भारत माता की जय!
कभी कभी कोई घटना ऐसी घटती है की आपको सोचने पर मजबूर करती हैं| ऐसा ही एक काल्पनिक किस्सा निचे दिया हैं|
एक
आदमी ने एक विज्ञापन दिया कि उसे उसकी चिन्ता करने वाला एक आदमी चाहिये। वेतन वो
जो मांगेगा,
मिलेगा
।
विज्ञापन
देखकर एक बेरोजगार तुरंत उसके पास गया और उसने उसके लिये चिन्ता करने वाली नौकरी
के लिये 10000/-
महीना
सैलरी की मांग की । विज्ञापन देने वाले ने उसे 10000/- देना
स्वीकार कर लिया और कहा कि तुम अभी से अपनी नौकरी शुरु कर सकते हो ।
नौकरी
शुरु हो गई। अब मालिक ने उसे अपनी सारी चिंताएं बता दी ।
मेरी
महिने की आमदनी 50000/- है ।
बच्चों
की फिस 10000/-
महीना
है ।
मकान
का भाडा 15000/-
महीना
है ।
घर
का खाने पीने पर खर्च 15000/- है ।
मेरे
रोज़ ऑफ़िस जाने का खर्च महिने भर का 5000/- है ।
धोबी
का खर्च महिने का 3000/- है ।
काम
वाली बाई को 2000/-
महीना
देना होता है ।
महिने
मे एक बार हमलोग कहीं घुमने जाते हैं उसमे कम से कम 5000/- लग जाता
है ।
अब
चिन्ता करने वाला आदमी से बर्दाश्त नहीं हुआ, उसने कहा
मालिक आपका अभी तक का खर्च 55000/- है और अभी आपने
मेरा 10000/-
सैलरी
उसमे नहीं बताया है, तो सब लेकर 65000/- हो गए, आमदनी
आपकी 50000/-
है, बाकी
पैसा कहाँ से लाएंगे ?
मालिक
ने कहा उसी के लिये तो तुम्हे रखा है, अब तुम 10000/-
ले
रहे हो मेरी सारी चिन्ता करने के लिये तो मैं क्यों चिन्ता करुँ, अब ये
चिन्ता तुम करो कि बाकी पैसा कहाँ से आएगा ।
इस घटना का सार इतना ही हैं की कुछ लोग अपनी आमदनी से ज्यादा के खर्च करने लगते हैं और फिर वो अतिरिक्त खर्च जी का जंजाल बन जाता हैं| ऐसा ही कुछ राजनीती में भी होता हैं| कुछ राजनेता जितने के लिए अवास्तव से आश्वासन दे देते हैं जिनको पूरा करने की चिंता वो तो नहीं करते पर हा जनता पर उन आश्वासनों का भार जरुर आ जाता हैं और ऐसे ही फिर देश का आर्थिक स्तर गिरने लगता हैं और अर्थव्यवस्था चौपट हो जाती हैं| मुफ्त में कुछ देंगे इस तरह के आश्वासन देने वाले राजनेताओं को इलेक्शन में खड़े होने का अधिकार ही नहीं रहना चाहिए|
यहाँ तक पढ़ने के लिए धन्यवाद! अगर आप सहमत हो तो कृपया इसे शेयर करे और आपके विचार चर्चा हेतु निचे कमेंट करे| चर्चा करेंगे तभी बात लोगो तक पोहोचेंगी|
जय श्री राम!
No comments:
Post a Comment