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Saturday, 7 September 2024

व्हाट्सअप

अस्वीकरण

यह कहानी कल्पना का कार्य हैं। इस कहानी का किसी भी व्यक्ति या समुदाय से कोई संबंध नहीं हैं। 


कॉलेज के व्हाट्सअप ग्रुप बन गया था। सबके फोन नंबर ग्रुप के माध्यम से एक दूसरे को पता चल गए थे। ग्रुप मे कोई भी प्रोफेसर शामिल न थे इसीलिए जो जैसी मर्जी आए वैसी बात कर सकता था। 

शामली भी ग्रुप मे थी और साजिद भी था। शामली रंग से काली थी पर उसकी आखे गजब की सुंदर थी और इसी कारण लड़कों मे आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी। सलमा भी ग्रुप मे थी। 

साजिद और सलमा अक्सर क्लास मे भी बात करते थे। कई बार साथ मे अपने गाव भी जाते थे, दोनों एक ही गाव के थे इसीलिए। शामली सलमा से कहती थी, "सलमा का अच्छा हैं, गाव साथ आने जाने के लिए सादिक जैसा लड़का हैं, सामान भी उठा देता होगा और घर तक भी पोहोचाता होगा।" 

बात कई बार कही गई तो एक दिन सलमा ने सादिक को बता दी। सादिक ने कहा, "शामली कहे तो उसका भी सामान उठा लू। उसके साथ उसके घर पर भी चला जाऊ। मुझे कोई दिक्कत नहीं हैं।" अब सलमा के पेट मे ये बात कहा पचती, उसने आकार ये शामली को बता दिया। शामली ये सुनकर अलग ही खयाली पुलाव पकाने लगी। 

फर्स्ट सेमिस्टर के इग्ज़ैम हुए और छुट्टियाँ लग गई। सब लोग अपने घर चले गए थे। रिजल्ट आने तक छुट्टियाँ थी। फिर एक दिन सादिक ने कॉलेज ग्रुप मे मैसेज डाला 

फुर्सत मिले तो दोस्तो का हाल भी पूछ लिया करो दोस्तो,

जिसके सीने में दिल की जगह तुम लोग धड़कते हो !!

मैसेज पढ़ कर सब ने अपने अपने हिसाब से जवाब दिया। कुछ लोगों ने रीऐक्ट किया तो कुछ ने शायरी लिखी। मैसेज का सिलसिला सबेरे से रात तक चलता रहा। उतने मे सलमा ने मैसेज डाला 

लोग कहते हैं, ढूंढने से सच्चा प्यार मिल जाता है।।

मुझे  तो सच्चे लोग ही मिल जाए, मेरे लिए काफी है।।

मैसेज पढ़ ग्रुप मे हलचल मच गई। सबने पुछा "क्या हुआ सलमा?" पर कोई जवाब नहीं मिला। रात बीत गई और अगली सुबह शामली ने देखा की सादिक का उसे पर्सनल मैसेज आया हैं। मैसेज मे लिखा था। 

तबाह कर डाला तेरी आँखों की मस्ती ने!

हज़ार साल जी लेते अगर तेरा दीदार ना किया होता तो!!

अलग ही खयाली पुलाव पहले ही शामली के मन मे पक रहा था। आज सादिक का ऐसा मैसेज देख कर वो असंजस मे मुस्कुराने लगी थी। पर उसने कोई जवाब नहीं दिया। 

अगले दिन फिर से मैसेज आया जिसमे शामली की आखों की तारीफ के पुल बांधे जा रहे थे। आठ दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा। शामली ने अपनी सहलियों को ये सब दिखाया। तो उसमे से एक ने कहा 

आँखें 'दो' ही, सुख देती हैं, 'चार' ना करना, दु:ख देती हैं

पर प्यार की पट्टी आखों पर पड़ी हो तो कहा कुछ दिखाई देता हैं। खयालों खयालों मे सादिक को दिल दे बैठी शामली ने नाइस एमोजी भेजकर अब जवाब दिया। बाते हुई। और शायरी का सिलसिला आगे बढ़ता गया। दोनों के बीच जो भी बाते होती शामली अपनी सहेलियों को अक्सर बता देती थी। बातों बातों मे सलमा तक हकीगत पोहोच गई थी। सलमा ने ग्रुप मे मैसेज डाला 

कीमतें गिर जाती है अक्सर खुद की, किसी को बहुत ज्यादा  कीमती बनाकर अपना बनाने में।।

