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Thursday, 26 June 2025

पेड़ की टहनी भी कविता लिख सकती है!


कहानी उस समय की है जब कालिदास, जो बाद में संस्कृत साहित्य के शिखर पुरुष बने, अभी अपनी विद्वता को पूरी तरह स्थापित नहीं कर पाए थे। कहा जाता है कि कालिदास शुरू में अत्यंत साधारण और कुछ लोग उन्हें मूर्ख भी मानते थे। लेकिन उनकी बुद्धि और प्रतिभा का उदय एक ऐसे शास्त्रार्थ में हुआ, जो इतिहास में अमर हो गया।

उज्जयिनी नगरी में राजा भोज की सभा विद्वानों का केंद्र थी। वहाँ देश-विदेश से पंडित, कवि और विद्वान शास्त्रार्थ के लिए आते थे। एक दिन राजा भोज ने घोषणा की कि उनकी सभा में एक महान शास्त्रार्थ होगा, जिसमें कोई भी विद्वान हिस्सा ले सकता है। जो जीतेगा, उसे राजा का विशेष सम्मान और पुरस्कार मिलेगा। सभा में उस समय के बड़े-बड़े विद्वान मौजूद थे, जिनमें से एक थे पंडित वररुचि, जो अपनी तर्कशक्ति और संस्कृत के ज्ञान के लिए विख्यात थे।
उधर, कालिदास, जो उस समय एक साधारण-से व्यक्ति माने जाते थे, सभा में चुपके से शामिल हो गए। कुछ लोग कहते हैं कि कालिदास को वहाँ लाने का मकसद विद्वानों का मजाक उड़ाना था, क्योंकि उन्हें "मूर्ख" समझा जाता था। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।

शास्त्रार्थ शुरू हुआ। सभा में विद्वानों ने वेद, शास्त्र, काव्य और तर्क पर गंभीर चर्चाएँ शुरू कीं। पंडित वररुचि ने एक जटिल प्रश्न उठाया:
"कविता में रस का मूल स्रोत क्या है? और क्या कोई ऐसा कवि है जो बिना शास्त्र पढ़े रस की सृष्टि कर सकता है?"
सभी विद्वान अपनी-अपनी विद्वता दिखाने में जुट गए। कोई शास्त्रों के उद्धरण दे रहा था, तो कोई गूढ़ दर्शन की बातें कर रहा था। लेकिन कालिदास चुपचाप बैठे सब सुन रहे थे। सभा में कुछ लोग उन्हें देखकर हँस रहे थे, क्योंकि उनकी साधारण वेशभूषा और चुप्पी को मूर्खता समझा जा रहा था।

वररुचि ने तंज कसते हुए कहा, "ऐसा लगता है कि इस सभा में कुछ लोग केवल दर्शक बनने आए हैं। क्या कोई नया चेहरा इस प्रश्न का उत्तर देना चाहेगा?" उनकी नजर कालिदास पर पड़ी। सभा में ठहाके गूँजे। राजा भोज ने भी मुस्कुराते हुए कालिदास को आगे आने का इशारा किया।
कालिदास उठे। उनकी आँखों में एक अनोखी चमक थी। सभा में सन्नाटा छा गया। उन्होंने धीमे लेकिन स्पष्ट स्वर में कहा:
"रस का मूल स्रोत है हृदय की अनुभूति। शास्त्र ज्ञान को निखारते हैं, पर रस तो प्रकृति और जीवन के अनुभव से जन्म लेता है। एक ग्वाला जो प्रेम में डूबकर गीत गाता है, वह भी रस पैदा कर सकता है, बिना शास्त्र पढ़े।"  
सभी हैरान रह गए। वररुचि ने तुरंत एक और प्रश्न दागा:
"अच्छा, तो क्या आप बिना शास्त्र के एक श्लोक रच सकते हैं, जो श्रृंगार रस से परिपूर्ण हो?"

