द केरला स्टोरी यह फिल्म हाल ही में रिलीज हुई हैं और चर्चा का विषय बन चुकी हैं| कुछ फिल्म क्रिटिक्स जो असल में पेड रिव्यु देते हैं उनके हिसाब से ये एक प्रोपगंडा फिल्म हैं| इस फिल्म की कहानी को झूठा साबित करने की पूरी कोशिश की जा रही हैं और कोर्ट केस भी हो गयी हैं|
पर क्या भारतीय सिनेमा या बॉलीवुड की हर फिल्म आपको केवल सच बताती आई हैं?
नहीं भारत की कोई भी कमर्शियल मसाला फिल्म आपको कोई सत्य बताती नहीं हैं| ये १९४० के दशक से केवल भारत की संस्कृति और बहुसंख्यांक हिन्दू समाज को बदनाम और भ्रमित करने के लिए बनायीं गयी हैं| और आप ये ब्रेनवाशिंग आपकी ही कमाई के पैसों से देखते हो आपका अपना कीमती समय देकर|
आपको शायद ये बात गलत लगे पर भारतीय सिनेमा का इतिहास रहा हैं की तत्थ्यों को मोड़कर आपके सामने प्रस्तुत किया जाए और आपके विचारों को देश और धर्म के विरुद्ध भड़काया जाए या हिन्दू होने के नाते आपको शर्मिंदा किया जाए|
श्री ४२० में राज कपूर अपनी प्रेमिका को दिवाली के दिन छोड़कर जुआ खेलने लगता हैं| इस सुपरहिट फिल्म ने दिवाली का स्वरुप विकृत कर दिया| पहले तो यह ट्रेंड सेट हो गया की दिवाली जुआ खेलने का (जो की लक्ष्मीजी का अपमान हैं) का मौका हैं और लोग मॉडर्न बनने के नाम पर लक्ष्मी पूजन के जगह जुए को ज्यादा महत्त्व देने लगे| ऐसा कोई धर्म धरती पर नहीं हैं जो ये कहे की त्यौहार के दिन जुआ खेलो और गरीब हो जाओ पर बॉलीवुड आपको ये झूठ दशकों से परोसता आया हैं और आप आपका समय बर्बाद कर इस झूठ को स्वीकार किये जा रहे हो|
बॉलीवुड का बड़ा फेमस विलेन हैं तेजा जो दिवाली के दिन विजय (अमिताभ बच्चन) के माँ बाप को दिवाली के पटाखों के आवाज का सहारा लेकर मार देता हैं| कुछ ऐसे ही होली के दिन गब्बर (फिर से अमिताभ बच्चन की शोले फिल्म) खून की होली खेलने के लिए गाव में आता हैं| कुछ ऐसे ही होली के दिन किसी दामिनी के घर बलात्कार की घटना होती हैं जो बड़ी भयानकता के साथ दिखाई गयी| ऐसा कोई त्यौहार बॉलीवुड ने नहीं छोड़ा जिसका स्वरुप बदले की भावना से ना जोड़ा गया हो| अमिताभ बच्चन इसमें एक्सपर्ट हैं| ये कलाकार नवरात्रि में माता के ही मंदिर में खून खराबा करता हैं| एंग्री यंग अमिताभ की कई फिल्मे हैं जिसमे हिन्दू त्यौहार पर खून खराबा किया गया हैं और ये अब ट्रेंड बन गया हैं जो फिल्मों तक सिमित नहीं बल्कि टीवी सेर्तिअल्स और सोशल मीडिया के स्केच वीडियोज में भी हैं| ये ट्रेंड इसीलिए बन गया हैं क्यों की हमने इस तरह के दृश्यों पर कोई आपत्ति नहीं जताई|
महाशिवरात्रि पर एक गाना बड़ी जोरशोर से हिन्दू लगते हैं और वो हैं राजेश खन्ना का जय जय शिवशंकर| इस गाने में हिन्दू साधू वेश में राजेश खन्ना के समेत कई कलाकार शिव आराधना के नाम पर भांग का नशा कर अश्लील हरकते करते हैं| और इन अश्लील नशेडी हरकतों के पर हमने ही कोई आपत्ति नहीं जताई और ये गाना रातोरात लोकप्रिय हो गया और आज भी नयी पीढ़ी इसे बड़े चाव से सुनती और देखती हैं| पर ये अश्लीलता होली के गीतों में भी हैं|
होली का पर्व प्रकृति के रंगों से प्रकृति को धन्यवाद देने का पर्व हैं और राधा कृष्ण की आराधना इसका अभिन्न अंग हैं| बागवान फिल्म का “होली खेले रघुवीर अवध में” यही गीत ले लीजिये| बड़े जोर शोर से इस गीत पर होली पार्टी में हिन्दू ठुमके लगाते हैं| गाने का अर्थ निकालता हैं, ‘आप पुरुष हैं और आपको होली पर मौका मिलता हैं की आप हर महिला को अपने हिसाब से शरीर पर कही भी रंग लगादो इसमें शर्माने की कोई बात नहीं हैं|’ और ऐसे ही हर गीत को अश्लीलता से हर होली पर रिलीज़ किया गया और हिन्दू समाज ने ही ऐसे अश्लील गानों को लोकप्रिय बनाया|
बात केवल आपके त्योहारों की ही नहीं आपके मंदिरों की भी हैं| गर्मियों में लोग श्रीनगर, कश्मीर घुमने जाते हैं तो उन्हें सिलसिला फिल्म के “देखा एक ख्वाब” गाने में बताया गया तुलिप गार्डन देखना हैं पर शंकराचार्य मंदिर नहीं जाना हैं| शंकराचार्य मंदिर नहीं जाने का कारन भी बॉलीवुड की फिल्म मिशन कश्मीर में हैं जिसमे शंकराचार्य मंदिर को आतंकवादियों का अड्डा बताया गया|
ये सारा भ्रम भारतीय संस्कृति को निचा दिखाकर भोले भले मासूम समाज का ब्रेनवाशिंग करने के लिए ही बॉलीवुड कई दशकों से किये जा रहा हैं| इसका असर ये होता हैं की लोग तिलक जनेवु छोड़कर चादर और फादर के झांसे में आये| भोली लड़कियों का ब्रेनवाशिंग इन्ही फ़िल्मी सीन्स को बताकर पहले शुरू किया जाता हैं और बाद में उनके साथ जो होता हैं वो द केरला स्टोरी में बताया गया हैं|
आपका कीमती समय, आपकी मेहनत की कमी दोनों आपने इस ब्रेनवाशिंग पर मनोरंजन के नाम पर बर्बाद करना या दोनों का सदुपयोग कर अपने धर्मग्रंथों में लिखी गाथाये पढ़कर स्वयं का तथा अपने बालक बालिकाओं का चरित्र निर्माण करना यह आपका निर्णय हैं| इस लेख का काम आपको सिक्के की दूसरी साइड दिखाना हैं|
मेरे बचपन में मेरी माताजी ने मुझे ये कहा था, “फिल्मों में जो बताते हैं उनमे पाच प्रतिशत सत्य होता हैं|” मैंने सुना क्युकी माताजी की बात में प्रभाव था| आज के बालक इस बात को बोलकर नहीं सुनेंगे| वे इस बात को माने इसके लिए उन्हें पहले अपने व्यवहार में गलत को न देखने की बात लानी पड़ेगी तभी उनकी बात का प्रभाव होगा|
यहाँ तक पढ़ने के लिए धन्यवाद!
जय जय श्री राम!
© रिंकू ताई!
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