आज मेरे ब्लॉग पर लाल बहादुर शास्त्रीजि से जुड़ी एक कथा बताऊँगी जिसे पढ़कर आपको ये सिख मिलेंगी की एक राजनेता ने कैसे होना चाहिए और अगर देश पर संकट आया हो तो आप कैसे उस संकट से जूझने के लिए देश की सहायता कर सकते हैं।
तो बात हैं उस समय की जब शास्त्रीजी भारत के प्रधानमंत्री थे और पाकिस्तान ने अपने बुरे मनसूबों को पूरा करने के लिए भारत देश पर आक्रमण कर दिया था। यह 1966 का समय था। वीर भारतीय सेना ने इस हमले का मुहतोड़ जवाब देते हुए पाकिस्तान के लाहोर पर धावा बोल दिया था। इससे पाकिस्तान घबरा गया और अमेरिका के सामने हाथ जोड़कर युध्द रोकने के लिए भारत पर दबाव बनाने के लिए कहने लगा।
भारत और पाकिस्तान के यद्ध मे अमेरिका कैसे हस्तक्षेप कर सकता था? यह प्रश्न कई लोग पूछते हैं। तो उसका उत्तर हैं भारत की सरकारी नीतियाँ। जब देश स्वतंत्र हुआ तब, बहुत गरीबी थी क्यू की अंग्रेजों ने देश को कंगाल कर दिया था। तत्कालीन सरकारी नीतियों मे समाजवाद तो कूट कूट के भरा था पर विकास के लिए आवश्यक योजनाए कही लापता थी, तो कृषिप्रधान देश मे लोग भूखे मर रहे थे। तत्कालीन नेहरू सरकार अमेरिका से लाल गेहू आयात करवाती थी जिसे गरीब जनता मे कम दामों मे बाटा जाता था। इस लाल गेहू के कारण ही अमेरिका उस समय देश के प्रशासन तथा राजनीति मे हस्तक्षेप कर पता था। पर यह लाल गेहू अमेरिका मे जानवर भी नहीं खाते थे, वो नेहरू राज मे भारत मे गरीब जनता को खाना पड़ता था।
1966 मे जब पाकिस्तान ने युध्द की शुरुआत की, तब बिना डरे राष्ट्रवादी शास्त्रीजी ने सेना को आक्रमण का सामना करने और उचित उत्तर देने के लिए कहा। पर इसमे भी लाल गेहू भेजने वाला अमेरिका भारत को धमकाने लगा। धमकाने वाले आमिर विकसित देश ने पाकिस्तान की गलती को नजरअंदाज किया। लेकिन शास्त्रीजी अपनी योजना पर अड़िग रहे।
अमेरिका ने कहा, हम लाल गेहू नहीं भेजेंगे, आपकी जनता भूखी मार जाएंगी। पर शास्त्रीजी ने उत्तर दिया, "आपका लाल गेहू खाकर मारने अच्छा हैं की हम भूखे मर जाए।" इस स्वाभिमानी प्रधानमंत्री ने फिर देश को संबोधित करते हुए रामलीला मैदान मे लाखों लोगों के सामने निवेदन रखा। शास्त्रीजी ने कहा, "अगर मेरे प्यारे देशवासियों ने हफ्ते मे केवल एक दिन उपवास रखा और अपनी जरूरतों को मर्यादित रखा तो हम युद्ध से होने वाले आर्थिक संकट से भी उभर सकते हैं और बचे हुए धन को सेना के लिए उपयोग मे लाया जा सकता हैं और हम युध्द से भी उभर सकते हैं।"
हफ्ते के एक दिन याने की सोमवार के दिन लोगों ने व्रत रखना शुरू किया। और इसका परिणाम गेहू और अन्य खाद्य वस्तुओं की बचत होने लगी। जो लोग सक्षम थे उन्होंने धन का दान सीधे सेना को किया पर जो लोग गरीब थे उन्होंने भी इस युद्ध मे अपने एक दिन के व्रत के माध्यम से योगदान दिया। देश युध्द और भूख दोनों से उभर गया।
इस समय शास्त्रीजी ने अपने घर के काम स्वयं किए। इतिहास मे शायद ही कोई ऐसा राजनेता हो जिसने आपातकाल मे अपने घर के हर काम को स्वयं किया हो। और शास्त्रीजी के इसी समर्पण के कारण देश के हर नागरिक ने सोमवार का व्रत किया और देश की सेना को सहायता दी।
तो यह थे भारत के स्वाभिमानी एवं राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री, जिनका जिक्र काँग्रेस पार्टी कभी नहीं करती।
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