काशी की पवित्र नगरी में, गंगा के किनारे, एक छोटी-सी कन्या खेला करती थी, जिसका नाम था मणिकर्णिका, लेकिन प्यार से सब उसे मनु कहते थे। यह कहानी उस नन्हीं मनु की है, जो बचपन में ही अपने साहस और बुद्धिमत्ता से सबको चकित कर देती थी।
एक सूरजमुखी सुबह, जब मनु महज छह बरस की थी, वह अपने पिता मोरोपंत तांबे के साथ काशी के घाटों पर टहलने गई। पिता-पुत्री गंगा की लहरों को देख हंस रहे थे, तभी मनु की नजर एक छोटे से नाव पर पड़ी, जो बीच धारा में फंसी थी। नाव में एक बूढ़ा मछुआरा और उसका छोटा पोता घबराए हुए थे। नाव का पतवार टूट चुका था, और तेज धारा उसे अनियंत्रित बहा रही थी।
लोग घाट पर खड़े चिल्ला रहे थे, पर कोई मदद को आगे नहीं बढ़ा। मनु ने अपने पिता की ओर देखा और बोली, "बाबा, अगर हम अभी नहीं गए, तो वे डूब जाएंगे!" मोरोपंत हड़बड़ा गए। "मनु, तू छोटी है, यह खतरनाक है!" पर मनु की आँखों में एक अजीब सी चमक थी। उसने कहा, "बाबा, डरने से कोई बचा नहीं, और गंगा मैया मेरे साथ हैं!"
मनु ने पास खड़ी एक छोटी नाव की ओर दौड़ लगाई। उसने देखा था कि मछुआरे अक्सर रस्सी और बांस से नाव को खींचते हैं। उसने तुरंत एक मजबूत रस्सी उठाई और एक अनुभवी नाविक की तरह उसे नाव के किनारे से बांधा। फिर, बिना वक्त गंवाए, वह नाव में कूद पड़ी और अपने छोटे-छोटे हाथों से चप्पू चलाने लगी। घाट पर खड़े लोग दंग रह गए। एक छोटी-सी बच्ची इतने साहस से नाव चला रही थी!
मनु की नन्हीं नाव तेजी से फंसी हुई नाव के पास पहुंची। उसने रस्सी मछुआरे की ओर फेंकी और चिल्लाई, "दादाजी, इसे पकड़ो और बांध लो!" मछुआरे ने कांपते हाथों से रस्सी पकड़ी और अपनी नाव से बांध दी। मनु ने पूरी ताकत से अपनी नाव को किनारे की ओर खींचना शुरू किया। उसका छोटा सा शरीर पसीने से तर था, पर चेहरे पर दृढ़ता की मुस्कान थी। धीरे-धीरे, दोनों नावें किनारे की ओर बढ़ने लगीं।
जब नावें किनारे पहुंचीं, तो घाट पर तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। मछुआरे ने मनु को गले लगाया और आशीर्वाद दिया, "बेटी, तू तो गंगा की लहरों सी तेज और साहसी है!" मोरोपंत की आँखों में गर्व के आंसू थे। उन्होंने मनु को सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, "मेरी मनु, तू सचमुच एक रानी है।"
उस दिन काशी के घाटों पर एक छोटी-सी मनु ने न केवल दो जिंदगियां बचाईं, बल्कि यह भी दिखा दिया कि साहस और बुद्धि उम्र की मोहताज नहीं होती। यही मनु आगे चलकर रानी लक्ष्मीबाई बनी, जिसने अपने शौर्य से इतिहास के पन्नों को अमर कर दिया।
नैतिक: साहस और सूझबूझ से कोई भी मुश्किल आसान हो सकती है, चाहे उम्र कितनी भी छोटी हो।
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