कर कटावरी तुळसीच्या माळा । ऐसें रूप डोळां दावीं हरी ॥१॥
ठेविले चरण दोन्ही विटेवरी । ऐसें रूप हरी दावीं डोळां ॥ध्रु.॥
कटीं पीतांबर कास मिरवली । दाखवीं वहिली ऐसी मूर्ती ॥२॥
गरुडपारावरी उभा राहिलासी । आठवें मानसीं तें चि रूप ॥३॥
झुरोनी पांजरा होऊं पाहें आतां । येईं पंढरीनाथा भेटावया ॥४॥
तुका म्हणे माझी पुरवावी आस । विनंती उदास करूं नये ॥५॥
यह तुकाराम महाराज द्वारा रचित एक भावपूर्ण अभंग है, जिसमें वे भगवान विट्ठल के सुंदर रूप का वर्णन करते हैं और उनके दर्शन की तीव्र अभिलाषा व्यक्त करते हैं। आइए इसे पद-दर-पद हिंदी में समझते हैं:
मूल मराठी पाठ और हिंदी अर्थ:
कर कटावरी तुळसीच्या माळा । ऐसें रूप डोळां दावीं हरी ॥१॥
अर्थ: "हाथ और कमर पर तुलसी की माला (धारी हुई है), हे हरि! ऐसा रूप मेरी आँखों को दिखा।"
भाव: तुकाराम विट्ठल के रूप का वर्णन करते हैं, जिसमें उनके हाथ और कमर पर तुलसी की माला शोभायमान है। वे प्रार्थना करते हैं कि ऐसा सुंदर रूप उन्हें दिखाई दे।
ठेविले चरण दोन्ही विटेवरी । ऐसें रूप हरी दावीं डोळां ॥ध्रु.॥
अर्थ: "दोनों चरण विट (ईंट) पर रखे हुए हैं, हे हरि! ऐसा रूप मेरी आँखों को दिखा।"
भाव: यहाँ विट्ठल की प्रसिद्ध मुद्रा का वर्णन है, जिसमें वे पंढरपुर में विट (ईंट) पर खड़े हैं। तुकाराम इस रूप के दर्शन की कामना करते हैं। यह पंक्ति अभंग का ध्रुवपद (मुखड़ा) है।
कटीं पीतांबर कास मिरवली । दाखवीं वहिली ऐसी मूर्ती ॥२॥
अर्थ: "कमर पर पीतांबर (पीला वस्त्र) बाँधा हुआ है और किनारा लटक रहा है। ऐसी मूर्ति मुझे दिखा, जो पहले दिखाई जा चुकी है।"
भाव: तुकाराम विट्ठल के पीतांबर और उनकी मूर्ति की शोभा का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि यह रूप उन्हें पहले भी दिखाया गया है, और वे फिर से इसके दर्शन चाहते हैं।
गरुडपारावरी उभा राहिलासी । आठवें मानसीं तें चि रूप ॥३॥
अर्थ: "तू गरुड़ के पार (सामने) खड़ा हुआ है। वही रूप मेरे मन में स्मरण करता हूँ।"
भाव: यहाँ विट्ठल को गरुड़ (विष्णु के वाहन) के साथ खड़े हुए बताया गया है, जो उनके विष्णु स्वरूप को दर्शाता है। तुकाराम कहते हैं कि वे इस रूप को अपने मन में बार-बार याद करते हैं।
झुरोनी पांजरा होऊं पाहें आतां । येईं पंढरीनाथा भेटावया ॥४॥
अर्थ: "अब मैं पिंजरे में बंद पक्षी की तरह तड़प रहा हूँ। हे पंढरीनाथ! मुझसे मिलने के लिए आ।"
भाव: तुकाराम अपनी व्याकुलता व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं कि विट्ठल के दर्शन के बिना उनका मन पिंजरे में कैद पक्षी की तरह छटपटा रहा है, और वे उनसे मिलने की प्रबल इच्छा रखते हैं।
तुका म्हणे माझी पुरवावी आस । विनंती उदास करूं नये ॥५॥
अर्थ: "तुका कहते हैं कि मेरी आशा पूरी कर। मेरी विनती को निराश न कर।"
भाव: अंत में, तुकाराम विट्ठल से प्रार्थना करते हैं कि उनकी दर्शन की तीव्र इच्छा को पूरा करें और उनकी विनती को ठुकराएँ नहीं। यह उनकी भक्ति और विश्वास की पराकाष्ठा को दर्शाता है।
संपूर्ण भाव:
इस अभंग में तुकाराम महाराज भगवान विट्ठल के दिव्य रूप का वर्णन करते हैं—उनका तुलसी की माला, पीतांबर, और विट पर खड़े होने का स्वरूप। वे इस रूप के दर्शन की तीव्र कामना करते हैं और अपनी व्याकुलता को पिंजरे में बंद पक्षी से तुलना करके व्यक्त करते हैं। यह अभंग भक्ति, ईश्वर के प्रति तड़प और उनके प्रेममयी दर्शन की आकांक्षा को सुंदरता से प्रस्तुत करता है। तुकाराम की यह विनती उनकी अनन्य भक्ति और आत्मसमर्पण का प्रतीक है।
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