भारत माता की जय!
समाजवाद पोलिटिकल साइंस का अभिन्न विषय हैं| इसपर कई सिद्धांत निकल कर आये और कई डिबेट भी हुए हैं| निचे एक प्रयोग का किस्सा दिया हैं जो एक कॉलेज में किया गया था| पढने योग्य हैं|
वाघमारे सर बहोत अच्छा पढ़ाते थे| सभी विद्यार्थी उनसे खुश रहते थे क्यों की जो भी वो पढ़ाते थे वो एग्जाम के हिसाब से ही होता था और उनके नोट्स पढ़कर कोई भी पास हो जाता था तथा वाघमारे सर भी कभी किसी को फेल नहीं करते थे|
एक दिन उनके क्लास में समाजवाद के सिद्धान्तों को लेकर बहस छिड़ गयी थी| ये कोई आम बहस न थी - एक तरफ वाघमारे सर थे और दूसरी तरफ पूरी क्लास! अंत में क्लास के हर विद्यार्थी ने दृढ़तापूर्वक यह कहा था कि समाजवाद सफल होगा और न कोई गरीब होगा और न कोई धनी होगा, क्योंकि उन सब का दृढ़ विश्वास है कि यह सबको समान करने वाला एक महान सिद्धांत है|
तब वाघमारे सर ने कहा, "अच्छा ठीक है! आओ हम क्लास में समाजवाद
के अनुरूप एक प्रयोग करते हैं, आने वाली वीकली टेस्ट में सव्ही छात्रों के विभिन्न ग्रेड
(अंकों) का औसत निकाला जाएगा और सबको वही एक काॅमन ग्रेड दिया जायेगा।"
सभी विद्यर्थी इस प्रयोग में ख़ुशी ख़ुशी सहभागी हो गए|
निहित दिन पर वीकली टेस्ट हुआ और बाद में सबके पेपर्स चेक करने बाद सभी के ग्रेड्स का औसत निकाला गया और प्रत्येक छात्र को B ग्रेड प्राप्त हुआl
जो मेहनती और होनहार छात्र थे वो इस रिजल्ट से खुश न थे क्यों की उनके तो A या A+ या A++ ऐसे ग्रेड आने थे| पर क्लास को औसत ग्रेड दिया गया जिससे होशियार और मेहनती विद्यार्थियों के ग्रेड कम हो गए थे| अब जो कुछ भी मेहनत नहीं करते थे वो बहोत खुश हो गए थे की बिना मेहनत के उनको B ग्रेड मिल गया हैं|
अगले हफ्ते दूसरी परीक्षा के लिए कम पढ़ने वाले छात्रों ने पहले से भी और कम पढ़ाई की और जिहोंने कठिन परिश्रम किया था, उन्होंने यह तय किया कि वे भी मुफ़्त का ग्रेड प्राप्त करेंगे और उन्होंने भी कम पढ़ाई कीl
दूसरी परीक्षा में सभी का काॅमन ग्रेड D आयाl
इससे
कोई खुश नहीं था और सब एक-दूसरे को कोसने लगे।
उसके अगले हफ्ते जब तीसरी परीक्षा हुई तो काॅमन ग्रेड F हो गयाl जैसे-जैसे परीक्षाएँ आगे बढ़ने लगीं, स्कोर कभी ऊपर नहीं उठा, बल्कि और भी नीचे गिरता रहा। आपसी कलह, आरोप-प्रत्यारोप, गाली-गलौज और एक-दूसरे से नाराजगी के परिणाम स्वरूप कोई भी नहीं पढ़ता था, क्योंकि कोई भी छात्र अपने परिश्रम से दूसरे को लाभ नहीं पहुंचाना चाहता थाl
अंत में सभी आश्चर्यजनक रूप से फेल हो गए|
वाघमारे सर ने कहा, "इसी तरह 'समाजवाद' की नियति भी अंततोगत्वा फेल होने की ही है, क्योंकि इनाम जब बहुत बड़ा होता है तो सफल होने के लिए किया जाने वाला उद्यम भी बहुत बड़ा करना होता हैl परन्तु जब सरकारें मेहनत के सारे लाभ मेहनत करने वालों से छीन कर वंचितों और निकम्मों में बाँट देगी, तो कोई भी न तो मेहनत करना चाहेगा और न ही सफल होने की कोशिश करेगाl"
बाद में वाघमारे सर ने कहा की इससे निम्नलिखित पाँच सिद्धांत भी निष्कर्षित व प्रतिपादित होते हैं -
1. यदि आप राष्ट्र को समृद्ध और समाज को को
सक्षम बनाना चाहते हैं, तो किसी भी व्यक्ति को उसकी
समृद्धि से बेदखल करके गरीब को समृद्ध बनाने का क़ानून नहीं बना सकते।
2. जो व्यक्ति बिना कार्य किए कुछ प्राप्त
करता है,
तो
वह अवश्य ही अधिक परिश्रम करने वाले किसी अन्य व्यक्ति के इनाम को छीन कर उसे दिया
जाता है।
3. सरकार तब तक किसी को कोई वस्तु नहीं दे
सकती जब तक वह उस वस्तु को किसी अन्य से छीन न ले।
4. आप सम्पदा को बाँट कर उसकी वृद्धि नहीं कर
सकते।
5. जब किसी राष्ट्र की आधी आबादी यह समझ लेती
है कि उसे कोई काम नहीं करना है, क्योंकि बाकी आधी आबादी उसकी
देख-भाल जो कर रही है और बाकी आधी आबादी यह सोच कर ज्यादा अच्छा कार्य नहीं कर रही
कि उसके कर्म का फल किसी दूसरे को मिलना है, तो वहीं
से उस राष्ट्र के पतन और अंततोगत्वा अंत की शुरुआत हो जाती है।
बस इसी तरह कई देश अपना आर्थिक स्तर खो देते हैं|
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