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Sunday, 8 January 2023

माघ स्नान की नयी कथा

  

आपने कई पुराणी कथाये पढ़ी होंगीपर आज आप पवित्र माघ स्नान की अत्यंत आधुनिक कथा पढेंगेअगर आपकी धार्मिक भावनाएँ थोड़ी दुःखी हुई होंगी तो अपने आप से सवाल पूछ लेना की क्या इस कथा में कही गयी बात आजकल की जरूरत नहीं हैहम न हिंदुत्व के विरोध में है न ही हिन्दू पर्वों के हम केवल निसर्ग के समतोल और मानव समाज के कल्याण के पक्ष में हैपर्व कोई भी मनाओ पर पुराने पूजा पाठ के साथ साथ थोडा नया भी समय की मांग के अनुसार उसके साथ करो – समय की मांग को पूरा करना भी एक कर्म है और आप एक गृहस्थ है तो कर्म आपको करने पड़ेंगे|




ये कथा काल्पनिक है पर शायद इसे पढ़ने से आप काफी कुछ जान पाएंगे|

प्राचीन काल से नर्मदा नदी में माघ स्नान का पुण्य दायक महत्त्व बताया गया हैशुभव्रत नामक एक आदमी थाआज के ज़माने काउसे पुरानो के साथ साथ विज्ञान का भी बहुत ज्ञान थाअपने बुद्धिमानी और ज्ञान से उसने बहुत धन इकट्ठा किया थासरकार की नोटबंदी में भी उसकी पूरी कमाई पुराने से नयी हो गयी – वो अपनी पूरी कमाई का हिसाब जो दे पा रहा थासमय बीतता गया और समय चाहे पुराना हो या आज का बुढ़ापा तो सब को आना ही है वो भी बुढा हो रहा थापर बुढ़ापे में भी शुभव्रत को कोई रोग न था|

फिर शुभव्रत ने सोचा की पूरी जिंदगी मैंने ईमानदारी से धनार्जन किया अब मैं सारे व्यापार से मुक्त हो कर प्राचीन काल से चल रहे माघ स्नान को विधि पूर्वक पूर्ण करूँगाइसीलिए उसने अपनी बचायी पूंजी के दो हिस्से कर दिए एक अपने परिवार के लिए और एक अपने लिएउसने सोचा की अकेले तो रह नहीं पाउँगा तो नदी तट के एक आश्रम में उसने एक मोटी रकम दान की और वो वही रहने लगामाघ महिना आने में अभी लघबघ १० महीने बाकी थे फिर भी उसने नियमित नदी के घाट पर जाकर स्नान करने का नियम लियावो सात दिन लगातार स्नान करने नदी मे जाता रहा पर उसे ये स्नान रास न आया और उसे खुजली होने लगी तथा रेषेस भी आने लगी – वो तुरंत त्वचा रोग चिकित्सक (स्किन स्पेशालिस्ट)  के पास भागा – और वही हुआ – उस चिकित्सक ने नदी स्नान के लिए मना कर दिया|

शुभव्रत दवाइयाँ लेकर फिर आश्रम पोहोचा अपना सामान समेटने लगा पर थोडा सा दुःखी था तो भगवान के सामने जाकर बैठ गया – इश्वर से कहा, “मैंने आजीवन सत्य के मार्ग पर चल कर अपनी बुद्धिमानी से अपार धन कमायाकभी इतना दुःखी न हुआ जितना आज हूँकभी कोई सवाल नहीं पूछा की ऐसा क्योंपर आज जब मैं अपना परलोक सुधारने के लिए यहाँ आया हु तो आपने मुझे ये त्वचा रोग दे दिया और पवित्र नदी के स्नान से वंचित कर दिया – ऐसा क्यों प्रभुऔर ऐसी ग्लानि भरी सोच के साथ वो प्रभु भक्ती में लीन हो गयाफिर अचानक नर्मदा माता ने उसे दर्शन दिए – पुत्र शुभव्रत उठो ग्लानि करने की कोई जरूरत नहीं है अगर समस्या है तो उसका समाधान भी है|

शुभव्रत: क्या समाधान है माता?

