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Tuesday, 9 July 2024

अलसी के लड्डू

कालिंदी अपनी माँ दुर्गा के साथ दूर दरास आँचूकुन्नु मे रहती थी। सरकारी नीतियों के अभाव मे कोई भी सुविधा उस गाव तक नहीं पहुच पाई थी। खैर, कोई सुविधा रहे न रहे, हर जगह लोग बीमार पड़ते ही हैं, उसमे सर्दी, खांसी, जुकाम, जैसी बीमारियाँ आम बात हैं।  कालिंदी के दो बच्चों की बीमारी मे अगर कोई डॉक्टरी इलाज चाहिए भी होता था तो कई पैसे जोड़ कर जिले की जगह जाना पड़ता था। पर रास्ते की खस्ता हालत मे कई बार ये बड़ा मुश्किल हो जाता था। फिर घर मे पिताजी को दिल की बीमारी थी और माँ को घुटनों का दर्द। कालिंदी के पती को पथरी की बीमारी थी और खुद कालिंदी को कई बार थकान और कमजोरी रहती थी। ऐसी हालत मे मनुष्य क्या करें? कोई हाथ पर हाथ धरें तो नहीं बैठ सकता, इसीलिए कोई न कोई तो उपाय जरूरी हो जाता हैं। सब बीमारियों के इलाज के लिए घरेलू नुस्खे भलेही काम न आए, पर थोड़ी देर सही राहत दे ही देते हैं। और छोटी मोटी बीमारियों का इलाज घरेलू तरीके से सस्ता और स्वास्थ्यवर्धक हो जाता हैं। 

ऐसे ही सर्दी के दिन आनेवाले थे और कालिंदी अपने खेत से निकली सब्जियाँ बेचने तहसील की जगह गई थी। जब भी वो तहसील के बाजार जाती तब किराना लेकर आती। अबकी बार उसने आधा किलोग्राम आलसी खरीद ली थी।उसके बाद उसने १०० ग्राम काजू, १०० ग्राम बादाम, ५० ग्राम साधा पिस्ता (ये नमकीन नही होता और आमतौर पर बिना छिलके के बेचा जाता हैं), १०० ग्राम गोंद और दस ग्राम इलायची भी खरीद ली।  उसके घर देसी गाय थी तो वो काभी गाय का घी नहीं खरीदती थी, पर अबकी बार उसने एक किलोग्राम देसी गाय का घी भी खरीद लिया था। हर हफ्ते घर मे रोज लगने वाला गेहू और एक कीलोंग्राम गुड़ लेकर कालिंदी शाम को अपने घर लौट आई।

अगले दिन कालिंदी ने पूरे काम हों के बाद, आलसी को चुन लिया और उसमेसे कचरा अलग कर दिया। उसके बाद एक लोहे की कढ़ाई मे उसने दही आच पर आलसी को सेखना शुरू कर दिया। उसके बाद जब आलसी से टिक टिक की आवाज आने लागि, उसने उसे एक परात मे ठंडा होने के लिए निकाल कर फैला दिया। उधर आलसी ठंडी होने तक गोंद को छोटे छोटे टुकड़े करने के लिए कूट लिया। उसके बाद उसी लोहे की कढ़ाई मे देसी गाय के घी मे पहले गोंद को भून लिया। फिर बादाम, काजू, पिस्ता, इत्यादि चीजें हल्की लाल होने तक भून ली और ठंडी होने के लिए रख दी। उसके बाद गुड़ को कूट कर बारीक कर लिया। आलसी ठंडी होने के बाद उसने आलसी को चक्की पर पीस लिया। तबतक बादाम, काजू, पिस्ता भी ठंडे हो गए थे टो उनको खलबत्ते मे कूट लिया। (आप चाहे तो मिक्सर मे भी पीस सकते हैं।) फिर उसी लोहे की कढ़ाई मे कालिंदी ने और घी डाल दिया और घी पिघलने के बाद, उसमे आधा किलोग्राम गेहूं का आटा भी सेख लिया। इतने प्यार से सेखते समय पूरे घर मे खुशबू फैल गई और आटा भी धीरे धीरे हल्के ब्राउन रंग का होने लगा। उसके बाद कालिंदी ने इलायची पावडर होने तक कूट ली। 

फिर कालिंदी ने और घी गरम करने के लिए रख दिया और पिघला हुआ घी तैयार रखा। घी मे सेखा हुआ आटा, पीसी हुई आलसी, कुटे हुए बादाम, काजू, पिस्ता, भुना हुआ गोंद, इलायची पावडर और बारीक किया हुआ गुड़ एक साथ एक बड़े बर्तन मे डाल कर सबको मसल मसल कर एक कर दिया। गेहू का आटा थोड़ा गरम था और मसलते समय कालिंदी ने अपने हाथों को घी लगा लिया था, इससे छाले नहीं पड़े। सबकुछ मसल मसल कर मिलाने के वजहसे गुड़ अच्छी तरह से मिल गया। उसके बाद उसने थोड़ा थोड़ा कर घी मिलाना शुरू कर दिया और तब तक घी मिलाया जबतक आटा मुठ्ठी मे दबाने के बाद बंध न जाए। जब आटा मुठ्ठी मे दबाने के बाद बंधने लगा, कालिंदी और दुर्गा ने मिलकर छोटे छोटे लड्डू बनाना शुरू किया। 

पूरे लड्डू बंधने के बाद एक लड्डू का भोग रामजी को लगाया, एक उसकी गाय को खिलाया और जो आखिर मे थोड़ा चुरा बच गया उसे चिड़ियाँ के खाने के लिए घर की छत पर डाल दिया। उसके बाद पाँच लड्डू लेकर कालिंदी ग्रामदेवता के मंदिर गई और भगवान को अर्पित कर आई। 

अगले दिन से कालिंदी ने हर रोज एक लड्डू उसके पिताजी और माँ को दूध के साथ दिया, खाली पेट उसके पती को दिया, बच्चों को सबेरे के खाने के साथ दिया और खुद भी खाने लगी। आलसी का लड्डू खाने के बाद आधा घंटा पानी नहीं पीना चाहिए इसीलिए उसके बच्चे पहले लड्डू खाते और बादमे खाना खाते थे। 

कालिंदी ने पूरे सर्दी के मौसम मे सबको आलसी लड्डू अपने हाथ से बना कर खिलाए और खुद भी खाए। उसके पती को पथरी मे आराम पड़ा। माँ के घुटनों का दर्द कम हो गया। पिता को भी काफी आराम पड़ा। बाकी उसकी और बच्चों की रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ गई और थकान मानो गायब ही हो गई। 

आप चाहे तो आप भी ऐसे लड्डू बना सकते हैं। पर याद रहे, देसी गाय का घी और गुड़ ही फायदा देगा। 


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जय श्री राम!

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