कालिदास ने मुस्कुराते हुए कहा, "आप आज्ञा दें, मैं प्रयास करता हूँ।" फिर, उन्होंने सभा की ओर देखा और तत्काल एक श्लोक रचा:  
"कुसुमस्तबकस्येव त्रयी मे सौन्दर्यं,
हृदयं च नलिनीव कुरुते कमलं रसेन।
न शास्त्रं, न विद्या, केवलं चेतः स्पन्दति,
प्रेमरसः प्रकृत्या स्वयं संनादति।"  
(अनुवाद: जैसे फूलों का गुच्छा सौंदर्य देता है, वैसे ही मेरा हृदय कमल की तरह रस से खिलता है। न शास्त्र, न विद्या, केवल मन की तरंगें प्रेमरस को स्वयं प्रकट करती हैं।)

सभा में तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी। वररुचि अवाक् रह गए। श्लोक की सादगी और गहराई ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। राजा भोज ने उत्साह में आकर कालिदास को गले लगा लिया और उन्हें अपनी सभा का रत्न घोषित किया।

कहते हैं, शास्त्रार्थ के बाद एक अन्य पंडित ने कालिदास से मजाक में पूछा, "आप तो कहते थे कि आप अनपढ़ हैं, फिर ये विद्वता कहाँ से आई?" कालिदास ने हँसते हुए जवाब दिया, "जब माँ सरस्वती की कृपा हो, तो पेड़ की टहनी भी कविता लिख सकती है!" सभा में फिर हँसी का ठहाका गूँजा।

Thursday, 19 June 2025

छह साल की मनु

मणिकर्णिका की नन्हीं शौर्य-कथा
काशी की पवित्र नगरी में, गंगा के किनारे, एक छोटी-सी कन्या खेला करती थी, जिसका नाम था मणिकर्णिका, लेकिन प्यार से सब उसे मनु कहते थे। यह कहानी उस नन्हीं मनु की है, जो बचपन में ही अपने साहस और बुद्धिमत्ता से सबको चकित कर देती थी।
एक सूरजमुखी सुबह, जब मनु महज छह बरस की थी, वह अपने पिता मोरोपंत तांबे के साथ काशी के घाटों पर टहलने गई। पिता-पुत्री गंगा की लहरों को देख हंस रहे थे, तभी मनु की नजर एक छोटे से नाव पर पड़ी, जो बीच धारा में फंसी थी। नाव में एक बूढ़ा मछुआरा और उसका छोटा पोता घबराए हुए थे। नाव का पतवार टूट चुका था, और तेज धारा उसे अनियंत्रित बहा रही थी।
लोग घाट पर खड़े चिल्ला रहे थे, पर कोई मदद को आगे नहीं बढ़ा। मनु ने अपने पिता की ओर देखा और बोली, "बाबा, अगर हम अभी नहीं गए, तो वे डूब जाएंगे!" मोरोपंत हड़बड़ा गए। "मनु, तू छोटी है, यह खतरनाक है!" पर मनु की आँखों में एक अजीब सी चमक थी। उसने कहा, "बाबा, डरने से कोई बचा नहीं, और गंगा मैया मेरे साथ हैं!"
मनु ने पास खड़ी एक छोटी नाव की ओर दौड़ लगाई। उसने देखा था कि मछुआरे अक्सर रस्सी और बांस से नाव को खींचते हैं। उसने तुरंत एक मजबूत रस्सी उठाई और एक अनुभवी नाविक की तरह उसे नाव के किनारे से बांधा। फिर, बिना वक्त गंवाए, वह नाव में कूद पड़ी और अपने छोटे-छोटे हाथों से चप्पू चलाने लगी। घाट पर खड़े लोग दंग रह गए। एक छोटी-सी बच्ची इतने साहस से नाव चला रही थी!
मनु की नन्हीं नाव तेजी से फंसी हुई नाव के पास पहुंची। उसने रस्सी मछुआरे की ओर फेंकी और चिल्लाई, "दादाजी, इसे पकड़ो और बांध लो!" मछुआरे ने कांपते हाथों से रस्सी पकड़ी और अपनी नाव से बांध दी। मनु ने पूरी ताकत से अपनी नाव को किनारे की ओर खींचना शुरू किया। उसका छोटा सा शरीर पसीने से तर था, पर चेहरे पर दृढ़ता की मुस्कान थी। धीरे-धीरे, दोनों नावें किनारे की ओर बढ़ने लगीं।
जब नावें किनारे पहुंचीं, तो घाट पर तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। मछुआरे ने मनु को गले लगाया और आशीर्वाद दिया, "बेटी, तू तो गंगा की लहरों सी तेज और साहसी है!" मोरोपंत की आँखों में गर्व के आंसू थे। उन्होंने मनु को सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, "मेरी मनु, तू सचमुच एक रानी है।"
उस दिन काशी के घाटों पर एक छोटी-सी मनु ने न केवल दो जिंदगियां बचाईं, बल्कि यह भी दिखा दिया कि साहस और बुद्धि उम्र की मोहताज नहीं होती। यही मनु आगे चलकर रानी लक्ष्मीबाई बनी, जिसने अपने शौर्य से इतिहास के पन्नों को अमर कर दिया।
नैतिक: साहस और सूझबूझ से कोई भी मुश्किल आसान हो सकती है, चाहे उम्र कितनी भी छोटी हो।

