मुँहमाँगा ईनाम दिया जायेगा।

राजा ने महामन्त्री की सलाह पर तत्काल अमल किया और राज्य के आसपास वाले इलाकों में मुनादी करवा दी कि घण्टे वाले प्रेत को खत्म करने बाले को मुँहमाँगा ईनाम दिया जाएगा।

उस राज्य के पड़ौसी राज्य की सीमा पर एक गाँव में एक बुढ़िया रहती थी, वह अत्यधिक गरीब किन्तु साहसी थी। उसके साहस की चर्चा आसपास के इलाकों में फैली हुई थी। राजा की मुनादी सुनकर उसने उस भूत को मारने का बीड़ा उठाया ।

राजा की आज्ञा पाकर वह उस राज्य के कुछ लोगों से मिली और उनसे पूछा-“रात को घण्टे की आवाज किस दिशा से आती है?’

लोगों ने बताया–“जंगल की ओर से!”

इस बात का पता करके बुढ़िया रात को जंगल में पहुँच गई। उसने देखा कि कुछ बन्दर एक घण्टे को पेड़ पर टांग कर हिला रहे हैं और खुशी के मारे उछल-कूद कर रहे हैं।

यह दृश्य देखकर बुढ़िया समझ गई कि मामला क्या है? उसने अनुमान लगाया कि “हो-न-हो इन बन्दरों के हाथ कहीं से यह घण्टा लग गया और ये इसे बजाबजा कर खुश हो रहे हैं, और रात में ही इसे बजाते हैं।”

बुढ़िया ने वहीं खड़े-खड़े उन बन्दरों से निपटने की तरकीब सोची और वापस आ गई।

मगर उसने अपनी मौजूदगी का एहसास किसी को नहीं कराया और सुबह अंधेरे-अंधेरे ही अपने साथ कुछ चने लेकर वह वापस जंगल की ओर रवाना हो गई।

इधर सुबह को पूरे राज्य में यह बात फैल गई कि बुढ़िया को घण्टे वाला प्रेत खा गया। क्योंकि रात भी घण्टा बजता रहा था।

यह अफवाह समाचार के रूप में राजा तक भी जा पहुँची। राजा ने यह सुना तो वो चिंतित हो उठा कि अब घण्टे वाले प्रेत का आतंक किस प्रकार समाप्त किया जाएगा?

इधर यह सब कुछ हो रहा था और उधर बुढ़िया चने लेकर जंगल में उसी स्थान पर जा पहुँची, जहाँ बन्दर घण्टा बजाते थे। उसने चनों को जमीन पर डाल दिया। चने देखते ही सारे बन्दर चनों पर टूट पड़े और बुढ़िया ने मौका

देखकर वह घण्टा पेड़ से उतार लिया। बन्दर चने खाने में ही मगन रहे।

बुढ़िया घण्टा लेकर पास के एक तालाब पर पहुँची और घण्टे को तालाब में डाल दिया। और फिर राज्य में जा पहुँची। राज्यवासी उसे देखकर आश्चर्यचकित रह गये। बुढ़िया राजा के पास पहुँची और उससे बोली-“महाराज!अब वह प्रेत कभी आपको परेशान नहीं करेगा। मैंने सदा-सदा के लिए उसे मार डाला।”

“मगर तुमने उसे मारा कैसे?” राजा ने आश्चर्य से पूछा।

“महाराज, मैं तन्त्रमन्त्र जानती हैं, मैंने उस प्रेत को जला डाला है।”

तब राजा ने उसे मुँहमाँगा ईनाम दिया।

बुढ़िया वापस लौटते हुए सोच रही थी-“कितने मूर्ख लोग हैं, यदि ये अक्ल से काम लेते तो इन्हें इतना सारा धन मुझ पर व्यय नहीं करना पड़ता।”

तभी एक आकाशवाणी हुई-“बुढ़िया तू अक्लमन्द है, होशियार है, और वे सब अज्ञानी लोग हैं।"

"तभी तो घण्टे वाले प्रेत से डर गये।” बुढ़िया ने मन ही मन मुस्कुरा कर सोचा।

मित्रों“ ज्ञान मनुष्य के अन्दर साहस, बल और आत्मविश्वास जगाता है,  किन्तु अज्ञान मनुष्य को निर्बल, असहाय और कायर बना देता है। इसलिए आवश्यकता है ज्ञान की, ज्ञान अर्जन करके हम अपने अन्दर शक्ति का संचार उत्पन्न कर सकते हैं।”


   🌹🙏🏻🚩 *जय सियाराम* 🚩🙏🏻🌹

      🚩🙏🏻 *जय पेडा हनुमान        🚩🙏🏻

साभार: तिवारीजी 

अब ऐसे ही कुछ घंटे के प्रेत आज भी समाज को डराए रखने के लिए पिछले कुछ दशकों से बज रहे हैं और जो लोग अपने आप को आधुनिक बताने के चक्कर में अपने इस्तिहस का ज्ञान नहीं रखते हैं, अपनी परमपरा का ज्ञान नहीं रखते उनकी फैलाई मुर्खता भरी बातों की वजह से हम बजते हुए घंटे को ढूंढ भी नहीं रही हैं| अभीभी समय नहीं गया हैं मुर्खता भरी भयपूर्ण बाते प्रचारित करनेवालों पर भरोसा करने की जगह अपने गौरवपूर्ण इतिहास का ज्ञान लेने में ही असली चतुराई हैं|

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