शाख सुनी, पात सुने, सूना नीड बुलबुल का।
जिस आंगन में कल फुदकी थी सोनचिरैया,
आज वो आंगन सुनी, ये कैसी पतझड की पुरवैया ।
सूने सूने आंगन और सूनी सुनी गलियाँ,
तेरे जाने से रोते है फूल और कलियाँ ।
तेरे अपनों की गीली पपराई पलकें,
सबकी आंखो से आज है आसू छलके ।
अंजानों के घर जाने का कैसा आशीर्वाद दिया है,
उनके संग घर बसाने का कैसा विश्वास दिया है।
माता-पिता ने सोलह सावन श्रृंगार दिया,
भाई-बहिन ने अनोखा प्यार दिया ।
बडे जतन से पाली पोसी मां भर दे तेरा प्यार,
लिपट मां से चली बसाने को अपना संसार ।
सास-ससुर के चरणों की धूल अपने मांग सजाऊंगी ।
आशीर्वाद की शक्ति से सदा प्यार मैं पाऊंगी ।
बेटी ने बिंदिया लगाई मां के चरणो की धूल से,
बोली मां माफ करना गलती जो की मैने भूल से ।
जा बेटी सोने चांदी के महलों में,
दुख-दर्द सदा तुमसे दूर रहे ।
सुख-शांति और आनंद सदा,
चरण चूमें तेरे आंगन में रहे।
साथ लें जा हम सब का प्यार,
चलो रे विदा कर दे मोटर-कार मोटर-कार।
संकलन: रिंकू ताई
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