कई लोगों को इसका मतलब ही नहीं समझा। पर सादिक समझ गया था की सलमा ने किसके लिए कहा था। उसने सलमा को मैसेज किया, "तुम मेरे गाव की हो। आते जाते हमारी चार बाते हुई तो तुमने मेरे बारे मे कुछ और ही सोच लिया। जानती हो न की तुम्हारे घर का पानी भी हम उचे लोग नहीं पीते।" असल मे सलमा निचले फिरके की थी और सादिक उचे फिरके का था। सलमा को यह बात बुरी लगी। 

दिन ब दिन सादिक और शामली की बातें नए नए आयाम छूने लगी थी। दूसरी तरफ कॉलेज भी फिर से शुरू हो गया था। दोनों इशारों इशारों मे क्लास मे भी बाते करते थे। सलमा ये देख परेशान रहने लगी थी। सलमा सादिक से एकतरफा प्यार करने लगी थी पर सादिक ने दोनों के बीच फिरके की दीवार खड़ी कर दी थी। सलमा ने एक दिन सादिक को लिखा, 

इतनी उदास कब थी मेरी कलाई की चुडियां,

ढीली हो गई है अब ये तेरी जुदाई में चुडियां।

पर सादिक को केवल शामली दिख रही थी। न जाने क्यू शामली ही सादिक को चाहिए थी इसीलिए उसने एक दिन शामली को मैसेज किया 

अदा से, इशारे से, युँ प्यार जता जाना

लाज़मी था सनम तेरा दिल मे समा जाना

बहुत सारी हार्ट एमोजी के साथ इस मैसेज को पढ़कर शामली मन ही मन शर्मा गई थी। और उसने जवाब मे पूछा, "इस शनिवार कही बाहर चलते हैं?" 

सादिक को इसी बात का इंतजार था। वैसे हर शुक्रवार सादिक सलमा के साथ अपने गाव जाता था। पर शामली के साथ शनिवार की डेट फिक्स होने के कारण उसने घर पर पढ़ाई का बहाना बता कर नही गया। सलमा बस शुरू होने तक राह देखती रही। उससे रहा नही गया तो उसने सादिक को मैसेज किया, "तुम आ रहे हो या नहीं?" पलटकर सादिक ने जवाब दिया, "तुम अपनी हद मे क्यू नहीं रहती? तुम आखिर कौन होती हो मुझे रोकने वाली?" ये पढ़कर सलमा का दिल टूट गया। और वो गुमसुम रहने लगी। 

इधर शनिवार और रविवार दोनों दिन सादिक शामली को लेकर अलग अलग जगह घूमता रहा। हफ्ता बीत गया फिर से शनिवार आने को था। सादिक अबकी बार घर गया। सलमा उसे अपने साथ बस मे देखकर खुश थी। 

ऐसे ही दूसरा सिमेस्टर भी खत्म हो गया और इग्ज़ैम के बाद रिजल्ट आने तक सब लोग अपने अपने घर चले गए थे। हर रोज शामली और सादिक व्हाट्सअप पर चैट करते रहते। प्यारभरी शायरी का ढेर दोनों ने लगा रखा था। और एक दिन सादिक ने वॉइस मैसेज भेजा 

शामली यार 

बेवजह हो गयी तुमसे इतनी मुहब्बत

चलोअब वजह बन जाओ जीने की

नहीं तो मैं मार जाऊंगा 

ये सुन शामली सातवे आसमान मे उड़ने लगी। कॉलेज फिर से शुरू हो गया। एक दिन घूमते समय सादिक ने गुलाब का गुलदस्ता देकर शामली को पुछा 

मुझे वो रिश्ता चाहिए है, जिसमें मैं या तुम ना हो बस हम हो

शामली ने शरमा कर हा कर दिया। ये सब सलमा अपनी आखों से देख रही थी पर कुछ नहीं कर पाई। 

दोनों की मुलाकातों का सिलसिला अब और भी बढ़ गया था। पूरे कॉलेज को पता था की ये दोनों लव बर्ड्स हैं। सलमा ने भी ये बात पूरे गाव मे फैला दी थी की सादिक का किसी लड़की के साथ चक्कर चल रहा हैं। सादिक के घर पर इस बात पर चर्चा हुई। पहले सादिक को डर लग रहा था। फिर उसके दादा ने कहा "सादिक बेटा तुमने बड़ा नेक काम किया हैं। उस लड़की को हमारे रीति रिवाजों मे अपने प्यार से रंग दो। उसे हमारे फिरके की अदब और सादगी भी सिखाओं।" अपने दादा की ये बात सुनकर सादिक मे एक नया जोश आ गया था। वो उसी जोश के साथ कॉलेज वापस लौट आया। 

