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Friday, 21 March 2025

बेटी की बिदाई

बेटी चली ससुराल घर छोड बाबुल का, 
शाख सुनी, पात सुने, सूना नीड बुलबुल का। 
जिस आंगन में कल फुदकी थी सोनचिरैया, 
आज वो आंगन सुनी, ये कैसी पतझड की पुरवैया । 
सूने सूने आंगन और सूनी सुनी गलियाँ,
 तेरे जाने से रोते है फूल और कलियाँ । 
तेरे अपनों की गीली पपराई पलकें,
सबकी आंखो से आज है आसू छलके । 
अंजानों के घर जाने का कैसा आशीर्वाद दिया है,
उनके संग घर बसाने का कैसा विश्वास दिया है।
माता-पिता ने सोलह सावन श्रृंगार दिया, 
भाई-बहिन ने अनोखा प्यार दिया ।
बडे जतन से पाली पोसी मां भर दे तेरा प्यार, 
लिपट मां से चली बसाने को अपना संसार । 
सास-ससुर के चरणों की धूल अपने मांग सजाऊंगी ।
आशीर्वाद की शक्ति से सदा प्यार मैं पाऊंगी । 
बेटी ने बिंदिया लगाई मां के चरणो की धूल से, 
बोली मां माफ करना गलती जो की मैने भूल से । 
जा बेटी सोने चांदी के महलों में,
दुख-दर्द सदा तुमसे दूर रहे ।
सुख-शांति और आनंद सदा, 
चरण चूमें तेरे आंगन में रहे।
साथ लें जा हम सब का प्यार, 
चलो रे विदा कर दे मोटर-कार मोटर-कार।

संकलन: रिंकू ताई 

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