17वीं सदी की बात है, जब मुगल सम्राट जहांगीर का शासन अपने चरम पर था। ग्वालियर के किले की अंधेरी कोठरियों में 52 हिंदू राजा और सामंत कैद थे। ये राजा मुगल सत्ता के खिलाफ अपनी आवाज उठाने के कारण बंदी बनाए गए थे। उनकी रिहाई की कोई उम्मीद नहीं थी, और किले की मोटी दीवारें उनकी आजादी की हर पुकार को दबा देती थीं। लेकिन सिखों के छठे गुरु, गुरु हर गोविंद सिंह की करुणा और चतुराई ने इस असंभव को संभव कर दिखाया।
गुरु हर गोविंद सिंह, जो अपनी आध्यात्मिक शक्ति और योद्धा स्वभाव के लिए जाने जाते थे, उस समय मुगल दरबार में जहांगीर के अतिथि के रूप में ग्वालियर आए थे। जहांगीर, जो गुरु के पिता गुरु अर्जन देव जी की शहादत के बाद सिखों के प्रति कुछ नरम पड़ चुके थे, गुरु हर गोविंद सिंह के व्यक्तित्व से प्रभावित थे। गुरु जी की विद्वता, शांति और साहस ने जहांगीर का मन मोह लिया था। लेकिन गुरु जी का ध्यान उन कैदियों की ओर गया, जो ग्वालियर के किले में अमानवीय परिस्थितियों में जीवन बिता रहे थे।
एक दिन, जहांगीर ने गुरु जी से पूछा, "गुरु जी, आपकी कोई इच्छा हो तो बताइए।" गुरु हर गोविंद सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, "महाराज, मेरी कोई व्यक्तिगत इच्छा नहीं है। लेकिन यदि आप कुछ देना ही चाहते हैं, तो उन 52 राजाओं को मुक्त कर दीजिए, जो इस किले में बंद हैं। उनकी मुक्ति ही मेरी इच्छा है।"
जहांगीर, जो गुरु जी के प्रति सम्मान रखते थे, इस अनुरोध से असमंजस में पड़ गए। इतने सारे राजाओं को रिहा करना मुगल सत्ता के लिए जोखिम भरा हो सकता था। फिर भी, उन्होंने गुरु जी की बात मानने का निर्णय लिया, लेकिन एक शर्त रख दी। उन्होंने कहा, "गुरु जी, मैं उन सभी को रिहा कर दूंगा, जो आपके चोगे (वस्त्र) को पकड़कर किले से बाहर निकल सकें।"
यह शर्त सुनकर मुगल दरबार में हंसी की लहर दौड़ गई। सभी को लगता था कि यह एक असंभव शर्त है। एक चोगा कितने लोगों को पकड़ सकता है? लेकिन गुरु जी ने शांत मन से इस चुनौती को स्वीकार किया। उन्होंने अपने सिख अनुयायियों को आदेश दिया कि वे एक विशेष चोगा तैयार करें। यह चोगा सामान्य नहीं था। यह लंबा और विशाल था, जिसमें 52 लंबी-लंबी कपड़े की पट्टियाँ सिल दी गई थीं। प्रत्येक पट्टी को एक कैदी पकड़ सकता था।
जब रिहाई का दिन आया, गुरु हर गोविंद सिंह उस विशाल चोगे को पहनकर किले के द्वार पर खड़े हुए। एक-एक करके, 52 कैदियों ने उस चोगे की पट्टियों को थामा। गुरु जी के पीछे-पीछे, सभी कैदी किले से बाहर निकल आए। यह दृश्य देखकर जहांगीर और उनका दरबार स्तब्ध रह गया। गुरु जी ने न केवल अपनी बुद्धिमत्ता से जहांगीर की शर्त को पूरा किया, बल्कि अपनी करुणा से 52 राजाओं को नया जीवन भी दिया।
इस घटना के बाद, गुरु हर गोविंद सिंह को "बंदी छोड़" के नाम से जाना जाने लगा।
यह कथा न केवल उनकी चतुराई और करुणा को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि सच्चा नेतृत्व वह है जो दूसरों की भलाई के लिए असंभव को संभव बना दे। यह कहानी सिख इतिहास में एक प्रेरणादायक अध्याय के रूप में आज भी जीवित है, जो गुरु जी के साहस और मानवता के प्रति उनके प्रेम को दर्शाती है।
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