जय श्री गणेश मेरे मित्रों और सखियों। आज विकट संकष्टी चतुर्थी के बारेमे लिख रही हूं।
विकट संकष्टी चतुर्थी
विकट संकष्टी चतुर्थी मतलब वैशाख चतुर्थी याने वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी। मान्यता है की इस दिन गणेशजी की पूजा तथा चतुर्थी व्रत करने से संतान प्राप्ति होती है। इस चतुर्थी को संकट हरने वाली चतुर्थी भी कहते है। यह हिंदू वर्ष की पहली बड़ी चतुर्थी है।
चतुर्थी माता की पूजा
चौथ माता या चतुर्थी माता गौरी का ही एक रूप है। गौरी ने ही गणेशजी को जन्म दिया है। चतुर्थी के दिन माता का पूजन करना चाहिए। देवीभागवत के अनुसार देवी पार्वती और शिव ही सारी सृष्टि के निर्माणकर्ता है - दोनों प्रकृति और पुरुष है। प्रकृति के प्रति मन में हमेशा कृतज्ञता का भाव रहना चाहिए - आप प्रेमसे हर बात के लिए प्रकृति को धन्यवाद देंगे तो वह आपको आपके संकल्प पूर्ण करने की शक्ति देंगी।
चौथ माता की प्रतिमा आपके पास है तो आप उसी प्रतिमा को स्थापित कर उसकी पूजा कर सकते है। और अगर आपके पास माता की प्रतिमा नहीं है तो कोई बात नहीं आप सुपारी को माता की जगह स्थापित कर विधिवत उसी सुपारी की पूजा कर सकते है और माता जी को वस्त्र (कमसे कम ब्लाउज पीस) चढ़ा सकते है। अगले दिन किसी गरीब स्त्री को वही वस्त्र दान दे सकते है।
गणेश पूजन
गणेशजी बुद्धि के देवता है तो उनका सम्बन्ध मानव के विचारों से आता है। गणेशजी की पूजा तथा गणेश मंत्रों का जाप करने से विचारों में शुद्धता आती है और उसका प्रभाव जीवन पर सभी तरह से भला ही होता है।
तीन प्रकार के कर्म होते है - अ) वैचारिक कर्म - सरल भाषा में सोचना, ब) वाणी कर्म - बोलना और क) शारीरिक कर्म - शरीर से किया जाने वाला कर्म। जब तक आप सोचते नहीं तबतक आप शरीर या वाणी से कोईभी कर्म नहीं कर सकते है। इसीलिए आपके विचार शुद्ध रहना जरुरी है। शुद्ध विचार से ही कुशल कर्म संभव है। और अगर कर्म अच्छे है तो परिणाम भी अच्छे रहेंगे।
उसके बाद गणपति अथर्वशीर्ष या गणेश स्तोत्र का कमसे कम २१ बार पठन करें। गणपति मंत्र की माला भी आप चाहे तो फेर सकते है।
चन्द्र दर्शन एवं चन्द्र पूजन
चतुर्थी के दिन चन्द्र उदय के बाद चन्द्रमा दर्शन कर उन्हें अर्घ्य अर्पित कर पूजन करते है। यह पूजन इसलिए है क्यों की -
१) मनुष्य शरीर में ७०% पानी होता है और चन्द्रमा का खगोलीय असर पानी पर होता है - इसका मतलब हमारे शरीर पर भी उसका असर उतने ही अनुपात में होता है जितने अनुपात में सागर पर होता है। कुछ विशिष्ट तिथियों पर चंद्र का दर्शन करने से मतलब क्षण चंद्रप्रकाश में बिताने से हमारे शरीर पर उसका अच्छा असर होता है इसीलिए उन खास तिथियों पर कोई न कोई व्रत या त्यौहार सनातन धर्म सस्कृति में मनाया जाता है।
२) मनुष्य का मन जल समान है - शान्त हुआ की साफ़ होना शुरू हो जाता है। और इसीलिए मन का स्वामी चन्द्र ऐसा ज्योतिषशास्त्र का मत है। इसीलिए चंद्र का दर्शन करने की परम्परा सदियों से चली आ रही है।
३) चन्द्र का प्रभाव सभी जीवित वस्तुओ पर होता है - वनस्पतियो पर भी होता है। की वनस्पतिया औषधीय होती है उनकी शुद्धि जरुरी है इसीलिए चन्द्र को अर्घ्य प्रदान करते समय मनमे वनस्पतियों की शुद्धि की प्रार्थना अवश्य करे।
भारतीय परम्पराओं में मन के मालिक बनने के हिसाब से ही पूजन विधिया है। और अध्यात्म केवल मन को स्वच्छ करने के लिए है। गणेशजी और चन्द्र के पूजन से मन और विचार दोनों की शुद्धि होती है इसीलिए चतुर्थी के दिन चतुर्थी माता के साथ उनका भी पूजन किया जाता है।
संतान प्राप्ति और सौभाग्य प्राप्ति
संतान प्राप्ति का और चतुर्थी पूजन का सम्बन्ध क्या है? यह प्रश्न मनमे आता है। उसका एक उत्तर यह है की चन्द्रमा का एक माह की एक पूरी साइकिल है - पूर्णिमा से अगली पूर्णिमा तक का एक महीने का समय है। और महिलाओ की महावारी का समय भी उतना ही है। चन्द्र पूजन से गर्भ धारणा की सम्भावनाये बढ़ जाती है इसीलिए चन्द्र दर्शन और पूजन आवश्यक है। संतान प्राप्ति के लिए चतुर्थी का व्रत पति और पत्नी दोनों को करना चाहिए तभी अच्छी संतान की प्राप्ति होंगी।
अगर आपके विचार शुद्ध है तो कर्म कुशल रहेंगे और उनसे सारी बाधाएं दूर हो जाएँगी और आपका सौभाग्य जागेगा इसीलिए चतुर्थी व्रत से सारे संकट दूर हो कर व्रत करने वाले पुरुष और स्त्री दोनों को सौभाग्य प्राप्त होता है।
माता, गणेशजी और चन्द्रमा का पूजन चतुर्थी के दिन करते है। अगर आप पूजन पूर्व मन को शांत करके धन्यवाद करते है और मन ही मन देवताओ से जाने अन्जाने बुरे कर्मो की क्षमा याचना करके फिर आपके संकल्प को पूर्ण करने की प्रार्थना करते हो तो आपका व्रत अवश्य पूरा होगा और फलदायी होगा।
अंततक पढ़ने के लिए धन्यवाद। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें। और निचे कमेंट बॉक्स में एक बार माता का जयकारा लगा दीजिये।
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