हिंदी सिनेमा की गंदगी पर सबसे ज्यादा सिटिया, तालिया अगर किसीने बजाई है तो वो हम हिंदूही थे। और ये सब हमे और परोसा गया। फिल्मे बनती गई और उनमें किया हुआ हिंदू उपहासभी और बढ़ते गया। आज इसी सिनेमा के इनफ्लुएंसमें हिंदू त्योहार मनहूस हो गए है।
1940 के दशक तक भारतीय सिनेमा केवल भारतीय पौराणिक कथाओं पर आधारित ही बनता था। पर १९४० के दशक से ये ट्रेंड बदल गया और भारत के सिनेमा में पौराणिक कथाओं की जगह अन्य विषय ने ले ली थी। और तभी से खासकर हिंदी सिनेमा हिंदू संस्कृतिका विकृत रूप बताए जा रहा है।
अब यही देखिए १९४० की फिल्म औरत का एक गीत है जिसके बोल है आज होली खेलेंगे साजन के घर…
पूरा गीत महिला को आवाज मे है और गीत का सार प्रेमिका को प्रेमी से होली के दिन ही उसके घर जाकर मिलना है और मिलन (संबंध) करना है।
फिल्म में फिर इसी गीत के साथ साथ संत मीराबाई का होली पर गया भजन "जमुना तट शाम खेले होली…" ये गीत भी गया गया है। दोनो गीत साथ में सुनो तो यही लगता है की कृष्ण भक्त महिला को कृष्ण के आप प्रेमी ही दिखाता है और वो इसी प्रेमी से मिलन करना चाहती है। और इस गीत को आज भी होली के अवसर पर सुना जाता है।
अब आप ही मुझे बताए जिस श्रीकृष्ण ने द्रौपदी समेत अपनी १६१०० पत्नियों के मान की रक्षा के लिए समयानुसार उचित कदम उठाए उसे केवल किसी प्रेमिका का प्रेमी बताना कितना उचित है?
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