नर्मदा माता: नदी की स्वच्छता यही इसका उपाय हैजो भी स्नान करने आये वो अपना फैलाया कचरा कम से कम समेटे और थैले में भर कर उसे दूर किसी कचरा डिब्बे में फेकेअगर स्नान करने के पहले थोड़ी नदी तट की साफ सफाई का कोई योगदान दे तो और भी अच्छा होगा क्यों की इससे पहले जमा हुआ कचरा फेका जायेगा|

शुभव्रत: परन्तु माता ये तो नदी तट की सफाई हुई पर पानी अभी भी मैला ही रहेगा उसका क्या और कैसे?

नर्मदा माता: सही कहा पर हा नदी का किनारा साफ होने से और नदी पर बने घाट साफ सुथरे होने से कम से कम जो मक्खियाँ और मच्छर पनपते है और जंगली घास गन्दगी पर उग आती है वो कम हो जाएगी|

शुभव्रत: ठीक है माता अब से हर रोज स्नान के पहले मैं आधा घंटा सिर्फ आधा घंटा श्रमदान करूँगा और घाट तथा किनारे पर जमा गन्दगी दूर करूँगाऔर कारखानों से आते पानी का क्या माता उसे कैसे निकालेंगेऔर जो गन्दा पानी नालो का आपके प्रवाह में घुलता है उसे कैसे रोकेंगे?

नर्मदा माता: सही कहा वत्स – नालों और कारखाने के दूषित पानी से मेरा प्रवाह दूषित होता हैपर इसका भी हल है – मेरे प्रवाह में दूषित पानी घुलने से पहले उसे कुछ सामान्य प्रक्रियाओं द्वारा एक बार स्वच्छ करने के प्रयास करना चाहिएपरन्तु स्नान तो मनुष्य घाट के पास किनारे किनारे ही करते है इसीलिए हर मनुष्य जो नदी के किनारे आता है उसने कचरा फैलाना नहीं चाहिए|

शुभव्रत ने माता को प्रणाम कर संकल्प लिया की वह हर रोज थोड़ी नदी के किनारे आधा घंटा साफ सफाई करेगा और उसके बाद स्नान करेगा|

ऐसे इस संकल्प पर चलते चलते माघ मास आया और तब तक शुभव्रत जिस घाट पर स्नान करने जाता था उसके श्रमदान से वह घाट स्वर्ग समान स्वच्छ हो गयाऔर माघ के महिने में जो भी उस घाट पर स्नान करने आया उसने अद्भुत स्नान की अनुभूति कीवहा पर जगह जगह कचरे के डिब्बे रखे गए जो नियमित कचरा जमा करने वाले कर्मचारी के हाथो साफ कराये जाने लगेशुभव्रत के श्रमदान से प्रभावित होकर आश्रम में रहने वाले अन्य लोग भी नदी की स्वच्छता में मदत करने लगेऔर यह मोहिम नदी किनारे बसे हर शहर और गाव में बताई गयी – जिन लोगो ने सहयोग किया उन्हें स्वर्ग यही मिला और बाकि उनको देख कर सहयोग करने लगे|

शुभव्रत आज अपने त्वचा रोग से मुक्त है और रोगमुक्त शरीर स्वर्ग की पहली कुंजी है|

यह कथा पढने वाले मेरा हर उस व्यक्ती से अनुरोध है की कृपया अपने परिसर में स्थित जलाशय को स्वच्छ रखने में सहयोग देसरकार का काम है ऐसा मत कहियेपानी हम सब के लिए हैहिन्दू रहे ना रहे मुस्लिम रहे ना रहे इसाईं रहे न रहे या कोई अन्य रहे न रहे पानी हर मनुष्य की जरुरत हैपानी है तभी जीवन हैआप जहा भी जाये अपने साथ एक थैला जरुर रखे जिसमे आप जो भी कचरा है जैसे चिप्सचोकलेट के रेपरफलो के बिजछिलके इत्यादि उस थैले में जमा कर सके और फिर उसे किसी सार्वजनिक डस्ट बिन में डाल सकेंगे|

अगर आपको मेरी ये पोस्ट पसंद आई हो तो कृपया शेयर करिए और एकबार जो कहा वो करके देखे - क्या महसूस हुआ जरुर कमेंट करेआओ माघ स्नान को पवित्र स्नान बनाये|

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