Thursday, 12 June 2025

बंदी छोड़ की कथा: गुरु हर गोविंद सिंह की करुणा और चतुराई

बंदी छोड़ की कथा: गुरु हर गोविंद सिंह की करुणा और चतुराई
17वीं सदी की बात है, जब मुगल सम्राट जहांगीर का शासन अपने चरम पर था। ग्वालियर के किले की अंधेरी कोठरियों में 52 हिंदू राजा और सामंत कैद थे। ये राजा मुगल सत्ता के खिलाफ अपनी आवाज उठाने के कारण बंदी बनाए गए थे। उनकी रिहाई की कोई उम्मीद नहीं थी, और किले की मोटी दीवारें उनकी आजादी की हर पुकार को दबा देती थीं। लेकिन सिखों के छठे गुरु, गुरु हर गोविंद सिंह की करुणा और चतुराई ने इस असंभव को संभव कर दिखाया।
गुरु हर गोविंद सिंह, जो अपनी आध्यात्मिक शक्ति और योद्धा स्वभाव के लिए जाने जाते थे, उस समय मुगल दरबार में जहांगीर के अतिथि के रूप में ग्वालियर आए थे। जहांगीर, जो गुरु के पिता गुरु अर्जन देव जी की शहादत के बाद सिखों के प्रति कुछ नरम पड़ चुके थे, गुरु हर गोविंद सिंह के व्यक्तित्व से प्रभावित थे। गुरु जी की विद्वता, शांति और साहस ने जहांगीर का मन मोह लिया था। लेकिन गुरु जी का ध्यान उन कैदियों की ओर गया, जो ग्वालियर के किले में अमानवीय परिस्थितियों में जीवन बिता रहे थे।
एक दिन, जहांगीर ने गुरु जी से पूछा, "गुरु जी, आपकी कोई इच्छा हो तो बताइए।" गुरु हर गोविंद सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, "महाराज, मेरी कोई व्यक्तिगत इच्छा नहीं है। लेकिन यदि आप कुछ देना ही चाहते हैं, तो उन 52 राजाओं को मुक्त कर दीजिए, जो इस किले में बंद हैं। उनकी मुक्ति ही मेरी इच्छा है।"
जहांगीर, जो गुरु जी के प्रति सम्मान रखते थे, इस अनुरोध से असमंजस में पड़ गए। इतने सारे राजाओं को रिहा करना मुगल सत्ता के लिए जोखिम भरा हो सकता था। फिर भी, उन्होंने गुरु जी की बात मानने का निर्णय लिया, लेकिन एक शर्त रख दी। उन्होंने कहा, "गुरु जी, मैं उन सभी को रिहा कर दूंगा, जो आपके चोगे (वस्त्र) को पकड़कर किले से बाहर निकल सकें।"
यह शर्त सुनकर मुगल दरबार में हंसी की लहर दौड़ गई। सभी को लगता था कि यह एक असंभव शर्त है। एक चोगा कितने लोगों को पकड़ सकता है? लेकिन गुरु जी ने शांत मन से इस चुनौती को स्वीकार किया। उन्होंने अपने सिख अनुयायियों को आदेश दिया कि वे एक विशेष चोगा तैयार करें। यह चोगा सामान्य नहीं था। यह लंबा और विशाल था, जिसमें 52 लंबी-लंबी कपड़े की पट्टियाँ सिल दी गई थीं। प्रत्येक पट्टी को एक कैदी पकड़ सकता था।
जब रिहाई का दिन आया, गुरु हर गोविंद सिंह उस विशाल चोगे को पहनकर किले के द्वार पर खड़े हुए। एक-एक करके, 52 कैदियों ने उस चोगे की पट्टियों को थामा। गुरु जी के पीछे-पीछे, सभी कैदी किले से बाहर निकल आए। यह दृश्य देखकर जहांगीर और उनका दरबार स्तब्ध रह गया। गुरु जी ने न केवल अपनी बुद्धिमत्ता से जहांगीर की शर्त को पूरा किया, बल्कि अपनी करुणा से 52 राजाओं को नया जीवन भी दिया।
इस घटना के बाद, गुरु हर गोविंद सिंह को "बंदी छोड़" के नाम से जाना जाने लगा। 
यह कथा न केवल उनकी चतुराई और करुणा को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि सच्चा नेतृत्व वह है जो दूसरों की भलाई के लिए असंभव को संभव बना दे। यह कहानी सिख इतिहास में एक प्रेरणादायक अध्याय के रूप में आज भी जीवित है, जो गुरु जी के साहस और मानवता के प्रति उनके प्रेम को दर्शाती है।

