मेरी एक सीरियन इसाई महिला थी| केरल के त्रावणकोर में रहती थी| एकदिन उसके डैड गुजर गए| मेरी और उसका भाई उसके डैड के पीछे रह गए|
अगर मेरी हिन्दू होती तो उसे उसके डैड की संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलता उसके भाई के साथ| पर मेरी तो इसाई थी| इसीलिए उसे उसके डैड के संपत्ति में कोई अधिकार नहीं था| इसाई ब्रिटिश काल में बने कानून के कारण ही मेरी को ये अधिकार नहीं था|
पर मेरी ने हार न मानी| उसने अपने भाई जोसेफ के खिलाफ मुकदमा दाखिल किया| मुकदमा जिला न्यायालय से सर्वोच्च न्यायलय तक गया| मेरी सर्वोच्च न्यायलय में ये मुकदमा जित गयी|
इसाई समाज को ऐसी ही महिलाओ की जरुरत हैं जो अपने अधिकारों के लिए अदालत में कई सालों तक अपना मुकदमा लड़ती रहे और अपने अधिकारों की रक्षा करे, भलेही उसे अपने भाई, पति, या किसी अन्य रिश्तेदार के खिलाफ ही क्यों न लड़ना पड़े|
यह कहानी भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय पर आधारित हैं| आप भी पढ़े और समझे: https://indiankanoon.org/doc/1143189/
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