भारत माता की जय!
राजस्थान में विवाह के समय कई गीत गाये जाते हैं. उनमे से एक हैं दही रोटी. दही रोटी खाने से पेट की कई बीमारियों का उपाय होता हैं. इसीलिए राजस्थान में बहु के हाथो सबको दही रोटी खिलाने का रिवाज हैं या यु कहे की वहा सालभर में कई बार दही रोटी का खाना किया जाता हैं क्यों की राजस्थान की तपती गर्मी में दही रोटी ठंडक भी देती हैं और पेट भी स्वस्थ रहता हैं. धुप के दिनों में आप भी दही रोटी खाइए और पेट के कई विकारों का उपाय करिए - भलेही आप दुनिया के किसी भी कोने में रहते हो!
तो गीत के बोल इस तरह हैं!
बीस बरस का पिवजी हमारा, पचीस बरस घरनार।
हमारी जोडी हिलतीजी मिलती ॥टेर॥
चांदार चांदन माथोजी न्हायो, तो सूरज किरण गूथायो ॥१॥
डाबोजी खोलर नथणीजी पेरी, डाबोजी खोलर गेणोजी पे-यो ॥२॥
पेटीजी खोलर कपडाजी पे-या, तो पेरी कसुंबल साडी ॥३॥
रिमझिम करता महल पधा-या, तो राजिंद मांग दही रोटी ॥४॥
घमघम करता हेटजी उत-या, जाय भाभीजी जगायाजी ॥५॥
उठो भाभीजी थाका देवर हट लाग्या, आदिका मांग दही रोटी ॥६॥
म्हार तो सार नही छ दिवराणी, जाय बाईजी जगाओजी ॥७॥
उठो बाईजी थाका बिरा हट लाग्या, आदिका मांग दही रोटी ॥८॥
म्हार तो सार नही छ भोजाई, जाय माऊजी जगाओजी ॥९॥
उठो सासूजी थाका जाया हट लाग्या, आदिका मांग दही रोटी ॥१०॥
फ्रीजम पडीए बव्हड दहिरी कुंडी, डाबाम थंडी रोटी ॥११॥
रिमझिम करता मेहल पधा-या, ओ ल्यो राजीन्द दही रोटी ॥१२॥
भाभीजीर छान ल्याई दही रोटी, बाईजीर छान ल्याई दही रोटी ॥१३॥
सासुजीर छान ल्याई दही रोटी, तो मोरासु निवालो भरावोजी ॥१४॥
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धन्यवाद!
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