सादिक के गाव के नियमों के अनुसार उचे फिरके वाले लोग अपनी जो मर्जी मे आए कर सकते थे। नीचे फिरके वाले लोगों को उनकी हर बात माननी पड़ती थी। और ये नियम सलमा पर भी लागू था। सेकंड ईयर चल रहा था। कई सारे असाइनमेंट लिखने पड़ते थे। सादिक और शामली को घूमने मे ही दिलचस्पी थी तो सादिक गाव के नियमों का डर बता कर सलमा से अपने और शामली के असाइनमेंट लिखवा लेता था। 

सादिक को दादाजी ने कहा था वैसे अपने रीति रिवाजों की तालिम शामली को देनी थी, तो उसका पूरा ध्यान उसी बात पर था। वो उसे अपनी प्रार्थना पद्धति से लेकर रहन सहन और खान पान की जानकारी देने लगा था। और इधर सलमा के हाथ सादिक और शामली की चाकरी कर घिस गए थे। सलमा के मन मे कही न कही बदले की भावना जग चुकी थी, पर वो कुछ नहीं कर सकती थी। 

कॉलेज मे एक प्रोफेसर थे जो ऐसे प्रेम प्रकरणों के सख्त खिलाफ थे। शामली और सादिक के बारे मे सलमा ने उनको सबकुछ बता दिया था। प्रोफेसर साहब ने मामले की गंभीरता को ध्यान मे रखते हुई अन्य महिला प्रोफेसर की मदत से शामली को समझाने का कयास किया। पर शामली सादिक के प्यार मे पूरी तरह से अंधी हो चुकी थी। और वो कपड़े भी सादिक के सिखाए अंदाज मे पहनने लगी थी। बात करने का ढंग भी बदल गया था। आखिर मे प्रोफेसर ने कहा, "रिश्तों में निखार सिर्फ हाथ मिलाने से नहीं आता, विपरीत हालातों में हाथ थामे रहने से भी आता है !!" शामली ये कह कर पैर पटकते हुए चली गई की, "सादिक जैसा कोई और नहीं हैं। शादी करूंगी तो सादिक से ही करूंगी।"

अगले दिन वह सादिक को लेकर मेरेज रेजिस्ट्रार के कार्यालय जाकर विवाह पंजीकरण की अर्जी दी। बात शामली के घर तक गई। शामली की माँ ने रो रो कर शामली के पैर पकड़ लिए पर प्यार मे अंधी शामली को कुछ नही सुनाई दे रहा था। एक महीने के बाद शामली और सादिक का रजिस्टर मेरेज हो गया। शामली सादिक के साथ अपने ससुराल आ गई थी। 

पर अब शामली की सही कसौटी शुरू हो गई थी। कॉलेज मे प्यार भरी बातें करने वाला सादिक अपने दादा के शब्द के बाहर बिल्कुल नही जाता था। दादा के हुक्म पर शामली की पढ़ाई बंद करा दी गई थी। शामली को घर के काम करने के लिए दिन रात सुनाया जाने लगा था। शामली से उसका फोन भी ले लिया गया था। 

उधर शामली के बेबस माँ बाप ने उससे पूरा नाता तोड़ दिया था और उसे मृत घोषित कर दिया था। शामली के लिए अपने ही घर के दरवाजे बंद हो गए थे और मीठी मीठी बातें करने वाला सादिक अचानक से गुस्सेल हो गया था। दिन तानों से शुरू होता था और घर के किसी कोने मे मार खा कर खत्म होता हैं। शामली की एक जिद ने उसकी जिंदगी को नरक बना दिया था। 

एक दिन सादिक सलमा को अपने घर ले आया और अब सलमा सादिक की जोरू थी। गाव के प्रार्थनास्थल मे सादिक ने गाव के रिवाजों के हिसाब से शादी कर ली थी। अब सलमा घर की लाड़ली बहु थी और शामली नौकरानी बन गई थी। शामली ने सादिक की इस हरकत पर सवाल उठाया तो उसे बहुत पीटा गया। 

सादिक अपनी सुहागरात मनाने कमरे मे चला गया। रात गहराती गई और आधी रात को सादिक के दादा ने शामली को छेड़ना शुरू किया। शामली ने शोर मचाया तो सादिक के पापा और दो भाई बाहर आ गए। चारों ने मिलकर शामली को कस के पकड़ लिया और दादा ने कहा, "अब तू सादिक को भूल जा और हमारी सेवा कर। तो ही इस घर मे चैन से रह पाएगी।" बेबस शामली की इज्जत तार तार होती रही पर न उसकी सास बाहर आई न सलमा बाहर आई। ये अब रोज का हो गया था। कभी कोई मेहमान भी आया तो वह भी शामली के मजे लेता था। 

बस यही अब शामली की जिंदगी बन गई थी।


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