Sunday, 1 June 2025

#अशलीलता_हटाओ_संस्कृति_बचाओ

चिंता और अश्लील सामग्री के बीच संबंध जटिल है और इसे मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से समझा जा सकता है। 
मनोवैज्ञानिक प्रभाव: अश्लील सामग्री (जैसे पोर्नोग्राफी) का अत्यधिक या अनुचित उपयोग चिंता को बढ़ा सकता है। यह मस्तिष्क के डोपामाइन सिस्टम को प्रभावित करता है, जिससे तात्कालिक सुख की चाहत बढ़ती है। समय के साथ, यह आदतन व्यवहार बन सकता है, जो आत्म-सम्मान में कमी, अपराधबोध, या सामाजिक अलगाव की भावना पैदा कर सकता है, जो चिंता को बढ़ाता है। कुछ अध्ययनों के अनुसार, अश्लील सामग्री का अत्यधिक उपयोग यौन प्रदर्शन से संबंधित चिंता या रिश्तों में असुरक्षा को जन्म दे सकता है।
सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण: भारतीय संस्कृति में, जहां पारंपरिक मूल्यों और नैतिकता का महत्व है, अश्लील सामग्री को अक्सर सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों के लिए खतरा माना जाता है। #अशलीलता_हटाओ_संस्कृति_बचाओ जैसे अभियान इस धारणा को दर्शाते हैं कि अश्लील सामग्री नैतिक पतन, पारिवारिक मूल्यों में कमी, और युवाओं पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। यह सामाजिक चिंता को बढ़ा सकता है, क्योंकि लोग संस्कृति और नैतिकता के "ह्रास" को लेकर चिंतित हो सकते हैं।
वास्तविकता बनाम धारणा: कुछ लोग अश्लील सामग्री को तनाव कम करने का साधन मानते हैं, लेकिन दीर्घकालिक रूप से यह उल्टा प्रभाव डाल सकता है। उदाहरण के लिए, अवास्तविक यौन अपेक्षाएं या तुलनात्मकता की भावना चिंता को बढ़ा सकती है। साथ ही, सामाजिक स्तर पर, अश्लील सामग्री की आसान उपलब्धता (विशेषकर इंटरनेट पर) को लेकर माता-पिता और समाज में बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता बढ़ रही है।
सांस्कृतिक संरक्षण का अभियान: #अशलीलता_हटाओ_संस्कृति_बचाओ जैसे हैशटैग भारतीय समाज में अश्लील सामग्री को सांस्कृतिक मूल्यों के लिए हानिकारक मानते हैं। यह अभियान चिंता को दर्शाता है कि पश्चिमी प्रभाव या अनियंत्रित डिजिटल सामग्री पारंपरिक मूल्यों को कमजोर कर रही है। यह सामूहिक चिंता सामाजिक आंदोलनों को बढ़ावा देती है, जो अश्लीलता को नियंत्रित करने की मांग करते हैं।
निष्कर्ष: अश्लील सामग्री और चिंता का संबंध व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर देखा जा सकता है। व्यक्तिगत स्तर पर, यह मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जबकि सामाजिक स्तर पर, यह सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति चिंता को बढ़ाता है। #अशलीलता_हटाओ_संस्कृति_बचाओ जैसे अभियान इस चिंता को सामूहिक कार्रवाई में बदलने का प्रयास करते हैं। यदि आप इस विषय पर और गहराई से जानकारी चाहते हैं, जैसे विशिष्ट अध्ययन या सांस्कृतिक प्रभाव, तो कृपया बताएं।

नितेश तिवारी की रामायण

🚨 #RamayanaGlimpseTomorrow 🚨   नितेश तिवारी की रामायण का ग्लिम्प्स कल, 3 जुलाई 2025 को रिलीज़ हो रहा है, लेकिन रणबीर कपूर (राम) और साई पल्...