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Sunday, 9 April 2023

ए. के. हंगल

जय श्री राम काफिरों!

हा आपको काफ़िर कह कर संबोधित किया हैं मैंने| आप भारतीय सिनेमा के लिए एक काफिर ही तो हैं| और "सिनेमा और समाज" इस लेख श्रृखला में आपको काफिर ही कहूँगी|

नमस्ते मैं हु रिंकू ताई और आपका स्वागत हैं मेरे इस ब्लॉग पर!


ए के हंगल - शोले के इमाम साहब!

मेरा यह ब्लॉग ए के हंगल के नाम हैं|

ए के हंगल पूरा नाम अवतार किशन हंगल, जन्म से कश्मीरी पंडित हैं और इनका जन्म सियालकोट में १ फरवरी १९१४ को हुआ था| सियालकोट अब पाकिस्तान में हैं तब ब्रिटिश राज के समय पंजाब प्रोविएंस में था| कश्मीरी पंडित रहने के बावजूद भी ए के हंगल शुरूआती दिनों में दर्जी का काम किया करते थे| मतलब ऐसा कभी जरुरी नहीं था की अगर आप पंडित हैं तो केवल पूजा पाठ ही कर सकते हैं - भारतीय समाज में व्यक्ति शुरू से ही अपनी रूचि के हिसाब से अपना व्यवसाय चुन सकते थे| 

ए के हंगल का बचपन और जवानी पेशावर में ही ज्यादा गुजरा| इन दिनों ये थिएटर आर्टिस्ट के रूप में भी कई रोल कर चुके थे| और कई सालों तक कई नाटक उन्होंने किये| १९४७ में बटवारे के समय उन्होंने पाकिस्तान में रहना स्वीकार किया था, परन्तु उनकी कम्युनिस्ट विचारधारा के चलते उन्हें पाकिस्तान सरकार ने जेल में बंदी बना लिया था| १९४९ में रिहा होने के बाद वे मुंबई आये और यहाँ पर दर्जी का काम करने लगे| समय मिलने पर नाटक भी किया करते थे| फिर १९६६ में इन्हें राज कपूर की फिल्म तीसरी कसम में पहली बार उम्र के ५५ बिट जाने के बाद काम मिला| १९१२ तक फिल्मों में कई छोटे मोटे रोल करने के बाद उन्होंने कृष्ण और कंस नामक फिल्म में उग्रसेन का रोल तथा मधुबाला एक इश्क एक जूनून इस सीरियल में स्पेशल अपीयरेंस किया और उसके बाद २६ अगस्त १९१२ में उम्र के ९८ वे साल में गुजर गए| ये कलाकार अपनी उम्र के आखरी समय तक काम करता रहा|

कई आर्टिकल्स आपको मिल जायेंगे जो कहेंगे की ए के हंगल एक स्वतंत्रता सेनानी हैं| कोई ब्रिटिश राज के समय पेशावर या कराची से ताल्लुक रखने वाला इंसान हमेशा ही स्वतंत्रता सेनानी हो ये जरुरी नहीं हैं| अगर वो स्वतंत्रता सेनानी थे तो किस क्रन्तिकारी की विचारधारा से प्रभावित थे ये भी जानना जरुरी हैं| पर इसके प्रमाण कही नहीं लिखे गए हैं| अगर आपको पता हो तो कमेंट कर जरुर बताइए| कई जगहों पर ये भी लिखा मिलेगा की कमला नेहरु उनकी दूर की मौसी हैं| केवल कश्मीरी पंडित रहने से कोई नेहरु परिवार का रिश्तेदार नहीं होता| यही हैं बॉलीवुड की गन्दगी|

जब ए के हंगल पेशावर में थे तब वो श्री संगीत प्रिय मंडल यह नाटक ग्रुप के सदस्य थे| कराची में उन्हें अपनी कम्युनिस्ट विचारधारा के चलते तिन साल की सजा हुई थी उसके बाद वो मुंबई चले आये| मुंबई में वो बलराज साहनी और कैफ़ी आज़मी जैसे मार्क्सवादी नाटककारो से जुड़ गए| और इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन के मेम्बर बन गए| कई नाटको में उन्होंने लीड रोल किया, और ज्यादातर नाटक कम्युनिस्ट और मार्क्सिस्ट विचारधारा के थे| 

ए के हंगल ने २०० से अधिक फिल्मों में अलग अलग भूमिकाये की| उनके इसी योगदान के लिए २००६ में भारतीय सरकार ने उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार दिया था| इसके बावजूद ए के हंगल की जिंदगी बदहाली में गुजरी| राज ठाकरे ने अपनी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की मदत से ए के हंगल की मेडिकल ट्रीटमेंट में मदत की थी| बाकी इस कलाकार को तो बॉलीवुड ने जैसे भुला ही दिया था| अब ऐसा क्यों हुआ? बॉलीवुड की परंपरा इसका कारण हैं या और कोई वजह ये आप ही बता सकते हैं|

यहाँ तक पढ़ने के लिए धन्यवाद!

ये ब्लॉग लिखने के लिए मुझे काफी मेहनत करनी पड़ती हैं| अगर आपको ब्लॉग अच्छा लगा हो तो कृपया इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे| आपकी राय निचे कमेंट करिए| हो सके तो इस ब्लॉग को फॉलो कर लीजिये| इससे एक प्रेरणा बनी रहती हैं की कोई मेरी बात शांति से पढ़ कर समझ रहा हैं| आपका एक शेयर और एक कमेंट ब्लॉग की इंगेजमेंट बढाकर इसे ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पोहोचाता हैं|

जय माता दी!


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