स्त्री की सुंदरता मर्यादा में हो तो ही अति उत्तम है
बहुरि मुनिसन्ह उमा बोलाईं। करि सिंगारू सखी लै आईं।।
देखत रूप सकल सुर मोहे। बरनै छबि अस जग कबि को है।
जगदंबिका जानि भव बामा। सुरन्ह मनहिं मन कीन्ह प्रनामा।।
सुंदरता मरजाद भवानी। जाइ न कोटिहुँ बदन बखानी।।
मुनि गण जब विवाह मंडप में पार्वती जी को ले आने को कहते हैं तो उनके मन में उनके प्रति अत्यंत आदर भाव है, (बोलाईं,आईं) है,
और उमा अर्थात् महेश्वर की माया के प्रति आदर भाव है।
उनके विवाह मंडप में पधारने पर देवता गण भी ईश्वर की माया भाव से मन ही मन उन्हें सादर प्रणाम करते हैं।
सभी भवानी की सुंदरता की (खूब प्रशंसा) भूरि भूरि प्रशंसा कर रहे हैं।
सुंदरता की तो आजकल भी बड़ी प्रसंशा होती है, बड़े बड़े विश्व सुंदरी के पुरस्कार भी मिलते हैं,
परन्तु मर्यादा??
आज पाश्चात्य संस्कृति की देन है, कि मर्यादा और सुंदरता दो अलग अलग कोण बन गए हैं,
परन्तु हमारी सनातन संस्कृति अनुसार
सुंदरता वही वास्तविक सुंदरता है जो मर्यादा में रहे
अतः...
सुंदरता मरजाद भवानी
राम राम हौ राम राम
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